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________________ २६, वर्ष ४१, कि० ३ अनेकान्त पृष्ठ ३७१ ३७४ ३७४ ३७५ ३७५ ३७६ EN MY v v ३७७ ३८६ ३६० अशुद्ध योनिमत् तिर्यञ्चों तिर्यञ्चयोनियों [इसी तरह सर्वत्र संशोधन करना चाहिए असंखेज्जदि संखेज्जदि. असंख्यातवां संख्याता एवं वेउम्विय एवंओरालिय-] वे उब्वियइसी प्रकार क्रियिक इसी प्रकार औदारिक व वैक्रियिक वे उध्वियपरिसादणकदीए वेउब्वियसंघादण-परिसादणकढीणं वैक्रियिकशरीर की परिशातन कृति वैक्रिमिकशरीर की संघातन व परिशातन कृति का उत्कर्ष से का एक जीव की अपेक्षा उत्कर्ष से असंखपात असख्यात सघादन संघातन व अन्तर्मुहूर्त व तीन समय कम अन्तमुहूर्त तेजा-कम्य इय तेजा-कम्मइय सघादणपरिसादरणकदीए णाणाजीव पहुच्च सम्बद्धा। एगजीवं पडच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेग कम्मदिी । एवं तेसिं पज्जात्ताण; णवरि ओरालिय सघादणपरिसादणकदीए एगजीव पड़च्च जहणण अंतोमुहत्तं तिसमऊण । वेउब्विय परिसादण ओरालियपरिसादणकदी वेउब्वियपरिसादणकाल है। वैक्रियिकशरीर की काल है। औदारिक शरीर की परिशातन कृति तथा वक्रियिकशरीर की मनयोगियो मनोयोगियों जहण्णेण अंगोमुत्तं, उक्कस्सेण जहण्णेण तिणि समया। पुवकोडी देसूणा। अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्ष से कुछ कम तीन समय है। [केबलिस मुद्धातापेक्षया वि. पूर्वकोटि काल प्रमाण होता है। समयप्रमित: कालो भवति] परिशातन कृति का नाना परिशातन कृति का तथा तैजसकामणमारीर की संघातनपरिशातन कृति नाना वे उब्बियपरिसादणकदीए वेउम्बियपरिसादणकदीए तेजाकम्मइय-संघावणणाणेगजीवं परिसादणकदीए णाणेगजीवं -परिसादणकदि वेउवियतिण्णिपदा -बेउवियतिनिणपदा औदारिक शरीर की परिशातनकृति औदारिकशरीर और संघादणपरिसादरणकदीए परिसादणकदीए संघातन-परिशातन कृति परिशातन कृति तेजाकम्म इयसघादणपरिसादण- तेजाकम्मइयसंघादणपरिसादणपरिसादणकदीकदी ओघं। णं ओघ भंगो। ३६७ ३६३ ४०० ४२१ ४२१ १३-१४ माता ४२१ ४२१ ११.१२ ४०२ ४०२ २६ १४-१५ ४११
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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