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२०, वर्ष ४१, कि० २
खित 'सिंहपानीयनगर' और 'सिहोंनिया' एक ही नगर के दो नाम ज्ञात होते हैं। इस प्रशस्ति लेख में उल्लिखित राजा कोतिराज और उसके पूर्वज वज्राम, दोनों राजाओं ने इस नगर में पुनीत कार्य किए थे। बचदाम ने यहां जैन प्रतिमा स्थापित कराई थी और कीतिराज ने 'ककन मठ' नाम से प्रसिद्ध शिव मन्दिर बनवाया था । अतः इन अभिलेखों के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि ये एक ही नगर के दोनों नाम है। इनमें 'सिपानीपनगर' नाम प्राचीन है।
जनवृति के अनुसार यह नगर राजा सूरजसेन ने बसाया था । कहा जाता है कि उसका यहाँ कुष्ट रोग दूर हो गया था। अतः उसने इस पटना से प्रभावित होकर अपना नाम शोधनपाल और नगर का नाम सुद्धनपुर या सुधियानपुर रखा था । कालान्तर मे किसी घटना विशेष के कारण पुनः नाम में परिवर्तन हुआ और इसे 'सिंहपा नीयनगर' कहा जाने लगा।
हमारा अनुमान है कि नगर के इस नाम में अम्बिका देवी की कोई अद्भुत घटना समाहित है। इसमें पूर्व पद 'सिंह' है जो अम्बिका का वाहन होने से अम्बिरा देवी का प्रतीक है । तथा नाम का उत्तर पद 'पानीय' है । इससे प्रतीत होता है कि कभी यहाँ पानी का संकट रहा है, जो अम्बिका देवी की आराधना से दूर हुआ होगा । अतः देवी
१. पूर्णचन्द्र नाहर, जैन शिलालेख संग्रह भाग २, लेख संख्या १४३० ।
सन्दर्भ-सूची
२. जैनशिलालेख संग्रह भाग २, ले. सं. १४८, पृ. १६१ । ३. प्रस्तुत कृति का प्रथम लेख । ४. वही, प्रथम पंक्ति । ५. डॉ. ज्योतिप्रसाद, भारतीय इतिहास, एक दृष्टि भारतीय ज्ञानपीठ, १२६१६० १० १७५-७६
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अनेकान्त
की स्मृति में यहां 'प्रम्बिका देवी' का मन्दिर बनवाया गया तथा नगर का नाम 'सिंहपानीयनगर' रखा गया ।
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दूसरी सम्भावना यह है कि लेख पढने में भ्रान्ति हुई विवानी' पद में 'प' वर्ग के स्थान में 'व' वर्ण रहा होगा जिसे 'प' समझा गया है । यदि 'प' वर्ण को 'य' वर्ण मान लिया जाये तो 'सियानीय' पढ़ा जायेगा, जिसका अर्थ होगा-सिंह है यान अर्थात् वाहन जिसका वह देवी अम्बिका इस प्रकार इस व्युत्पत्ति से भी नगर का नाम अम्बिका देवी की स्मृति में रखा गया प्रतीत होता है।
सम्पूर्ण लेख संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण होने से सहपानीय' नाम में 'पानी' शब्द का व्यवहार विचारणीय है। निश्चित ही यहां 'पानी' शब्द अशुद्ध है भाषा की दृष्टि से भी इस नाम मे 'प' वर्ण के स्थान में 'य' वर्ण अधिक शुद्ध ओर अर्थसंगत है । अत: नगर का प्राचीन नाम 'सिंहपानीय नगर' रहा है। 'सिहो. नय' इसी नाम से निष्पन्न नाम ज्ञात होता है ।
६. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, जैन सिद्धान्त भारकर, भाग १५. किरण १ । ७. वही, किरण प्रथम ।
८. आकिलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट, जिल्द २ ई० १८६४-६५, पृ० ३६९-४०१ । २. बही १०. जैन सिद्धांत भास्कर, भाग १५, कि० १ । ११. पूर्णचन्द्र नाहर, जैनशिलालेख सग्रह भाग २ लेख संख्या १४३१ ।
१२. जनशिलालेख स० भाग २, ने.सं. १५३, पू. १२८ ।
वर्तमान में इस नगर के शान्तिनाथ मन्दिर को तीर्थ क्षेत्र बताया जा रहा है। मुरैना जिले के प्रसिद्ध समाजसेवी विद्वान् प० सुमतिचन्द्र शास्त्री की अध्यक्षता में एक समिति के सतत् प्रयत्न से मन्दिर तक पनका मार्ग हो गया है । मन्दिर मे यात्रियों के लिए कुछ कमरे बन चुके है, कुछ निर्माणाधीन है ।
१३. अनेक वर्ष १६. अक१-२, पृ० ६४ । १४. तस्मादवरीपमः क्षितिपति श्रीबदामाभवद् दुर्गारोज्जित वाहुदण्ड निजिते गोपा दुर्गे मा निव्य परिरि नगद यद्वीर व्रतसूचकः समभवद्गोपण किक्रमः ॥६॥ - पूर्णचंद्र नाहर, जैन शिलालेख संग्रह भाग २, ले.स १४२६ १५. श्री डी.सी. गांगुली हिस्ट्री आफ दि परमार दायनस्टी ढाका विश्वविद्यालय १९३३ ६० पृ० १०६ ।
१६. डॉ एच.सी. रे; डायनस्टिक हिस्ट्री ऑफ द दनं इडिया, भाग २, पृ० ८३५ ।
१७. जैन सिद्धांत भास्कर, भाग ३०, किरण १। १८. अद्भुतः सिंहपानीय नगरे येन कारितः
कीर्तिस्तम्भ इवाभाति प्रासादः पार्षतीपतेः ॥ ११ ॥ पूर्ण वद्र नाहर, जनशिल भाग २ ले स. १४२६ १६. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग ३, पृ० ३२ ।