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विचारणीय:
ईसा मसीह और जैन धर्म
० एम० एल० जैन, नई दिल्ली
निकोलस नोटोविच नामक रूसी यात्री ई.सन् १८७७- दिया परन्तु वह नही रुका और अपनी ज्ञान पिपासा को ७८ में भारत-तिब्बत यात्रा पर निकला मध्य ए शया, शांत करने के लिए तत्समय चचित जगन्नाथ (पुरी) को फारस, अफगानिस्तान, और पंजाब होता हुआ कश्मीर तरफ बढ़ चला। बाया और वहां से लद्दाख की राजधानी लेह पहुंचा । वहां जगन्नाथ में ईसाने छह वर्षों तक संस्कृत भाषा, दर्शन, पर वह बोद्ध मठ 'हिमिस' गया जहां पर उसे पता चला आयुर्वेद, गणित आदि का अध्ययन किया परन्तु वर्ण कि तिम्बत की राजधानी ल्हासा में ईसा मसीह के जीवन व्यवस्था में शद्रों की दुर्दशा देखकर उसका प्रकट विरोध का इतिवृत्त तिब्बती भाषा मे मोजूद है और उसकी प्रति- करने लगा। परिणाम में ब्राह्मणो का कोप-भाजन बन लिपि के अश हिमिस मठ के पुस्तकालय मे भी है। उसके गया और जान बचाकर भागा तथा नेपाल में जाकर अनुनय पर प्रमुख लामा ने उसे वे पढ़कर सुनाए जिनका शरण ली। नेपाल में ईसा ने बौद्ध धर्म का अध्ययन अनुवाद उसका दुभाषिया करता जाता था और नोटोविच किया। यह अध्ययन छह वर्षों तक चला। तब तक वह नोट लेता जाता था। इन्ही टिप्पणियो का अग्रेजी अनुवाद भी छब्बीस साल का हो चला था। सन् १८६० मे प्रकाशित हुआ जिसका पुनसंस्करण सन् भारत से इस प्रकार, जैन, वैदिक व बौद्ध दर्शनों का १९८१ मे कलकत्ता के नवभारत पब्लिशर्स ने निकाला। सार अपने मानस में संजोकर वह फारस होता हुआ तीम यह है-The unknown life of jesus christ. वर्ष की आयु मे अपने वतन यहूदीस्तान में प्रकट हुआ।
इस विवरण को पढ़ने से पाया जाता है कि तेरह वर्ष मार्ग में मूर्ति पूजा, नर बलि प्रादि कुरीतियों के विरुद्ध की प्रायु प्राप्त करने पर जब माता-पिता ने उसको दाम्पत्य प्रचार भी करता गया। सत्र में बांधना चाहा तो ईसा विबाह स्थल पर न पहुचकर आगे का इतिहास तो लोक विदित है। ईसा के बोरी-छपे चुपचाप भारत की राह पर चल पड़ा पोर सिद्धान्त भारत की श्रमण सस्कृति से जो इतनी समानता सिन्धु नदी पार करके आर्यावर्त में प्रविष्ट हुआ। तब तक रखते है उसग कारण जैन व बौद्ध धर्मों का प्रभाव है यह वह चौदह साल का हो चुका था।
वात नोटोविच द्वारा उद्घाटित तिब्बती ग्रथ मे अकित पंजाब पहुंच कर राजपूताना (राजस्थान) मे आया इतिहास से साबित हो जाती है। अतः ईसाई धर्म को और यहां वह जैन मदिरो मे ज्ञानार्जन के लिए घूमता अनायो या म्लेच्छो का धर्म कहना बड़ी भारी भूल लगती रहा। नोटोविच के अनुसार जैनधर्म बौद्ध और ब्राह्मण है। ईसाई धर्म भारत का स्वदेशीय धर्म है और है भारत धर्मों के बीच की कड़ी है। इसका प्रचार-प्रसार ईसा से की श्रवण सस्कृति का परिस्थिति जन्य रूपान्तरण । ७०० वर्ष पहले से चला आ रहा है। यह जैनमत अन्य . अब तो यह भी माना जाने लगा है कि शूली पर मतों का बण्डन करता है और उन्हें मिथ्यात्व में भरा हुआ चढ़ाए जाने के बाद भी ईसा जीवित रहा और उसके बतलाता है इसी कारण जैन शब्द का अर्थ है कि उसके मतप्रायः शरीर को लेकर उसकी माता मरियम ने न जाने सस्थापकों ने प्रतिद्वन्दी मतों पर विजय प्राप्त करली है। किस आशाब देवी प्रेरणा के साथ चलकर भारत में शरण ऐसे जैन धर्म के अनुपायिनों ने जब देखा कि ईसा एक ली। यहां वह पूर्ण स्वस्थ हो गया। यह उस का पुनर्जन्म चैतन्य नवयुवक है तो उसे अपने यहां रहने का निमंत्रण ही था परन्तु वह शत्रुओं की ओर वापस न जा सका।'