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परमागमस्य बीज निषिद्धजास्यन्धसिम्पुरविधानम् । सकलनयविलासितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वर्ष ४५ किरण ४
वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण संवत् २५१८, वि० सं० २०४६
अक्टूबर-दिसम्बर
१९६२
ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावं ? ऐसा मोही क्यों न मधोगति जावे,
जाको जिनवाणी न सुहावै ॥ वीतराग सो वेव छोड़ कर, देव-कुबेव मनावे । कल्पलता, दयालता तजि, हिंसा इन्द्रासन बावै ॥ऐसा०॥ रचे न गुरु निर्ग्रन्थ मेष बहु, परिग्रही गुरु भाव। पर-धन पर-तिय को अभिलाष, अशन अशोधित खावे ॥ऐसा०॥ पर को विमव देख दुख होई, पर दुख हरख लहावं। धर्म हेतु इक दाम न खरच, उपवन लक्ष बहावै ॥ऐसा०॥ ज्यों गृह में संचे बहु मंध, त्यों बन हू में उपजाव। अम्बर त्याग कहाय दिगम्बर, बाघम्बर तन छावै ॥ऐसा०॥ आरंभ तज शठ यंत्र-मंत्र करि जनपं पूज्य कहावं। धाम-वाम तज दासी राखे, बाहर मढ़ो बनावै ॥ऐसा०॥