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ऋषभ, भरत और बाहुबलि का चारित्रिक विश्लेषण अपभ्रंश महापुराण के आधार पर
0 (श्रीमती) डा० ज्योति जैन
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव प्रथम चक्रवर्ती भरत और के जन्मादि के) मे किया है। हम कम से तीनों का आद्य कामदेव बाहुबलि का चरित्र समग्र भारतीय साहित्य चारित्रिक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे है। के आकर्षण का केन्द्र रहा है। जैन साहित्य तो इनकी अमर गाथाओं से भरा पड़ा है। इनके प्रजापतित्व बीरत्व अषम और अप्रतिम व्यक्तित्व की छाप इतनी गहरी है कि सभी
ती० ऋषभदेव को जैन परम्परा में आद्य तीर्थकर, संस्कृतियों ने इन्हें अपनाया और अपने-अपने अनुरूप कमभूमि के आदि प्रवर्तनकर्ता तथा प्रजापति के रूप में आकलन किया।
पूजित किया गया है स्वामी समन्तभद्राचार्य ने लिखा है
"प्रजापतिर्यः प्रथम जिजीविष, साहित्यकारी और शिल्पियो के लिए इनके चरित्र
शसाष कृष्यादिषु कर्मसु प्रजाः ।" आदर्शमय है । आगम और लौकिक दोनों प्रकार के साहित्य
जैन साहित्य के आगम ग्रन्थों, पुराणों, कथाओं एवं में उल्लिखित हैं। पुराण, काव्य, कथाचरित, मादि इनके
काव्य ग्रन्थों में उनका स्मरण किया गया है। भागवत् में गुणानुवाद से भरे पड़े है। संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश आदि
उन्हें आठवां अवतार कहा गया है ऋग्वेद के एक मत्र में भाषाओ के अतिरिक्त दक्षिण मारतीय भाषाओ में भी इन
कहा गया है कि मिष्ट भाषी, ज्ञानी, स्तुति योग्य ऋषभ महापुरुषों का चरित्र उपलब्ब है । अपभ्र श भाषा मे महा
को माधक मन्त्र द्वारा वधित करो' एक अन्य मन्त्र में कवि पुष्पदन्त विरचित 'महा पुराण' या त्रिषष्ठि महापुरुष
उपदेश और वाणी की पूजनीयता तथा शक्तिसम्पन्नता के गुणालंकार' पुराण एतद्विषयक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें
साथ उन्हें मनुष्यो और देवों मे पूर्वयाया कहा गया है।' ६३ शलाकापुरुषो का चरित्र निबद्ध है।
यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में बुद्धि एव बल के लिए उनका महापुराण के आदिपुराण और उत्तरपुराण ये दो भाग आह्वान किया गया है। है। आदि पुराण के पूर्वार्ध मे उक्त तीनों महापुरुषों का
लिङ्ग, मार्कण्डेय, कर्म, नारद, ब्रह्माण्ड आदि पुराणों चरित्र विरतार से चित्रित है। इसमे कुल ३७ सन्धियां या ,
के अनुसार स्वयभुव मनु से प्रियव्रत उनके आग्नीध्र नाभि परिच्छेद है।
और नाभि के ऋषभ हुए। भागवत् के अनुसार वे योगी इसमें पूर्व --९वी शती के आचार्य जिनसेन का संस्कृत थे। बौद्ध साहित्य में ऋषभ महावीर के साथ उल्लिखित भाषा में निबद्ध 'महापुराण' उपलब्ध है। जिसमे भी हैं। शिव और ऋषभ के ऐक्य-सन्दर्भ में अनेकों लेख पत्र६३ शलाका पुरुषों का चरित्र चित्रित है । अत: इस अनुमान पत्रिकाओ मे समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। को पर्याप्त अवकाश मिलता है कि पुष्पदन्त ने जिनसेन का मुनि श्री विद्यानन्द महाराज ने बाबा आदम को भी अनुकरण किया है, पर नही, पुष्पदन्त ने चरित्रो का चित्रण ऋषभदेव माना है। मुनि श्री की दृष्टि मे आदम आदिनाथ तो जिनसेन या जैन परम्परानुसार ही किया है पर उनकी का अपभ्रश है । शैली अपना है, यथा जिनसेन ने तीर्थङ्करों के पूर्वभवो वा पह सब लिखने का प्रयोजन यही है कि पाठक यह चित्रण पहले किया है।' पर पुष्पदन्त ने बाद (ऋषभदेव समझ सकें कि ती ऋषभदेव जैन परम्परा में ही नहीं,