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________________ जरा-सोचिए ! १. दि. महावीर के प्रति ऐसी बगावत क्यों ? कमल को पंकज कहा जाता है, वह पंक (कीचड़) __ हम वर्षों से लिखते आ रहे हैं, कि दिगम्बर जैन धर्म से उत्पन्न होता है । वह देखने में सुन्दर, स्पर्श में कोमल, अपरिग्रह प्रधान धर्म है। इसमें अन्तरग-वहिरंग सभी सूंघने में सुगन्धित होता है। उसे सभी जगह सन्मान प्रकार के परिग्रह से रहित ही मुक्ति का पात्र होता है। मिलता है। क्या कभी कमल की मां कीचड को ऐसा इस तथ्य को न समझने वाले कई अजान, समानाधिकार सौभाग्य मिला है ? पृथ्वी को रत्नगर्भा कहा जाता है। की बात उठाकर स्वयं भ्रमित होते है और दूसरो को भी उसत रत्न उससे रत्न, हीरे आदि जन्मते है। वे अत्यन्त कान्तिमान मागच्युत कराने के साधन जुटाते है। होते हैं, और उसके छोटे टुकड़े का भी बहुमूल्य आंका जाता है। क्या कभी पृथ्वी के बड़े खण्ड को भी ऐसा जैसी कि सूचना है उस दिन एक दि० शिक्षण शिविर. योग प्राप्त होता है ? भले ही मां तीर्थंकर को जन्म देती समापन समारोह मे कैलाशनगर की भरी सभा मे 'मां हो तब भी वह उनकी तुलना नही कर सकती-सब की श्री" के सबोधन युक्त दिगम्बरमतावलम्बी ब्र० श्री कौशल- अपनी पृथक-पृथक् योग्यता है जैसे पुरुष कभी बच्चे को कुमारी बोल उठी जैसे वे नही, अपितु कोई भ० अपने गर्भ से जन्म नही दे सकता, आदि । रजनीश बोल रहे हो । आश्चर्य कि उस सभा मे दि. जैन समाज के नामधारी अनेक नेता बैठे-बैठे सब सुनते रहे स्त्री की मुक्ति में उसका परिग्रह बाधक है। वह और किसी से प्रतिवाद करते न बना, अब हमे विरोध मे कभी भी पूर्ण अपरिग्रही नही हो सकती-भीतर और बाहर नग्न नही हो सकती । ब्र० कौशल जी तो स्वयं स्त्री लिखने को कह रहे हैं ? जब कुछ नेताओं से हमारी जाति हैं, क्या किसी स्त्री ने कभी खुले रूप में नग्न रूप बात हुई तो पछता रहे थे कि यह तो बुरा हुआ जो श्री में विचरण की कोशिश की, साडी जैसे बाहर परिग्रह कौशल जी ने भ० महावीर को अन्यायी कहकर लल को छोड़कर देखा? स्त्री जाति मे लज्जा और भय दोनो कारा। प्रकारान्तर से उन्होने सवस्त्र और स्त्रीमुक्ति ऐसी कमजोरियां हैं जो उसे महाव्रत धारण नहीं करने की पुष्टि कर दी, आदि। देती ? उसे मदा-सदा रक्षा की जरूरत है। यदि वह ब्र० कौशल जी का मन्तव्य था कि भ० महावीर ने निर्भय होकर विचरण की बात करे तब भी नही बनती; स्त्रीमुक्ति का निषेध कर बडा अन्याय किया है । उन्होंने वह तो स्वाभाविक बात है। वैसे भी नारी जाति स्वभास्पष्ट कहा कि मैं आगम के विरुद्ध बोल रही है। उन्होंने वतः भोहक शक्ति है। बाजारों गलियों और मुहल्लों में कहा कि क्या है न्याय है कि एक चिरकाल-दीक्षित वस्त्राच्छादित नारी भी मनचलों को लुभा लेती है तब आयिका किसी नवीन दीक्षित मुनि को नमस्कार करे; परिग्रह रहित नग्ननारी कैसे सुरक्षित रह सकती है? आदि। सुरक्षित रहना उसके बस को वात नहीं; वह परायों के उक्त बातें दिगम्बर मान्यता के विरुद्ध हैं और किसी आधीन है। दुर्भाग्य से यदि कोई दुर्घटना हो जाय तो त्यागी को नही कहनी चाहिए । जो श्री कौशल जी ने भरी नारी को नव-मास और उससे आगे भी घोर-परिग्रह के सभा में कही। इससे तो दि० मान्यता के विरुद्ध ही प्रचार जंजाल में फंसना तक संभव है। क्या करें, उसके शरीर हुंआ । यदि उन्हें शक। थी तो किसी विद्वान् से चर्चा कर की बनावट और शक्ति ही ऐसा है जो उसे अपरिग्रही लेनी थी। नही होने देती और बिना पूर्ण-अपरिग्रही हुए मुक्ति नहीं
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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