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________________ पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट-बीड-संशोधन-प्रसंग rosiding there or who may conduct himself or herself in a disorderly or objectionable manner or may contravene the religious discipline of the temple. हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि शान्तिप्रिय एवं प्रबुद्ध समाज को इससे पूर्ण सन्तोष एवं समाधान होगा।" निवेदक : नेमीचन्द पाटनी महामंत्री, पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ए-४, बापूनगर, जयपुर-१५ वीर सेवा मन्दिर का पत्र: श्री नेमिचन्द पाटनी, महामन्त्री, पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, बापूनगर, जयपुर-१५ प्रिय महोदय ! पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की डीड के सम्बन्ध में अत्यन्त आवश्यक स्पष्टीकरण शीर्षक से आपका परिपत्र मिला। वीर सेवा मन्दिर आपका आभारी है कि आपने समाज की भावना को समझा और डीड में परिवर्तन करने के लिए निर्णय लिया। आपने जिस प्रकार से शब्दों का अर्थ किया है उसी प्रकार वीर सेवा मन्दिर की कार्यकारिणी द्वारा भी यही अर्थ समझ कर निर्णय लिया गया था। कार्यकारिणी आपके इस विचार से सहमत है कि दिगम्बर जैन धर्म अनादिकाल से तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट धर्म है। अत: ट्रस्ट डोड की धारा ५(१) में इतना लिखना ही पर्याप्त होगा : ५(१) परमपूज्य तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट दिगम्बर जैन धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार प्रसार करना। स्वाभाविक है कि मूल उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसी अनुच्छेद के दूसरे और नवें पैरे में तदनुसार बदलाव प्रावश्यक है। ५(२) और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मन्दिर अथवा स्वाध्याय भवन निर्माण कराना, बनवाना-चिनवाना अथवा इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मदद करना अथवा मरम्मत के लिए मदद करना अथवा वर्तमान मन्दिरों, स्वाध्याय भवनों की देख-रेख करना । ५(९) दिगम्बर जैन धर्म के सिद्धान्तों को विभिन्न साधनों से प्रकाशित कराना एवं उन्हें वितरित कराना जिसमें उन्हें टेप पर रिकार्ड कराना और बजाना और इस प्रकार के टेयों को वितरित कराना और बजवाना भी सम्मिलित है। हमारी पहचान दिगम्बर जैन धर्म के नाम से ही प्रचलित है। दिगम्बर से पहले वीतराग शब्द जोड़ने से यह भ्रान्ति होती है कि वीतराग दिगम्बर जैन धर्म एव दिगम्बर जैन धर्म दोनों अलग-अलग हैं। अत: केवल दिगम्बर जैन धर्म लिखना ही उपयुक्त होगा। ऐसा करने से उक्त धारा ५(१) मे धर्म का स्पष्टीकरण स्वयमेव ही हो जाता है और इसमें किसी प्रकार के भ्रम की गुंजाइश नहीं रह जाती। दिगम्बर जैन धर्म में देव-शास्त्र गुरु को ही आधार माना गया है । अतः ट्रस्ट डीड के अनुच्छेद २८ में आपने जो प्रस्ताव दिया है कि बिना आज्ञा के मन्दिर में कोई नहीं रह सकता, इसमें केवल यह बढ़ाना अनिवार्य होगा कि दिगम्बर जैन त्यागियों एवं मुनियों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा। यह कार्यकारिणी महसूस करती है कि उक्त सुधार होने के बाद समाज में किसी प्रकार के भ्रम की गुंजाइश नहीं रहेगी और समाज की एकता को एक दृढ़ आधार मिलेगा। कृपया कार्यकारिणी के उक्त सुझाओं को सम्बन्धित अनुच्छेदों में सुधार कर सुधरे हुए डीड की प्रति शीघ्र भेजें ताकि समाज में एक अरसे से ट्रस्ट के प्रति चली आ रही भ्रान्ति एक दम दूर हो जाए। (सुभाष जैन) महासचिव
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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