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________________ श्री भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद् का पत्र दिनांक २३-६-८८ श्रीमान् ला० सुभाषचन्द जी जैन (महासचिव) एवं श्रीमान् पं० पद्मचन्द जी शास्त्री एम०ए० संपादक "अनेकान्त" श्री वीर सेवा मन्दिर दरियागंज, नई देहली सादर जयजिनेश । दिगम्बर जैन आगम ग्रन्थों में मूल शब्दों के बदलने की प्रक्रिया के विषय में अध्यक्ष महोदय के पास जयपुर भेजा हुआ आपका पत्र प्राप्त हुआ। मैं षट्खण्डागम स्वाध्याय हेतु ललितपुर में आयोजित स्वाध्याय शिविर के समापन के अवसर पर ३ दिन ललितपर रहा। वहाँ माननीय डा. पन्नालाल जी. डा० कोठिया जी तथा अन्य कई विद्वानों से इस विषय पर चर्चा हुई। आगमों की भाषा कौन-सी प्राकृत है, यह तो एक गम्भोर विचारणीय बात है। इस पर समाज के सुप्रसिद्ध प्राचीन शोध संस्थान "वीर सेवा मन्दिर" को प्राकृत के अधिकारी विद्वानों को एक साथ बिठाकर उनसे निर्णय कराना चाहिए। ताकि हमेशा के लिए यह विषय सुलझ जाय । प्राचीन आर्ष ग्रन्थों के संपादन में शब्दों के बदलने के विषय में "प्राचीन ग्रन्थों के संपादन की सर्वमान्य परिपाटी यह है कि उनके शब्दों में उलटफेर न करके अन्य प्रतियों में जो दूसरे रूप मिलते हों, परिशिष्ट में या टिप्पणी में उनका उल्लेख कर दिया जाय। यदि सम्पादक महोदय को उस विषय में अपनी ओर से किसी नये रूप का सुझाव देना है तो वह भी नीचे टिप्पणी में दे दिया जाय। ग्रन्थ लेखक के समय भाषा और व्याकरण की क्या स्थिति थी और लेखक ने किस रूप में शब्दों का प्रयोग किया है उसकी सुरक्षा हेतु छेड़छाड़ न करना ही सम्यक् मार्ग है। इसी मार्ग का संपादन में अनुसरण होना चाहिए।" "भाषाओं के विकास का अपना इतिहास है। क्षेत्र और काल के भेद से उनके रूपों में भेद होना भी स्वाभाविक है। २००० वर्ष के लम्बे समय के बाद उनकी सही स्थिति पर पहुंच पाना अत्यन्त कठिन है। ऐसी दशा में जो लिखा है उसमें परिवर्तन न करके अपनी राय टिप्पणी में दिया जाना ही उन ग्रन्थों की प्राचीनता और वास्तविकता की रक्षा का परिचायक है।" शेष शुभ, आपका अपना: हीरालाल जैन 'कौशल' मंत्री आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०० २० वार्षिक मूल्य : ६) ३०, इस अंक का मूल्य : १ रुपया ५० पैसे विद्वान् लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र होते हैं । यह आवश्यक नहीं कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एवं समाचार प्रायः नहीं लिए जाते।
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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