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________________ १४ बर्ष ४२, कि०२ बनेका विशेषताओं को जानने के लिए उनका प्रकाशन आव. एवं पंचास्तिकाय इन तीनों पर अमृतचन्द्र एवं जिनसेन के श्यक है। समान ही संस्कृत टीकाएँ लिखी थीं ऐसा उल्लेख भी समयसार पी हिन्दी टीकाओ मे कविवर दौलत राम मिलता है, लेकिन इन टीकाओं की अभी तक कोई पाण्डुकासलीवाल एव प. सदासुख दास जी कासलीवाल की लिपि उपलब्ध नहीं हो सकी है और जिनके खोज की टीकायें अभी तक अप्रकाशित हैं। दोनों ही विद्वान अपने आवश्यकता है। अपने युग के बहुत बड़े विद्वान थे। इसलिए उनकी पंचास्तिकाय की महत्त्वपूर्ण हिन्दी टीकाओं में प० टीकाओं का प्रकाशन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हेमराज, हीरानन्द और प० बुधजन की हिन्दी पद्य होगा। टीकाएँ महत्त्वपूर्ण है लेकिन अभी तक किसी भी टीका को प्रवचनसार पर सस्कृत मे अमृतचन्द्र, जयसेन, प्रभा प्रकाशन नही हुआ है। हेमराज एव हीरानन्द की हिन्दी चन्द्र एव मल्लिषेण ने टीकाये लिखी है। करीब ५० वर्ष टीकाएँ १७वी शताब्दी की एव प. बुधजन ने १९वी पूर्व डा० उपाध्य ने प्रवचनसार का आचार्य अमनचन्द्र, शताब्दी में पंचास्तिकाय का महत्त्वपूर्ण पद्यानुवाद किया जयसेन एव प० हेमराज की हिन्दी सहित अपनी खोजपूर्ण था । ये सभी पद्यानुवाद अप्रकाशित है और प्रकाशन की प्रस्तावना के साथ प्रकाशित कराया था। इसके पश्चात बाट जोह रहे हैं। अजमेर से आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने मूलगाथाओ को हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित कराया था। प्रवचन- आचार्य कुन्दकुन्द का अष्ट पाहुड भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथ मार पर प्रभाचन्द्र की सस्कृत टीका अभी तक अप्रकाशित है। अष्ट पाहुड पर पं० जयचन्द्र की हिन्दी गद्य टीका है। मल्लिषेण की सस्कृत टीका का डा. उपाध्ये ने मिलती है जो प्रकाशित हो चुकी है लेकिन षट् पाहुड की उल्लेख किया है लेकिन राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में हिन्दी पद्यानुवाद देवीसिंह छाबड़ा ने संवत् १८०१ में अभी तक इस टीका की उपलब्धि नहीं हो सकी है। इस- पूर्ण किया था जो अभी तक अप्रकाशित है। १८वी लिए मल्लिषेण टीका की खोज की विशेष आवश्यकता है। शताब्दी में भूधर कवि ने संस्कृत मे भी षट् पाइड पर टीका लिखी थी वह भी अप्रकाशित है। प्रवचनमार को हिन्दी टीकाओं में केवल हेमराज की हिन्दी गद्य टोका काही प्रकाशन हुआ है, इसकी हिन्दी इस तरह प्राचार्य कुन्दकुन्द के मूल अथ तो कितने ही पद्य टीका अभी तक अपने प्रकाशन को बाट जोह रही है। स्थानो से प्रकाशित हो चुके है लेकिन उनकी सस्कृत एवं इसके अतिरिक्त जोधाल गोदका, प० देवीदास एव पं० हिन्दो टोकाये अभी तक अप्रकाशित हैं, जिनका प्रकाशन वृन्दावन दस ने भी हिन्दी पद्य टीकाएं लिखी थी। ये द्विसहस्राब्दी वर्ष की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी सभी टीनाएं अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है जो प्रवचनसार के जायेगी। हरय को पाटको के सामने रखती है, इसलिए इन सभी श्री महावीर ग्रंथ अकादमी, जयपुर की ओर से टीकाओ का प्रकाशन आवश्यक है। प्रवचनसार, पंचास्तिकाय एवं षट्पाहुड की अप्रकाशित पचास्तिकाय आचार्य कुन्दकुन्द के उन ग्रंथो मे से है । हिन्दी पद्य टीकाओं के प्रकाशन की योजना विचाराधीन जिसको नाटक त्रय में स्थान प्राप्त है। पचास्तिकाय पर है। यदि समाज का महयोग मिला तो अकादमी द्विसहभी आचार्य अमृत चन्द्र एव जयसेन की संस्कृत टीकाएं र साब्दी वर्ष मे ही इन सबके प्रकाशन हो सकेंगे। खा मिलती है । और दोनो का ही प्रकाशन हो चुका है लेकिन अभी तक प्रभाचन्द्र की टीका का प्रकाशन नही हुआ है। ८६७ अमृत कलश, किसान मार्ग टोंक रोड, इनके अतिरिक्त ब्रह्मदेव ने भी समयसार, प्रवचनसार जयपुर-१५
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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