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________________ बहार का शान्तिनाथ प्रतिमा सेव खड्गासन प्रतिमाओ की निम्न प्रकार गणना की गई। पूर्व पश्चिम और दक्षिण दिशाओ मे कुल 239-239 प्रतिमाएं हैं। ऊपर से नीचे छह घण्टो मे वे इस क्रम में हैं - 23,63, 64.43, 33 और 13 कुल 2391 उत्तर की ओर कुल 207 प्रतिमाएं विराजमान है। ये प्रति माए ऊपर से नीचे छह खण्डों में इस क्रम में विराजमान हैं-23, 67, 64, 31, 3 और 13 । चारों दिशाओं की कुल 924 प्रतिमाएं है ऐसा प्रतीत होता है कि सातवें भाग में चारों ओर 16-16 प्रतिमाएं रही है। पूर्व और दक्षिण की ओर मध्य में स्थित प्रतिमा के ऊपर पांच फणवाला सर्प अंकित है अतः वे प्रतिमाए तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की कही जा सकती है। पश्चिम मे चन्द्रप्रभ और उत्तर में नेमिनाथ तीर्थंकरों की प्रतिमाए हैं। यहां बायीं ओर दो पंक्ति का लेख है 1. अनेकान्त, वर्ष 9 किरण 10, पृष्ठ 384-385 से साभार । 1. यांगलिपीहिणी बाहिि • ( अपठनीय) 2. दायीं ओर एक पंक्ति णा लेख है जिसमे सम्वत् 1009 पढ़ने में आता है । यह सम्वत् 1109 होना भी संभावित है । यहा आदिनाथ, भरत और बाहुबलि की पंडित प्रतिमायें भी हैं एक फलक पर आदिनाथ प्रतिमा की दायी ओर वहुवलि और बायी ओर भरत प्रतिभा है । एक शिलाखंड पर आदिनाथ की मुख्य प्रतिमा सहित 53 प्रतिमायें अंकित है । प्रतिमाओं की सख्या से इस शिलाखंड पर नन्दीश्वर द्वीप के 52 जिनालयो की स्थापना की गई प्रतीत होती है। अन्य अनेक प्रतिमायें है। यह स्थान दर्शनीय है। वसुहाटिका - इस स्थली मे सभवतः मदनेशसागरपुर नगर का मुख्य बाजार था । रत्नपाल के पिता देवपाल यहीं रहते थे । संभवतः वे अपने समय के र्धा क पुरुष थे । पं० अमृतलाल शास्त्री ने चन्देल मदनवर्मदेव को नष्ट भ्रष्ट राजधानी का यह नाम बताया है । परन्तु राजधानी के नष्ट भ्रष्ट हो जाने से नगर के नामों में परिवर्तन हुआ नही पढ़ा गया अतः शास्त्री जी का कथन तर्कसगत प्रतीत नहीं होता है यह मदनेशसागरपुर के किसी वार्ड का नाम १७ या मुख्य बाजार का ही नाम रहा प्रतीत होता है। मदनेशसागरपुर - प्रस्तुत अभिलेख मे शान्तिनाथस्यालय के निर्माता गहण को इस नगर का निवासी बताया गया है। बारहवी शताब्दी में यहां चन्देल मदन वर्मा का शासन था। उसने यहां एक तालाब बनवाया था जिसका नामकरण उसने अपने नाम पर किया था जो आज भी 'मदनसागर' के नाम से जाना जाता है। मदन वर्मा की संभवतः यह नगर राजधानी थी । वसुहाटिका और अहार इसी के नाम है। गरहण के बाबा वसुहाटिका में और पिता इस नगर मे रहते थे। दोनों में दूरी संभवतः विशेष नहीं थी। लश्कर-वालियर के समान दोनों निकटवर्ती रहे प्रतीत होते हैं। नम्बपुर प्रस्तुत प्रतिमालेख के तीसरे श्लोक में गल्हण द्वारा यहां शान्तिनाथ चैत्यालय बनवाया जाना बताया गया है । अहार के समीपवर्ती नवरों और ग्रामों में नावई ( नवागढ़) एक ऐसा स्थान है जहां बारहवीं शताब्दी की कला से युक्त शान्तिनाथ प्रतिमा विराजमान है। म नावई को नन्दपुर से समीकृत किया जा सकता है और नावई का ही पूर्व नाम नन्दपुर माना जा सकता है । बहार का समीपवर्ती होने से नारायणपुर को भी नन्दपुर से समीकृत किया जा सकता है क्योकि वहाँ इस काल के आज भी अवशेष विद्यमान हैं। यद्यपि यहां सम्प्रति शान्तिनाथ प्रतिमान मन्दिर मे विद्यमान नहीं है चन्द्रप्रभ प्रतिमा है परन्तु शान्तिनाथ प्रतिमा के विराजमान रहे होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है । प्रतिमा-परिचय परिकर बड़गासन मुद्रा में विराजमान इस शान्तिनाथ प्रतिमा की हथेलियों के नीचे सोघमं और ईशान स्वर्गों के इन्द्र चंमर ढोरते हुए सेवा रत खड़े हैं। बायीं - ओर का इन्द्र चंगर दायें हाथ में और दायीं ओर का इन्द्र बायें हाथ में लिए है। दोनो इन्द्र आभूषणों से भूषित हैं। उनके सिर मुकुटबद्ध है। कानों में गोल कुंडल हैं। गले में दो-दो हार धारण किये हैं। प्रथम हार पांच लड़ियों का और दूसरा हार तीन लड़ियों का है। एक हार वक्षस्थल तक आया है और दूसरा हार वक्षस्थल के नीचे से होकर पृष्ठ भाग की ओर गया है । इनके हाथों में कंगन
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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