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________________ गोल्लाराष्ट्र व गोल्लापुर के श्रावक 0 यशवंत कुमार मलया विद्वानों का यह अनुमान रहा है कि तीन जैन आदि का ही रूपांतर है। दक्षिण भारत की कई ग्वाल जातियां गोलापूर्व (गोल्लापूर्व), गोलालारे, गोलोराडे व जातियां आज भी गोल्ला कहलाती है। महाभारत मे गोलसिंघारे (गोलथगार) किसी एक ही स्थान से उत्पन्न गोपराष्ट्र नाम के एक जनपद का उल्लेख है । गोपराष्ट्र मे हुई हैं। इनके अलावा गोलापूर्व नाम की एक बड़ी बसने से ही गोलाराडे जाति का नाम हुआ होगा। गोपब्राह्मण जाति भी है। गोल देश का कुछ जैन ग्रन्थों में व राष्ट्र में राष्ट्र शब्द होने से किसी किसी ने अनुमान किया शिलालेखों मे भी उल्लेख है। इस स्थान के बारे मे विद्वानो है कि यह महाराष्ट्र के आसपास होना चाहिए, पर इसका के अलग-अलग मत रहे है । ___ कोई अन्य आधार नही है"। १. खटोरा (बुदेलखड) के निवासी नवलसाह चदेरिया गोल्ला देश की स्थिति के निर्धारण के लिए ये तथ्य ने १७६८ ई० मे वर्धमान पुराण की रचना की थी। विचारणीय हैंइसमे गोलापूर्व जाति की उत्पत्ति गोयलगढ से बनाई गई १. गोलालारे जाति का "पाट" भिड कहा गया है। है, जिसे विद्वानो ने ग्वालियर माना है। वर्धमानपुराण में गोलालारे भिंड जिले के पावई नाम के स्थान के प्राचीन दी गई अन्य बातें ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पाई निवासी माने गये है। सन् १९१४ में गोलालारा की सबसे गई हैं। अधिक जनसंख्या ललितपुर के बाद भिंड मे ही थी। २. नाथूराम जी प्रेमी ने इस विषय में लिखा था कि गोलालारे जाति की वृद्धश्रेणी खरीमा कहलाई। १८वीं सूरत के पास गोलाराडे नाम की एक जाति रहती है। सदी तक यह स्वतत्र जाति बन गई। खरीआ व गोलउनके अनुमान से यही जाति बुंदेलखंड मे आकर गोलालारे सिंघारे जातियो का अधिकतर निवास भदावर क्षेत्र में कहलाई। अ.. गोल्ला स्थान सूरत के पास कही होना (भिंड इटावा के आसपास) रहा है। मिठौआ गोलालारे चाहिए । यहाँ से ही आकर बुदेलखड मे बसे हैं। ३. स्व० परमानन्दजी शास्त्री का मत था कि गुना २. गोलापूर्व ब्राह्मण आगर इटावा आदि जिलों में जिले मे गोलाकोट नाम के स्थान से गोलापूर्व जाति की बसते है। इनकी जनसंख्या छ लाख बताई गई है। उत्पत्ति हुई। इन्हे सनाढ्य ब्राह्मणों की शाखा माना गया है" । सनाढ्य ४. सन् १९४० में प्रकाशित गोलापूर्व डाइरेक्टरी के ब्राह्मणों का निवास भी इसी क्षेत्र के आसपास है"। लेखक न्यायतीर्थ मोहनलालजी का अनुमान था कि गोला- ३. श्रवणबेल्गोला के ३ लेखो मे व कर्णाटक मे ही पूर्व जाति तत्कालीन ओरछा स्टेट से निकली है। पाये एक अन्य लेख मे किन्ही गोल्लाचार्य की शिष्य परपरा ५. रामजीतजी जैन ने इन जातियों की उत्पत्ति की में हुए कुछ जैन मुनियों का उल्लेख है। यह कहा गया है सम्भावना श्रवणबेलगोला से बताई है। कि ये दीक्षा के पूर्व गोल्लादेश के राजा थे। इन्हे 'मूल _ जिस प्रकार गुर्जर जाति के कारण गुजरात, मालव. वंदिल्ल" (अर्थात् चन्देल) वश का कहा गया है"। गण के कारण मालवा आदि नाम हुए, उसी प्रकार गोल्ला चन्देलों की राजधानी महोबा खजुराहो मे थी व उनके जाति का राज्य होने से गोल्ला देश हुआ होगा। गोल्ला राज्य का विस्तार ग्वालियर और विदिशा तक रहा था। संस्कृत के गोप या गोपाल एवं हिन्दी के ग्वाल, गावला ४. सातवी शताब्दी मे उद्योतनसूर द्वारा लिखे कुव.
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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