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परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्पन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वर्ष ४१ किरण ३
वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण संवत् २५१४, वि० सं० २०४५
जुलाई-सितम्बर
१९८८
गुरु-स्तुति कबधों मिले मोहिं श्रीगुरु मुनिवर, करिहैं भव-दधि पारा हो। भोग उदास जोग जिन लीनों, छांडि परिग्रह भारा हो। इन्द्रिय-दमन वमन मद कोनों, विषय-कषाय निवारा हो। कंचन-कांच बराबर जिनके, निंदक वंदक सारा हो। दुर्धर तप तपि सम्यक निज घर, मन वच तन कर धारा हो। ग्रीषम गिरि हिम सरिता तीरें, पावस तरुतर ठारा हो। करुणा भीन, चीन स थावर. ईर्यापंथ समारा हो ॥ मार मार, व्रतधार शोल दृढ़, मोह महामल टारा हो । मास छमास उपास, वास वन, प्रासुक करत अहारा हो। आरत रौद्र लेश नहिं जिन, धरम शुकल चित धारा हो। ध्यानारूढ़ गूढ़ निज आतम, शुध उपयोग विचारा हो। आप तरहिं औरन को तारहिं, भवजलसिंधु अपारा हो । "दौलत" ऐसे जैन जतिन को, नित प्रति धोक हमारा हो ।