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धवला पु० ६ का शुद्धिपत्रक शुद्धिपत्रकार सि० शि० स्व. रतनचन्द मुख्तार (सहारनपुर) एवं
जवाहर लाल जैन-(भीण्डर) उदयपुर
पृष्ठ
पक्ति
अशुद्ध
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पड़ता जिनेन्द्र का xxx [पुनरुक्तित्वात् शोधितम्] व कर्म से रहित
पढता जिनका सविस्लसोवचए कर्म मे रहित व अपने विसयोपचय से सहित। पण्णुवीस वग्गणसुत्तादो। Xxx तदियदववियप्पतदियभावम्हि तृतीय द्रव्य विकल्प को तृतीय भाव विकल्प को
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महानता को दो सौ पचास बि णियमेणं उत्पन्न होता है। मनलब्धि
पण्णवीसं वग्गणसुत्तादो।' धवला पु० १३पृष्ठ २८६ पुवदव्ववियप्पपुवभावम्हि पूर्व के द्रव्य विकल्प को पूर्व के भाव विकल्प को [तृतीयद्रव्यभावविकल्पास्तु २६ इत्यस्मिन् पृष्ठाके वणिताः] महत्ता को दो सौ पचावन वि णियमेणं उत्पन्न होती है। मनोलब्धि [इसी तरह सर्वत्र मनलब्धि की जगह मनोल ब्धि करना] शरीर पांच वर्ष ध० अ० प० ११६८; धवल पु० १३ पृ. २३५ घ. अ. प. ११६८; धवल पु. १३ पृ. २३५-३६ ध. अ. प. ११६६ धवन पु. १३ पृ. २३६ परस्पर भिन्न-भिन्न रूप होने से छठी अतीत मूल व प्रत्येक शरीर; ये पर्याप्त अकसाय..-मणपज्जवणाणिकेवलणाणि-संजदसुद्धिसजद-केवलदसणीसु
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१५२
२१३ २५३
सरीर पांच दिन ध० अ० १० ११६८ ध० अ० १० ११६८ ध० अ० १० ११६६ परस्पर एक दूसरे रूप होने से छह अतीत वर्गमूल व प्रत्येक शरीर पर्याप्त अकसाय-सजद. सुद्धिसंजदेसु
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