SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ बर्षे ४१, कि०१ मनैकन्त प्रवृत्ति का अनुसरण करना होगा। उपाध्याय अमर मुनि' एक सूची में १०, ६, ८ अगधारियों के नाम ही नहीं हैं। ने भी इस समस्या पर मंथन कर ऐसी धारशा प्रस्तुत की सारिणी १ धवला और प्राकृत पदावलीको ६८३ है । हम इस लेख में कुछ शास्त्रीय मन्तव्य प्रकाशित कर वर्ष-परंपरा रहे है जिससे यही मन्तव्य सिद्ध होता है। धवला परंपरा प्राकृत पट्टावली परंपरा आचार्यों और ग्रन्थों की प्रामाणिकता ३ केवली ६२ वर्ष ६२ वर्ष हमने जिनसेन के 'सर्वज्ञोक्त्यनुवादिन.' के रूप में ५ श्रुतकेवली १०० , १००, आचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों को प्रामाणिकता की धारणा ११ दशपूर्वधारी १८३ , १८३ , स्थिर की है। पर जब विद्वज्जन इनका समुचित और ५ एकादशांगधारी २२० , १२३ ,, सूक्ष्म विश्लेषण करते है, तो इस धारणा मे सन्देह उत्पन्न ४ १०, ६, ८ अगधारी - ६७, होता है एवं संदेह निवारक धारणाओ के लिये प्रेरणा ४ एकांगधारी ११८ , ११८, (पाँच मिलती है। --- ---एकांगधारी) सर्वप्रथम हम महावीर की परंपरा पर ही विचार ६८३ ६८३ करें। हमे विभिन्न स्रोतो से महावीर निर्वाण के पश्चात् फलतः आचार्यों की परपरा मे ही नाम, योग्यता और ६८३ वर्षों की प्राचार्य परंपरा प्राप्त होती है। इसमे कम कार्यकाल में भिन्नता है। यह परपरा महावीर-उत्तर से कम चार विसंगतियां पाई जाती है। दो का समाधान कालीन है। महावीर ने विभिन्न युग में आचार्यों के लिए जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति से होता है, पर अन्य दो यथावत् बनी भिन्न-भिन्न परंपरा के लेखन की दिव्य ध्वनि विकीर्ण न की होगी। प्राधुनिक दृष्टि से इन विसगतियो के दो (१) महावीर के प्रमुख उत्तराधिकारी गौतम गणधर कारण संभव है : हुए। उसके बाद और जबूस्वामी के बीच मे लोहार्य और (अ) प्राचीन समय के विभिन्न आचार्यों और उनके सुधर्मा स्वामी के नाम भी आते है। यह तो अच्छा रहा साहित्य के संचरण एवं प्रसारण की व्यवस्था और प्रक्रिया कि जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति मे स्पष्ट रूप से सुधर्मा स्वामी और का अभाव । लोहार्य को अभिन्न बनाकर यह विसनति दूर की और (ब) उपलब्ध, प्रत्यक्ष, अपूर्ण या परोक्ष सूचनाओ के तीन ही केवली रहे। आधार पर परंपरा पोषण का प्रयत्न । i) पांच श्रतकेवलियों के नामो मे भी अतर है। नगे युग मे ही कारण प्रमाणिकता में प्रश्नचिह्न लगाते पहले ही श्रुतवली कही "नन्दी' है तो कही 'विष्णु' कहे है। फिर, यह प्रश्न तो रह ही जाता है कि कोन सी सूची गये है। इन्हें विष्णुनन्दि मानकर समाधान किया गया है। प्रमाण है? (i) घबला मे सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाहु एव लोहा- मूलाचार के अनुसार, प्राचार्य शिष्यानुग्रह, धर्म एवं चार्य को केवल एक प्राचारांगधारी माना गया है जबकि मर्यादाओं का उपदेश, संव-प्रवर्तन एव गण-परिरक्षण का प्राकृत पट्टावली मे इन्हें क्रमशः १०, ६, ८ अंगधारी कार्य करते है , अंतिम दो कार्यों के लिये एतिहासिक एव माना है। इस प्रकार इन चार पाचायाँ की योग्यता जीवन परंपरा का गंथन आवश्यक है। पर आरम्भ के विवादग्रस्त है। प्रायः सभी प्रमुख आचार्यों का जीवनवृत्त अनुमानतः ही (iv) ६८३ वर्ष की महावीर परंपरा मे एकांगधारी निष्कषित है । आत्म-हितषियो के लिये इसका महत्त्व न पुष्पदंत-भूतबलि सहित पांच आचार्यों (११८ वर्ष) को भी माना जावे, तो भी परंपरा या ज्ञानविकास की क्रमिक समाहित किया गया है और कही उन्हें छोडकर ही ६८३ धारा और उसके तुलनात्मक अध्ययन के लिये यह अत्यंत वर्ष की परपरा दी गई है जैसा सारिणी १ से स्पष्ट है। महत्त्वपूर्ण है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में इस इतिहास
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy