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________________ १२, वर्ष ४४, कि०४ अनेकान्त Q (२५) सिद्धचक्र यन्त्र एतेषा.. .. ताम्र पातु से निर्मित ६ इंच के चौकोर फलक पर ६. .............."सम्यकचारित्र । इस यन्त्र में तीन पंक्ति का लेख उत्कीर्ण है पाठ टिप्पणी १. पं० (पण्डित) मौजीलाल जैन देवराहा मन्दिर यह यन्त्र लेख 'प्राचीन शिलालेख' पुस्तक मे लेख बी को मेंट नम्बर १२५ से प्रकाशित हुआ है जिमम अन्तिम तीन १. फाल्गुन सुदी १२ रविवार संवत् २०२१ पपौराजी पंक्तियां नहीं हैं । इस लेख मे अनुनासिक अनुस्वार के रूप ३. गजरथ महोत्सव । में, संख्या बंकों में और शुक्ल शब्द के लिए 'सि' शब्द भावार्थ-पपोग क्षेत्र में सवत् २०२१ के फाल्गुन का व्यवहार हुआ है। शुक्ल द्वादशी रविवार के दिन हुए गजरथ महोत्सव में भावार्थ-सम्वत् १६४२ के फाल्गुन सुदि १० शुक्रदेवराहा निवासी पडित मौजीलाल जी जैन को भेंट मे वार मगसिर नक्षत्र में अकबर जनालुद्दीन महाराज के दिया। राज्य में उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद नगर में श्रीमूल सघ, (२६) विनायक यन्त्र बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ, कुन्दकुन्दाचार्य को आम्नाय यह यन्त्र ५ इंच के चौकोर ताम्र फलक पर उत्कीर्ण के भट्टारक श्रीधर्मकीतिदेव के पट्ट के उत्तराधिकारी भट्टहै। इस पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। रक शीलसूत्रनदेव और इनके पश्चात् पट्ट प' बैठने वाले (२७) तेरहविधचारित यन्त्र भचरक ज्ञानसूत्रदेव की आम्नाय के शाह हरजू के गुप यह यन्त्र ताम्र धातु के ६.२ इंच चौकोर फलक पर दोदि और नगरु इनमे दोदि के पाच पुत्र-लोहग, धरणीनिर्मित है। यन्त्र का भाग फलक के मध्य मे ४३ इंच धर, भायारु, दोसीलो और श्री कमल । इनमें कमलापति वर्तलाकार है। वाह्य भाग मे गुलाई मे संस्कृत भाषा के तीन पुत्र-मित्रमेनि, चन्द्रगनि, उदयसेनि तथा मित्रऔर नागरी लिपि मे उत्कीर्ण किया गया छह पंक्ति का सेनि के पुत्र-ससुरामल्ल और चन्द्र सेन के पुत्र ने इस लेख है जो यन्त्र के टूटे हुए कोण से आरम्भ होता है। यन्त्र की प्रतिष्ठा कराई। यह यन्त्र भेंट स्वरूप इस क्षेत्र लेख निम्न प्रकार है। को प्राप्त हुआ ज्ञात होता है। मूल पाठ (२८) सोलहकारण यंत्र १. संवत् (सम्वत्) १६४२ फाल्गुन सित (शुक्ल) यह यन्त्र ताम्र धातु के ६ इच चौकोर एक फलक के १० गुरी मगे श्री अवरजलालस्य राज्ये पेरोजावादे श्री मध्य मे ऊपर उठे हुए भाग पर सोलह भागो में उत्कीर्ण मलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकंदाचार्यान्वये है। यन्त्र के ऊपरी भाग मे दो पक्ति का सस्कृत भाषा भट्टारक श्री और नागरी लिपि में एक लेख भी अंकित है जिसमे सवत् २. र्मकीत्तिदेवास्तत्प? श्री भट्टारक शीलसूत्रनदेवा- सूचक अंक अपठनीय है। लेख निम्न प्रकार हैस्तत्पट्ट भट्टारक श्री ज्ञानसूत्रदेवास्तदाम्नाये लवकंचुक मलपाठ जातो साधु १. इं (ऐ)द्रं पदं प्राप्य पर प्रमोद धन्यात्मतामात्मनि३. श्रीहरुजू पुत्री-२ दोदि-नगरू तत्र दोदि भार्या प्रभा मान्यमाना (न:) ....." (दक) शुद्धितत्पुत्राः ५ लोहग धरणीध २. मुख्यानि जिनेंद्रलक्ष्म्या महाम्यह षोडश-कारणानि ४. र भायारु-दोसी लो-श्री कमले तत्र लोह-(गु) ॥१॥ अथ संवत् (अंक नहीं है) पाठ टिप्पणी ५. ........."कमलापति भार्या माता तत्पपुत्रा: ३ इस यंत्र-लेख में उल्लिखित श्लोक के चारो चरणों मित्रसेनि-चद्रसेनि-उदयसेनि । तत्र मित्रसेन (न) भार्य(फ) में ११-११ वर्ण हैं। प्रथम तीन चरणो मे वर्ण तगण-लगणपराणमती तत्पत्रो ससुरामल्ल-चंदसेन भार्या कल्हण जगरण दो गुरु के क्रम मे है किन्तु अन्तिम चरण में जगण, भार्या
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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