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दिल की बात दिल से कही-और रो लिए!
[] पद्मचन्द्र शास्त्री सं० 'अनेकान्त'
जयन्ती : एक गलत परम्परा :
(जन्मदिन आदि) के रूप में मनाते देखे जाते हैं और ऐसी तीर्थकर भगवान तद्भव मोक्षगामी जीव होते हैं और जयन्तियाँ सांसारिक सुख समृद्धि की कामना में मनाई उनके कल्याणकों के मनाये जाने का शास्त्रों में विधान है।
जाती हैं, जो श्रावक के लिए मनाना-मनवाना उपयुक्त है। जिनको पूर्व के किमी भव में तोथंकर प्रकृति का बन्ध ।
माधु तो सांसारिक बन्धन काट कर परम्प या मोक्ष पाने होता है उनके पांच कल्याणक होते हैं तथा चरम (चालू)
न के उद्देश्य मे बना जाता है और इसीलिए माधुओ को भव में ही चौथे-पाँच गुणस्थान मे तीर्थकर प्रकृति बाँधने वैराग्य और तप जैसे संसार छेदक उपक्रमों मात्र का वालों के तप, ज्ञान, मोक्ष ये तीन और छठे-सातवें गुण- विधान है-'ज्ञान-ध्यान तपोरक्तः। याद स स्थान में नोकर प्रति प्रने वालों के जान और मोल चाहनामों की ही पूर्ति करना हो तो साधु बनना ही ये दो कल्याणक होते हैं-"तीर्थबन्धप्रारम्भश्चरमांगाणा. निरर्थक है। मप्रमत्तसंयत देशसंयतयोस्तदा कल्याणानि निष्क्रमणा- उक्त तथ्य के होते हुए भी पंचपरमेष्ठियों मे इस युग दीनित्रीणि प्रमत्ताप्रमत्तयोस्तदा ज्ञाननिर्वाणे दे।"-गो. के तीर्थंकर महावीर के बताए सिद्धान्तो को प्रचार में क./जी. प्र. ३८१/५४६/५ कल्याणक तद्भवमोक्षगामी के लाने की दष्टि से (आगम में उल्लेख के अभाव में भी) ही मनाये जाते है।
दिल्ली की जैन मित्र मण्डल संस्था ने महावीर जयन्ती णमोकार मंत्र गभित किसी परमेष्ठी की जयंती मनाने मनाना आरम्भ किया और धीरे-धीरे यह भारत मे प्रचका शास्त्रों में कही विधान नहीं है न कभी किसी पूर्व परमेष्ठी लन पा गई । बाद को कतिपय अन्य तीर्थकरो की जयकी जयन्ती मनाई ही गई। यदि कहीं जयन्ती मनाने का न्तियां मनाना भी चाल हो गया। और किसी अपेक्षा उल्लेख हो तो आगम में देखें। वैसे तो एक-एक तीर्थकर धर्म प्रचार को दृष्टि से मोक्षप्राप्त आत्माओ के जामके समय मे कोड़ा-कोड़ियो मुनियो के मोक्ष जाने का वर्णन कल्याणक का यह सम-रूप लोगो मे धर्म प्रचार का साधक है-उनमें आचार्य, उपाध्यायऔर साधु सभी रहे-किसी सिद्ध हुआ। चूकि महावीर आदि कृत्यकृत्य (मोक्ष प्राप्त) को कोई जयन्ती नही मनाई गई। हम तो देख रहे हैं कि थे, उन्हें इससे कुछ लेना देना नहीं था। तीथंकरों की हमे कहीं, परम्परित पूर्वाचार्यों में ही किसी एक की हो, मोक्षप्राप्ति से पूर्व भी उनके कल्याणक उन्हें स्वय कोई किसी जयन्ती मनाये जाने का उल्लेख मिल जाय। आकर्षण पंदा नही करते, ज क आज सभी मे आकर्षण ही आखिर, धरसेन, गुणधर, यतिवृषभ, भूतवलि, पुष्पदन्त, आकर्षण शेष हैं। कुन्दकुन्द प्रभृति सभी तो हुए और ये वर्तमान आचार्य वर्तमान में त्यागो-साधुओं की जयन्तियां मनाने की और मुनियों से अपनी श्रेष्ठता में न्यून नही कहे जा सकते। बाढ-सी आ गई है। जन्म और दीक्षा को जयन्तियां तो अस्तु, कहीं भी किसी की जन्म, दीक्षा जैसी जयंतियों दर किनार रहा । अब तो आचार्यों में सर्वज्ञ भी होने अथवा कल्याणकों का उल्लेख नही है। जैसा चलन कि लगे, तब भविष्य में केवलज्ञान की जयन्ती की सम्भावना अब चल पडा है ।
होनाभी कोई आश्चर्य नहो। सुना है , कुछ समय पूर्वही लोगों संस्कारों में सोलह संस्कार श्रावक धर्म में है और ने एक आचार्य को 'कलिकाल-सर्वज्ञ' की उपाधि से भूषित श्रावक गण जन्म, विवाह आदि जैसे सस्कारों को जयन्ती किया है। सोचना यह है कि लोगों को क्या हो गया है ?