SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६, वर्ष ४१, कि०१ अनेकान्त कर दिया हैं, पापों को समाप्त कर दिया है तथा जो कुछ पन्ने कीड़े लग जाने से कट-फट गये हैं। फिर भी अनुपम गुणरूपी मणियों के समूह से भरा हुआ है उसे प्रति पूर्ण और अच्छी है । इस भण्डार की सूची तैयार भव-बन्धन को तोड़ने वाले पार्श्व को प्रणाम कर मैं उसके करने वाले विद्वान डा० जैन ने इसे प्राकृत की रचना चरित को प्रकट कर रहा हूं--- कहा है, जबकि यह अपभ्र श का ग्रन्थ है। पूरिय भुअणासहो पावपणासहो, ५. पार्श्वनाथ पुराण (रइधू)-रइधू ने अपभ्रंश णिरुवम गुणमणि वारण-भरिउ । मे कई रचनाए प्रस्तुत की है। उनके व्यक्तित्व एव उनकी तोडिय भव-पास हो पणववि पासहो, रचनाओ के सम्पादन-प्रकाशन का कार्य डा० राजाराम पुणु पयडमि तासु जि चरिउ । जैन सम्पन्न कर रहे है।" डा० के० सी० कासलीवाल ने इस ग्रन्थ को प्रशस्ति सास्कृतिक दृष्टि से विशेष विभिन्न ग्रन्थभण्डारी का सर्वेक्षण कार्य सम्पन्न किया है। महत्त्व की है। इसमे रइधु की कई रचनाए प्रकाश मे आई है। डा. ४. पासनाहचरिउ (बुह असवाल)-कवि बुध देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने रइधू के इस पार्श्वपुराण की ५ असवाल १५वी शताब्दी के अपभ्रश कवि थे। इनकी प्रतियों की सूचना अपनी पुस्तक में दी है । कोटा, व्याबर, अन्य रचनायो का अभी पता नही चला है। इनकी ज्ञात जयपुर एवं आगरा मे इस ग्रन्य की पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध एक मान वृति 'पासणाहचरिउ' उनकी विद्वता के परिचय है। ग्रन्थ के प्रारम्भ मे कवि कहता हैके लिए पर्याप्त है। बुध असवाल ने कुशान देश (इटावा पणविवि सिरिपासहो, उ० प्र०) करहल नामक गाव मे यदुवशी साहु सोणिग के सिवउरिवासहो विहुणिय पास हो गुणभरिउ । अनुरोध से इस पासणाहचरिउ की रचना की थी। कवि भवियहं सुह-कारण दुक्ख-णिवारण, ने अपनी प्रशस्ति मे ग्रन्थ के रचना स्थल के सम्बन्ध म पुणु आहासमि तह चरिउ । इस ग्रन्थ मे ७ सधियां हैं और १३६ कडवक हैं। अच्छी जानकारी दी है । इस प्रन्थ की रचना वि० स० १४७६ में भाद्रपद कृष्णा एकादशी को सम्पन्न की गई ग्रन्थ मे प्राकृत एवं संस्कृत में लिखे गये पाश्वनाथचरित ग्रन्थो की विषयवस्तु को काव्यमय भाषा मे कवि ने प्रस्तुत थी। ग्रन्थ लिखने में लगभग एक वर्ष का समय कवि को किया है। कवि के द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रादि एवं अन्त लगा था। कवि असवाल का वश गोलाराड (गोलालार) था। वे पण्डित लक्ष्मण के पुत्र थे-- की प्रशस्ति मध्यकालीन सस्कृति के विषय मे महत्त्वपूर्ण अहो पडिय लक्खड़ सुयगुलग, गुलरास्वंसि धयवह अहंग । सामग्री प्रस्तुत करती है। विशेषकर ग्वालियर के सामाग्रन्थ की १३वी सधि के अन्त में पुष्पिका म एव जिक, धार्मिक, राजनैतिक जीवन पर ग्रन्थ की यह सामग्री ग्रन्थ के प्रारम्भ मे ५व पत्ते मे कवि ने स्पष्ट रूप से विशेष प्रकाश डालती है। तत्कालीन जैन समाज की अपने नाम का उल्लेख किया है। उन्नत दशा का ज्ञान इससे होता है। साह खेमचन्द के इउ सुणिव मज्झ पोसहि चित्त, परिवार का विस्तृत विवरण इस ग्रन्थ में प्राप्त है। करि कन्बु पामणाहहो चरित्तु । ६. पासणाहचरिउ (तेजपाल)-कवि तेजपाल त णिसुणाव कन्वह तण उणाभु, १६वी शताब्दी के समर्थ अपभ्रंश कवि थे। इन्होने १. वुहु प्रासुवालु हुउ जो मधामु ।। संभवनाथचरित, २. वरागचरित एव ३. पार्श्वनाथचरित इस पासणाहरिउ की मात्र दो पाण्डुलिपिया उपलब्ध ये तीन रचनाए अपभ्र श मे लिखी हैं। अभी ये तीनों हैं। अग्रवाल दिगम्बर जैन बड़ा मादर, मोतीकटरा, ग्रन्थ अप्रकाशित है। अतः कवि के सम्बन्ध में अधिक आगरा में जो प्रति है उसमे १५० पत्र है। किन्तु बीच के जानकारी प्रचारित नही हुई है। कवि नेत्रपाल ने इस ६१ से ६७ तक पत्र लुप्त है।" ग्रन्थ की दूसरी प्रति पासणाहचरिउ मे जो प्रशस्ति दी है उससे उनके परिवार सरस्वस्ती भवन, बड़ा मदिर ग्रन्थभण्डार, घी वालो का के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी मिलती है। बासवपुर रास्ता, जयपुर में उपलब्ध है। इस प्रति मे १२१ पत्र है। नामक गांव मे वरसावडह नामक वंश की परम्परा मे
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy