SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काशी के आराध्य सुपार्श्वनाथ 0 डॉ० हेमन्तकुमार जैन, वाराणसी वाराणसी ने अनेक विभूतियों को जन्म दिया है, कर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी जो वाराणसी मन्दिरों का शहर कहा जाता है, यहां पर एशिया के विश्वविद्यालयों में तीसरे स्थान पर विश्ववरुणा से अस्सी के बीच हर दूसरे तीसरे मकान के बाद विख्यात है। श्री स्याद्वाद विद्यालय के प्रथम छात्र श्री एक छोटा मन्दिर मिल जायगा। भदैनी में स्थित गंगा के वर्णी जी ही बने। इस महाविद्यालय ने ८५ वर्ष में हजारों सुरम्य तट जैन घाट पर श्री सुपार्श्वनाथ का जिनालय है, विद्वानों को उच्च शिखर तक पहुंचाया है। यहां प्रसिद्ध मन्दिरो मे श्री छेदीलाल का दि.जैन मन्दिर, तीर्थंकरों में भगवान सुपार्श्वनाथ सर्वाग्रणी हैं । आज भदैनी का श्वेताम्बर जैन मन्दिर, भेलूपुर के दिगम्बर, भारत में अन्य धर्म संभवतः कुछ विस्मृत अथवा लोगों की श्वेताम्बर जैन यन्दिर और धर्मशाला, मंदागिन दिगम्बर दृष्टि से ओझल हो गये हों परन्तु जैन धर्म तो प्रत्येक जैन मन्दिर और धर्मशाला ग्लालदास साहू लेन पंचायती भारतीय के मानव-मानस मे ओतप्रोत होता जा रहा है। दिगम्बर जैन मन्दिर भाट को गली जैन मन्दिर, खोजवा अहिंसा के मार्ग से चलने वाले हर प्राणी की दीर्घायु होती जैन मन्दिर, नरिया जैन मन्दिर और अन्य धर्मावलम्बियो है। तीर्थकरो का जन्म भारत की धर्म-दाम वेला में में विश्वनाथ मन्दिर, गोपाल मन्दिर, भैरोनाथ मन्दिर, हआ था, उस काल में धर्म, अर्थ एवं काम के क्षेत्र में तुलसी मानस मन्दिर, संकटमोचन मन्दिर, बौद्ध मन्दिर, सामाजिक अस्त-व्यस्तता को सुव्यवस्थित रूप प्रदान करने दुर्गा मन्दिर, कबीर मन्दिर, कीनाराम समाधि, अन्नपूर्णा, का समस्त श्रेय तीर्थंकरों को ही है। शीतला, काली मन्दिर आदि समूके नगर को गौरवान्वित सातवें तीर्थङ्कर सुपार्शनाथ का जन्म वाराणसी में करते हैं । इन्ही कारणों से कहा जाता है कि यहां कदम- हुआ था। इनके पिता का नाम सुप्रतिष्ठ तथा माता का कदम पर मन्दिर हैं। नाम पृथिवी था । हरिवंश पुराण में इनके माता-पिता का तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की जन्म भूमि भदैनी वाराणसी वर्णन इस प्रकार पाया जाता हैमें है, यहां पर एक दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण श्री पृथिवी सुप्रतिष्ठोऽस्य, काशी वा नगरी गिरिः। मान् स्व. बाबू देवकुमार जी रईस आरा वालों ने कराया स विशाखा शिरीषश्च सुपापर्वश्च जिनेश्वरः ।। था। एक बार क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी वाराणसी यात्रा अर्थात् पृथिवी माता, सुप्रतिष्ठ पिता काशी नगरी, पर आये, उन्होन समाज के सामने एक संस्कृत विद्यालय सम्मेदशिखर निर्माण क्षेत्र, विशाखा नक्षत्र, शिरीष वृक्ष खोलने की योजना का प्रस्ताव रखा। जिसमे पहले सह- और सुपार्श्व जिनेन्द्र ये सब तुम्हारे लिए मंगल स्वरूप हों। योग देने वाल श्री झम्मनलाल जी कामावाले थे इन्होंने श्री कविवर वृन्दावन जी कृत श्री वर्तमान जिन चतुवर्णी जी को एक रुपया दान दिया। वर्णी जी ने एक रुपये विशति जिन पूजन में कहा गया हैके ६४ पोस्टकार्ड खरीद कर ६४ स्थानो पर डाल दिया नप सुपरतिष्ठ वरिष्ठ इष्ट, महिष्ट शिष्ट पृथी प्रिया । सभी जगह से सहायता राशि माने लगी। ज्येष्ठ शुक्ला सुपाश्र्वनाथ का पूर्व भव में जन्म जम्बूद्वीप के विदेह पंचमी दिनांक १२ जून १९०५ ई० को श्री स्यावाद विद्या- क्षेत्र में हुआ था। घातकीखण्ड दीप की नगरी क्षेमपुरी लय का उद्घाटन हुआ। वर्णी जी की तरह महामना थी। इसका नाम नन्दिषेण था। तथा महामण्डलेश्वर और मदनमोहन मालवीय ने एक रुपये के ६४ पोस्टकार्ड खरीद ग्यारह अंग के वेत्ता थे। इन्होंने सिंह निष्कोडित तप कर सा
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy