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________________ दिगम्बर मुनियों को जीवन चर्या D कुमारी विभा जैन, एम. ए. शोध छात्रा दिगम्बरत्व प्रकृति का रूप है। वह प्रकृति का दिया चर्या से ससार की मानव जाति का बहुत थोड़ा हिस्सा हुआ मनुष्य का वेष है। आदम और हव्वा इसी रूप मे परिचित है। रहे थे। दिशाएँ ही उनके अम्बर थे-वस्त्रविन्यास उनका दिगम्बर मुनि २८ मूलगुणों का निर्दोष परिपालन वही प्रकृतिदत्त नग्नत्व था। वह प्रकृति की अचल मे सुख अचल में सुख करते हुए आत्म साधना मे रत रहते है। साथ ही प्राणी को को नीद सोते और आनन्दलोरियां करते थे। इसलिए .. मात्र के प्रति मैत्री प्रमोद कारुण्य और मध्यस्थ भावना कहते हैं कि मनुष्य को आदर्श स्थिति दिगम्बर है। नग्न की चरमोत्कर्षता को परिप्राप्त होते है। २८ मूलगुणों के रहना ही इसके लिए श्रेष्ठ है। इसमें उसके लिए अशिष्टता अतिरिक्त दस लक्षण धर्म, द्वादशतप, द्वादशानुप्रेक्षाचिंतन, असभ्यता की कोई बात नहीं है, क्योंकि दिगम्बरत्व अथवा द्वविंशति, परीषह, जप आदि को भी वे जीवन का अभिन्न नग्नत्व स्वयं अशिष्ट अथवा असभ्य वस्तु नही है । वह तो। अंग मानते हुए शिवमुक्ति भाजन बनते है । मनोविजयी मे मनुष्य का प्राकृत रूप है। ईसाई मतानुसार आदम और मुनिराज इस प्रकार पांच इन्द्रिय रूप में ही परिगणित हव्वा नंगे रहते हुए कभी न लजाये और न वे विकास के है, क्योकि वे अनिन्द्रिय हैं और सभी इन्द्रियो का राजा चगुल में फंसकर अपने सदाचार से हाथ धो बैठे । किन्तु ममस्त जगत में मन के अधीन होकर पचेन्द्रिय सम्बन्धी जब उन्होंने बुराई-भलाई, पाप-पुण्य का वजित फल खा विषय भोगों में मग्न हैं। उससे विपरीत जिनके मन में लिया, वे अपनी प्रकृति दशा खो बैठे--सरलता उनकी भौतिकता का साम्राज्य नही है, ऐसे मनोविजयी मुनिराज जाती रही। वे ससार के साधारण प्राणी हो गये। बच्चे पचेन्द्रिय का निरोध करते हुए आत्म निमग्नता प्राप्त को लीजिए, उसे कभी भी अपने नग्नत्व के कारण लज्जा करते है। का अनुभव नही होता और न उसके माता-पिता अथवा शेष पुण-केशलुंचन, नग्नता, अस्नान, पिच्छिअन्य लोग ही उसकी नग्नता पर नाक-भौ सिकोड़ते है। कमण्डलु तथा खड़े होकर आहार लेना आदि मुनि के विशेष मनुष्य मात्र की आदर्श स्थिति दिगम्बर ही है। गुण हैं। इन सभी के विषय मे अनेक प्रश्न उठते हैं कि आदर्श मनुष्य सर्वथा निर्दोष है-विकारशून्य ही होता है। मुनि उनको क्यो करते हैं ? इसका समाधान इस प्रकार जन्म मरण पर्यन्त वस्त्रों में जीवन व्यतीत करने किया गया है :वाला मानव दिगम्बर साधुओ की नग्नता को देखकर समाज में असभ्यता का प्रतीक मानता है। किन्तु वस्तुतः केशलोंच :कृत्रिम जीवन में आनन्द से अनभिज्ञ होकर ही ऐसा करते २२ परीषह का सहन करना अपेक्षित होता है । केशहैं । उनका मन वासनाओं से शून्य होता है। लौकिक जीव लोच भी इसी के साथ जोड़ दिया गया है। इसके दो से घृणा करते हैं, वे दिगम्बर मुनिराज अन्तर वाह्य में ___ कारण हैं :एक समान दिगम्बर है अर्थात् उनका अन्तःकरण वास- (क) एक कारण तो शारीरिक शृगार विहीनता और . नाओं से रहित है। पीड़ा पर विजय पाना। दूसरा कारण है वैज्ञानिक सूर्य दिगम्बरत्व वस्तुतः प्राकृतिक और निर्विकारी वेष है ऊर्जा का केन्द्र है और उसका आयात शरीर के ऊर्द्ध अंगों और आत्मसाधना में निव'ध मार्ग है। दिगम्बर मुनि की द्वारा हुआ करता है। शरीर का सबसे ऊँचा भाग है
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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