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________________ अहार का शान्तिनाथ प्रतिमा लेख के दर्शन किये। प्रतिमा देखकर दोनों व्यक्ति हर्षविभोर के साथ-साथ - इसका भी निर्माण हुआ। गल्हण इसके हो गये । इस स्थान के विकास के लिए दोनो ने समीपवती निर्माता थे। जैनो को आमत्रित किया और कार्तिक कृष्ण द्वितीया मेले प्राप्ति स्थल की तिथि निश्चित की तथा मेला भरवाया। इनके यह स्थान मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में टीकमगढ मरणोपरान्त इनके पुत्रो ने क्षेत्र को सम्हाला। श्री बजाज से 20 किलो मीटर दूर पूर्व की ओर मदनसागर के तट बदलीप्रसाद जी सभापति और प० वारेलाल जी पठा पर स्थित है। पक्के रोड से जुड़ा है। बल्देवगढ़, छतरपुर मंत्री बनाये गये । ईसवी 1919 से ईसवी 1981 तक जानेवाली बसे इसी स्थान से होकर जाती हैं। श्री पं० वारेलाल जी ने लगातार 52 तक क्षेत्र की सेवा प्रस्तुत प्रतिमालेत से ज्ञात होता है कि यह स्थान की। क्षेत्र का बहुमुखी विकास हुआ। पं० वारेलाल जी सम्वत् 1937 मे चन्देल राजा परमद्धिदेव के राज्य में के मरणोपरान्त उनके ज्येष्ठ पुष डा. कपूरचन्द्र जी था। इसका शासन काल ईसवी 1166 से ईसवी 1203 टीकमगढ़ मंत्री बनाये गए जो आज भी तन मन धन से तक रहा बताया गया है। यह इस वश का भन्तिम महान सेवा-रत है। नरेश था। परिस्थितियो से विवश होकर ईसवी 1203 जहाँ यह प्रतिमा प्राप्त हुई वह स्थान 6 फुट गहरा में इसने कुतुबुद्दीन ऐबक को आधीनता स्वीकार कर ली इसमें दो प्रवेशद्वार थे। एक दरवाजे की दोनो ओर दो ' इस शासक के राज्य काल तक यह क्षेत्र समद्धिमय कमरे थे । एक कमरा बीच मे था। एक कमरे मे तलघर था । मन्दिर की चारो ओर दालान थी जिसमे तीन ओर बना रहा। इसके पश्चात् समय ने करवट बदली इसका की दालान गिर गई थी। इस खण्डहर की खुदाई मे 29 पतन आरम्भ हुआ और वह इतनी पराकाष्ठा पर जा मनोज्ञ प्रतिमायें निकली थी जो क्षेत्रीय संग्रहालय मे पहचा कि लोग स्थान छोड़ने के लिए विवश हो गए। विराजमान है। फलस्वरूप यह स्थान निर्जन हो गया । मन्दिर ध्वस्त होकर खण्डहर बन गया और नगर के स्थान में वृक्ष हो गए। मन्दिर की शिखर के पूर्वी भाग में निर्मित गन्धकुटी यह स्थान जगल बन गया। क्रूर पशु रहने लगे थे। मे खड्गासन मुद्रा में एक प्रतिभा विराजमान है। इसके प्रकृति का नियम है कि वस्तु का समा एक-सा नही केश घुघराले है । स्कन्ध भाग से इसके हाथ खण्डित है जो रहता । उत्थान के बाद पतन और पतन के बाद उन्नति वाद में जोड़े गए है । प्रतिमा की दोनो और सूड उठाए होती ही है। समय आया। इस स्थान का भी परिवर्तन एक-एक हाथी की प्रतिमा ह। हाथियों के नीचे उड़ते हुआ और इतना हुआ कि जगल मे मगल हो गया। हुए मालाधारी देवाकृतियां है। इन देवो के नीचे चमर क्षेत्र को मनोज्ञ बनाने में वर्तमान मत्री श्री डा. वाही इन्द्र सेवा में खडे है। इन दोनो इन्द्रो के नीचे दोनो कपूरचन्द्र जी और बजाज मूलचन्द्र जी न रायगपुर वालो ओर एक-एक उपासकों की करबद्ध प्रतिमायें है । आसान के पूर्वजो का विशेष योगदान रहा है। साहू शान्तिप्रसाद पर अलंकरण स्वरूप पूर्व की ओर मुख किये दो सिंहा जी ने मन्दिर का जीर्णोद्धार कराकर प्रगति में चार चाँद कृतियां भी अकित की गई है। चिह्न का अकन भी किया लगाये हैं। मंत्री डा. कपूरचन्द्र जी टीकमगढ की समर्पण गया है किन्तु दूर से देखने के कारण पहिचाना नही जा भाव से की जा रही क्षेत्रीय सेवा सराहनीय है। सका। छत के पास शिखर का पूर्व-पश्चिम भाग 19 फुट दानवीरों से कामना करता हूं कि इस क्षेत्र को 10 इंच तथा उत्तर-दक्षिण भाग 70 इव चौड़ा है। आर्थिक सहयोग देकर अपनी लक्ष्मी का उपयोग अवश्य मन्दिर का निर्माण पत्थर से हुआ है। करें। इस क्षेत्र के दर्शन और क्षेत्र को दिया गया आर्थिक सभवत: इस मन्दिर का निर्माण शान्तिनाथ प्रतिमा- योगदान विशेष पुण्यकारा होगा। अकुत शान्ति प्राप्त प्रतिष्ठा काल सम्वत् 1237 मे हुआ था। प्रतिमा निर्माण होगी ऐसा मेरा विश्वास है।
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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