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१८, वर्ष ४३; कि०२
अनेकान्त
'चाउम्मासुक्कोसे' सत्तरि राइंदिया जहणेणं । पर विचार करते हैं तब हमें विशेष निर्देश मिलता है ठितमट्टितगेमतरे, कारणे बच्चासितऽणयरे ।।
-जीत क. २०६५ पृ० १७६ "एवं पर्वेसु सर्वेसु चतुर्मास्यां च हायने । विवरण -'उत्कर्षत: पर्युषणाकल्पश्चतुर्मासं यावद्- जन्मन्यपि यथाशक्ति स्व-स्व सत्कर्मणां कृति ॥" भवति, अषाढ पूणिमायाः कार्तिकपूणिमां यावदित्यर्थः
धर्म स० ६९ पृ० २३५ अशिवादी कारणे समुत्पन्ने एकतरस्मिन् मासकल्पे पर्युष
-~-वर्ष के चतुर्मास के सर्व पों में और जीवन में भी णाकल्पे वा व्यत्वासितं विपर्यस्तमपि कुर्यः ।
यथाशक्ति स्व-स्व धार्मिक कृत्य करने चाहिए। (यह -अभि० रा. भाग० ५ पृ० २४५ विशेषतः गहस्थ धर्म है)। इसी श्लोक की व्याख्या में पर्युषण कल्प के समय की उत्कृष्ट मर्यादा चतुर्मास पर्वो के सम्बन्ध में कहा गया है कि(१२० दिन रात्रि) है। जघन्य मर्यादा भाद्रपद शुक्ला "तत्र पर्वाणि चैवमुचःपंचमी से प्रारम्भ कर कार्तिक पूर्णिमा तक (सत्तर दिन) "अटुम्मि चउद्दसि पुण्णिमा य तहा मावसा हवइ पवं की है। कारण विशेष होने पर विपर्यास भी हो सकता मासंमि पन्च छक्क, तिन्नि अ पब्वाई पक्खंमि ॥" है-ऐसा उक्त कथन का भाव है।
"चाउद्दसट्ठमुद्द8 पुण्णमामी त्ति सूत्रप्रामाण्यात्, महा. इस प्रकार जैनो के सभी सम्प्रदायो मे पर्व के विषय निशीथेतु ज्ञान पचम्यपि पर्वस्वेन विभूता । अट्ठमी, चउहमें अर्थ भेद नहीं है और ना ही.समय की उत्कृष्ट मर्यादा सीसुं नाण पंचमीसु उववासं न करेइ पच्छित्तमित्यादिवचमें ही भेद है। यदि भेद है तो इतना ही है कि (१) दि. नात् । एष पर्वसु कृत्यानि यथा-पोषधकरणं प्रति पर्व श्रावक इस पर्व को धर्मपरक १० भेदों (उत्तम, क्षमा,
तत्करणाशक्ती तु अष्टम्मादिषु नियमेन । यदागमः,मार्दवाव, शौच, सत्य, संयम, तपस्त्याग, अकिंचन्य,
'सव्वेसु कालपव्वेसु, पसत्थो जिमए हवइ जोगो। ब्रह्मचर्याणि धर्मः) की अपेक्षा मनाते है और प्रत्येक दिन
अट्ठमि चउद्दसीसु अ नियमेण हवइ पोसहिओ॥' एक धर्म का व्याख्यान करते हैं। जबकि श्वेताम्बर सम्प्र
-धर्म स० (व्याख्या) ६६ दाय के श्रावक इसे आठ दिन मनाते है। वहीं इन दिनों -पर्व इस प्रकार कहे गये हैं-अष्टमी चतुर्दशी, मे कही कल्पसूत्र की वाचना होती है और कही अन्तकृत पूणिमा तथा अमावश्या, ये मास के ६ पर्व हैं और पक्ष के सूत्रकृतांग की वाचना होती है। और पर्व को दिन को ३ पर्व हैं। इसमे 'चउद्दसट्ठमठ्ठिपुणिमासु' यह सूत्र गगणना आठ होने से 'अष्ट'-आह्निक (अष्टाह्निक अठाई) प्रमाण है । महानिशीथ में ज्ञान पंचमी को भी पर्व प्रसिद्ध कहते हैं । साधुओ का पर्युषण तो चार मास ही है। किया है । अष्टमी, चतुर्दशी और ज्ञान पचमी को उपवास
न करने पर प्रायश्चित का विधान है। इन पदों के दिगम्बरों में उक्त पर्व भाद्रपद शुक्ला पंचमी से
कृत्यों में प्रोषध करना चाहिए। यदि प्रति पर्व में उपवास प्रारम्भ होता है और श्वेताम्बरो में पंचमी को पूर्ण होता की शक्ति न हो तो अष्टमी, चतुर्दशी को नियम से करना भादोनों सम्प्रदायों में दिनों का इतना अन्तर क्यो? ये चाहिए। आगम में भी कहा है-'जिनमत में सव निश्चित शोध का विषय है । और यह प्रश्न कई बार उठा भी है।
न कई बार उठा भा है। पर्वो में योग को प्रशस्त कहा है और अष्टमी, चतुर्दशी के
जो समझ वाले लोगों ने पारस्परिक सोहा वाद्ध हेतु ऐसे प्रोषध को नियमतः करना बतलाया है। प्रयत्न भी किए हैं कि पर्युषण मनाने की तिथियां दोनो मे
उक्त प्रसंग के अनुसार जब हम दिगम्बरों में देखते हैं एक ही हो । पर, वे असफल रहे हैं।
तब ज्ञात होता है कि उनके पर्व पंचमी से प्रारम्भ होकर पर्यषण के प्रसंग में और सामान्यतः भी, जब हम तप (रत्नत्रय सहित) मासान्त तक चलते हैं, और उनमें आगम प्रोषध आदि के लिए विशिष्ट रूप से निश्चित तिथियों विहित उक्त सर्व (पंचमी, अष्टमी, चतुर्दशी और पूर्णिमा)
पामाहा