________________
आगमों से चुने : ज्ञान-कण
संकलयिता-श्री शान्तिलाल जैन, कागजी
१. तत्त्व तो सात हैं-१. बंध और बघ के कारण, २. (आस्रव), ३. मोक्ष और मोक्ष के कारण, ४. संवर,
५. निर्जरा, ६. जीव और ७. अजीव ।। २. सत्य पाया जाता है बनाया नहीं जाता। ३. शुद्ध दार्शनिक का नारा होता है सत्य सो मेरा, कुदार्शनिक का हो हल्ला होता है मेरा सो सत्य । ४. सुख तो अन्तरङ्ग में रागादिक दोष के अभाव मे है । ५ राग दूर करने की चेष्टा करना रागादि की निवृत्ति नहीं करना। राग में जो कार्य हो उसमे हर्ष-विषाद न ___ करना ही उसके विनाश का कारण है।
-वर्णी जी ६. भेदविज्ञान का अनुभव हो, चाहे कषाय का अनुभव हो, बध का कारण अन्तरङ्ग अभिप्राय है। -वर्णी जी ७. जिस समय अविरत सम्यग्दृष्टि विषयानुभव करता है उस समय तथा जिस समय वह स्वात्मानुभव करता है उन दोनों अवस्थाओ में चतुर्थ गुणस्थान ही तो रहता है।
-वर्णी जी ८. इस तरफ कुछ नही है और दूसरी तरफ भी कुछ नहीं है तथा जहा-जहा मैं जाता हूं वहा वहां भी कुछ नहीं है। विचार करके देखता हूं तो यह संसार भी कुछ नहीं है । स्वकीय आत्मज्ञान से बढ़कर कोई नही है।
-अमृतचद्र सूरि ६. मिथ्यात्व की अनुत्पत्ति का नाम ही तो सम्यग्दर्शन है और अज्ञान की अनुत्पत्ति का नाम सम्यग्ज्ञान तथा रागाकी अनुत्पत्ति यथाख्यातचारित्र और योगानुत्पत्ति ही परम यथाख्यात चारित्र है।
वर्णी जी १०. घट के घात से दीपक का घात नही होता । ११. आत्मा में मोक्ष है स्थान मे मोक्ष नहीं । १२. परपदार्थ व्यग्रता का कारण नहीं, हमारी मोह दृष्टि व्यग्रता का कारण है १३. एक वस्तु का अन्य वस्तु से तादात्म्य नही । पदार्थ की कथा छोड़ो। एक गुण का अन्य गुण और एक पर्याय का अन्य पर्याय के साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं ।
-वर्णी जी १४. पर के द्वारा की गई स्तुति-निन्दा पर हर्ष-विषाद करना, अपने सिद्धान्त पर अविश्वास करने के तुल्य है। १५. यः परमात्मा स एवाहं योऽड स परमस्ततः । अहमेव मयोपास्यः नान्यः कश्चिदिति स्थितिः॥
जो परमात्मा है वही मैं हूं और जो मैं हूं सो परमात्मा है। अतः मैं अपने द्वारा ही उपास्य हं, अन्य कोई नहीं
ऐसी ही वस्तु मर्यादा है। १६. अनन्त वीर्य उत्पन्न हो जाने पर भी जब तक मनुष्यायु कर्म की स्थिति शेष है उस समय तक अघातिया कमा ___ का भय नही हो सकता है। १७. अन्तिम तीर्थंकर श्री १००८ महावीर स्वामी के तीर्थ काल मे (१) नमि (२) मतङ्ग (३) सोमिल (४) रामपुत्र
(५) सुदर्शन (६) यमलोक (७) वलिक (८) विषाम्बिल (६) पालम्बष्ट (१०) पुत्र । इन दस मुनीश्वरों ने तीव्र उपसर्ग सहन कर केवलज्ञान प्राप्त किया।
-द्वादशांग का आठवां अङ्ग
कागज प्राति :-श्रीमती अंगूरो देवो मैन (धर्मपत्नी श्री शान्तिलाल जैन कागजी) नई दिल्ली-२ के सौजन्य से