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राजस्थानी कवि ब्रह्मदेव के तीन ऐतिहासिक पद
ब्रह्मदेव १८वी शताब्दी के प्रसिद्ध कवि थे । राजस्थानी एवं विशेषतः ढूढारी भाषा में अपने पदों की रचना करके उन्होंने एक कीर्तिमान स्थापित किया था। वे सम्भवतः जयपुर अथवा इसके समीपस्थ किसी ग्राम के निवासी थे। उनके अब तक सैकड़ों पद प्राप्त हो चुके है । ७० से भी अधिक पद तो हमारे सग्रह में हैं। लेकिन पद साहित्य के अतिरिक्त इनकी कोई बड़ी रचना अभी तक प्राप्त नही हो सकी है। इसलिए कवि का विशेष परिचय भी कही उपलब्ध नही होता। फिर भी इनके पदों के लिपि काल के आधार पर कवि का समय सवत् २५०० से १८६० तक का माना जा सकता है ।
राजस्थान के विभिन्न शास्त्र भण्डारो मे ब्रह्मदेव की जो रचनाएँ उपलब्ध हुई है वे सभी गुटकों मे संग्रहीत है । कवि निबद्ध भक्तिमय पदों के अतिरिक्त सास बहू का झगड़ा, शिखर विलास आदि लघु रचनाएं भी पदो के रूप में मिलती है । लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण कवि द्वारा निबद्ध तीन ऐतिहासिक पद है जो केशोरायपाटन के मुनि सुव्रत नाथ, राजोरगढ़ के नो गजा भगवान एव चदन गाव के महावीर स्वामी की भक्ति मे लिखे गए है । जैन कवियों ने हिन्दी मे हजारो पद तो अवश्य लिखे है लेकिन तीयों, अतिशय क्षेत्रों एवं अन्य मन्दिरों के बारे में बहुत कम लिखा है । मैंने कुछ समय पूर्व "जैन हिन्दी कवियो की महावीर यात्रा" लेख मे कुछ कवियों द्वारा निबद्ध चदन गांव के भगवान महावीर की भक्तिपूर्ण पदों पर प्रकाश डाला था उसमे देवाब्रह्म द्वारा निबद्ध एक पद था । उक्त पद सहित ब्रह्मदेव के तीन ऐतिहासिक पद हो गए हैं, जिनको लेकर प्रस्तुत लेख में प्रकाश डाला जा रहा है
मुनिसुव्रतनाथ का पद
कवि का प्रथम पद राजस्थान का प्राचीन जैन तीर्थं केशोरायपाटन स्थित भगवान मुनि सुव्रतनाथ के स्तवन
D डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल
मे लिखा गया है । यद्यपि केशोराय पाठन पर मेरी एक पुस्तक सन् १९८५ में प्रकाशित हो चुकी है लेकिन उस समय तक प्रस्तुत पद प्राप्त नही हुआ था इसलिए पुस्तक मे उसका उल्लेख नही किया जा सका । अभी मैं दिनांक २७ मार्च को झालावाड़ का जब शास्त्र भण्डार देख रहा था तो उन समय एक गुटके में लिपिबद्ध यह पद अथवा विनती मिली है । कवि ने लिखा है कि हाडौती प्रदेश के चम्बल नदी के तट पर स्थित पाटनपुर नगर है। इस नगर के मन्दिर में भगवान मुनि सुव्रतनाथ की श्यामवरण सुन्दर प्रतिमा है जो पद्मासन है । जिनके दर्शनार्थ देशविदेश के विभिन्न यात्रीगण प्राते है। अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा करते है । कार्तिक सुदी १४ के शुभ दिन यहां मेला लगता है जिसमे बड़ी संख्या मे दर्शनार्थी एकत्रित होते है। पूरा पद निम्न प्रकार है-मुनि सुव्रत जो की विनती ढाल
मुनि सुव्रत जी पूजा मन वांछित दातार । मुनि० । जम्बू डीप की बीच जी गेर सुदरमण थाये ।
भरत क्षेत्र दक्षिण दिशा हाडोती देश कहाये ॥ मुनि १|| चामला नदी तट उपरे पाटण पूर सार ।
नगर वीच मन्दिर बण्यो सोमा अधिकार ||मुनि० २ || स्थामवरण सुन्दर सदा, पद्मासण धार ।
राजे चहेरा में सदा, अति से अधिकार ॥ मुनि० ३॥ देस देस का जातरी, आवे बारम्बार । आठ दव्य पूजा रचे; ध्यावे नवकार ||मुनि ४ || कार्तिक सुदी मेलो जुडे, चौदस दीन सार । नर नारी आवे घणा, गावे गुण सार० ॥ मुनि० ५|| सुरंग मुकत कोपंथ जी, उपदेस कराये । ज्यों सेवक आसा करे, पूर हीतकार ||मुनि० ६ आठ करम बेरी घणे; त्रिजग ज्ञास सुपार । देवा ब्रह्म वीनती करे, आवागमन नीवार ।। मुनि० ७॥ मुनि सुव्रत पूजस्यां मन वांछित दातार ।