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________________ पार्श्वनाथ विषयक प्राकृत-अपभ्रश रचनाएँ 0 डा. प्रेमसुमन जैन, (सुखाडिया वि०वि० उदयपुर) श्रमण-परम्परा के महापुरुषों तीर्थकरो में भगवान पार्श्वनाथ के जीवन पर नया प्रकाश डाल सकती हैं। पार्श्वनाथ के जीवन का विशेष योगदान रहा है। ईसा उनमे कुछ रचनाओं का संक्षिप्त परिचय यहां प्रस्तुत किया पूर्व लगभग एक हजार वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ का जा रहा है। जन्म हुआ था। उस समय देश में उपनिषद्-दर्शन का प्राकृत रचनाएं: विकास हो रहा था। पार्श्वनाथ के चिन्तन ने भारतीय प्राकृत भाषा में भगवान पार्श्वनाथ का जीवन प्रमुख दर्शन को आध्यात्मिक बनाने में विशेष योग किया है। रूप से 'चउपन्नमापूरिसचरिय' मे शीलांक ने प्रस्तुत नगर सस्कृति के साथ ही ग्राम्य जीवन एव अनार्य लोगो किया है। इसी का अनुसरण श्री देवभद्रसूरि (या गुणचन्द्र) के बीच में जीवनमूल्यों का प्रचार पार्श्वनाथ की अध्यात्म ने अपने 'पासनाहचरिय' मे किया है । प्राकृत की ये दोनो परम्परा ने भगवान् बुद्ध एवं भगवान् महावीर के दर्शन रचनाएं प्रकाशित है। कुछ वर्ष पूर्व भद्रेश्वरसूरि की को भी गति दी है । महावीर की परम्परा में पार्श्वनाथ के 'कहावलि' भी प्रकाशित हुई है, जिसमे पार्श्वनाथ का शिष्यो की जीवनचर्या एवं उनके विकारों को व्यक्त करने जीवनचरित वणित है। विद्वानों ने इस कहावलि का वाले कई प्रसंग शास्त्रो मे प्राप्त होते है। धीरे-धीरे समय लगभग आठवी शताब्दी माना है। अत: प्राकृत के पार्श्वनाथ के जीवन का विषद वर्णन भी जैनाचार्यों ने रचनाकारो के लिए यह प्रेरणा-ग्रन्थ रहा है। स्वतन्त्र ग्रन्थों के रूप में किया है। १: पार्श्वनाथ विषयक प्राकृत की रचनाओं मे १२वी अर्धमागधी आगम ग्रन्थों मे पार्श्वनाथ के जीवन के शताब्दी के आम्रकवि द्वारा रचित 'चउपन्नमहापुरिसकुछ प्रसग प्राप्त हैं। उनके शिष्य एव अनुयायियो के जीवन चरिय' का प्रमुख स्थान है। इस ग्रन्थ मे ८७३५ गाथाएं की विस्तृत जानकारी यहां मिलती है। कल्पसत्र में सक्षेप है तथा अन्य छन्दो की सख्या १०० है । खभात के विजयमे पार्श्वनाथ का जीवन वणित है। तिलोयपण्णति में भी नेमिसुरीश्वर शास्त्रभण्डार मे इस रचना की पाण्डुलिपि पार्श्वनाथ की जीवन-कथा का अधिक विस्तार नहीं मिल उपलब्ध है. जिगका लेखनकाल लगभग १६वीं शताब्दी है। सका है। समवायांगसूत्र में केवल इतना उल्लेख है कि २. किसी अज्ञात कवि ने प्राकृत में 'पासनाहचरिय' पार्श्वनाथ का पूर्वभव मे सुदर्शन नाम था । तिलोषपण्णत्ति नामक ग्रन्थ की रचना की । इस ग्रन्थ मे २५६४ गाथाए मे भी इतना ही कहा गया है कि पार्श्वनाथ का जीव है। इसका दूसरा नाम 'पार्श्वनाथदशभवचरित' भी प्राप्त प्राणत कल्प से इस भव मे आया है। अत: पार्श्व के पूर्वभवों होता है। इस प्राकृत ग्रन्थ की पाण्डुलिपि शातिनाथ जैन का वर्णन लगभग ८वी शताब्दी के ग्रन्थो मे किया गया मंदिर जैसलमेर के ताडपत्रीय ग्रन्थभण्डार मे उपलब्ध है।' है । गुणभद्र के उत्तरपुराण में सर्वप्रथम यह वर्णन प्राप्त है, .. पार्श्वनाथ विषयक प्राकृत के एक अन्य ग्रन्थ की जिसका अनुकरण परवर्ती प्राकृत एव अपभ्र श के ग्रन्थकारो सुचना प्रौ० बेलणकर ने दी है। किसी नागदेव नामक ने किया है। सस्कृत, प्राकृत एव अपभ्रश की पार्श्वनाथ प्राकृत कवि ने 'पार्श्वनाथपुराण' की रचना की है। इस विषयक कुछ रचनाए प्रकाशित हो गई हैं, जिनमे पार्श्वनाथ ग्रन्थ के सम्बन्ध में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो के जीवन के सम्बन्ध में विद्वान सम्पादको ने विशेष प्रकाश सकी है। प्राच्यविद्या सस्थान, बड़ौदा, भारतीय संस्कृति डाला है। जैन साहित्य और दर्शन के मनीषी देवेन्द्र मुनि विद्यामंदिर, अहमदाबाद, बी० एल० सस्थान, पाटन एवं शास्त्री ने भगवान् पार्श्वनाथ के जीवन पर एक पुस्तक भी राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपूर द्वारा प्रकाशित लिखी है। ब्लूमफील्ड ने भी पार्श्वनाथ के जीवन एव हस्तलिखित ग्रन्थों की सूचियों के अवलोकन से प्राकृत मे तत्सम्बन्धी कथाओ पर प्रकाश डाला है। किन्तु अभी रचित कुछ और पार्श्वनाथ विषयक रचनाएं खोजी जा भी प्राकृत-अपभ्रश की कई रचनाएं अप्रकाशित हैं, जो सकती है।
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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