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अद्यावधि अप्रकाशित दुर्लभ ग्रन्थ-सम्मइजिणचरिउ
0 प्रो० (डा०) राजाराम जैन
अपभ्रश के महावीर-चरितों की परम्परा
रइधकृत सम्मइजिणचरिउ : ग्रन्थ-विस्तार एवं कार्य
विषय-संक्षेप "सम्मइजिणचरिउ"' अपभ्रंश का एक पौराणिक काव्य है, जिसमें सन्मति अथवा वर्धमान अथवा तीर्थकर
प्रस्तुतसम्म इजिणचरिउ मे १० सन्धियां और कुल महावीर का जीवन चरित वरिणत है। प्राच्य-शास्त्र
मिलाकर २४५ कडवक । भण्डारों से अभी तक अपभ्रश के स्वतन्त्र रूप से लिखित
पहली सन्धि के १६ कडवको मे मगलाचरण के बाद एतद्विषयक चार रचनाओ की जानकारी मिल सकी है
कवि द्वारा अपने प्रेरक गुरु यश कीति भट्टारक तथा उनकी विबुध श्रीधर (१३वी सदी) कृत वड्ढमाणचरिउ', कवि
पूर्व-परम्परा के गुरुओं का स्मरण, अपने आश्रयदाता का नरसेन (१४वी मदी) कृत वड्ढमाणकहा।' कवि जयमित्र
परिचय, अपभ्रश के चउमुह, दोणु आदि पूर्ववर्ती कवियो हल्ल (अपरनाम हरिचद, १५वी सदी) कृत वड्ढमाण
का स्मरण तथा सज्जन-दुर्जन वर्णन के बाद मूलकथा का कव्व एव महाकवि रइधू कृत सम्मइजिणचरिउ। इनमें
प्रारम्भ मगध देश एव राजगही नगर-वर्णन तथा उसके से प्रथम दो ग्रन्थो का प्रकाशन हो चुका है। चतुर्थ रचना
सम्राट श्रेणिक के परिचय और विपुलाचल पर महावीर की अभी तक ६ प्रतियो का जानकारी मिल चुकी है, किन्तु
के समवशरण के आगमन से प्रारम्भ होता है। दुर्भाग्य से उन सभी में प्रथम पांच सन्धियाँ अनपलब्ध है। दूसरी मन्धि के १६ कडको मे तीनों लोको का इन पांचो सन्धियो मे मगध सम्राट श्रेणिक का चरित सक्षिप्त वर्णन किया गया है । वर्णित है और छठवी सन्धि से महावीर-चरित का वर्णन तीसी सन्धि के ३८ कडवको तथा सन्धि के १३वे प्रारम्भ होता है। यदि श्रेणिक चरित को जयमित्र की एक कडवक तक महावीर के पूर्वभवो का वर्णन और चौथी पृथक् स्वतन्त्र-रचना भी मान ले, जो कि कभी भ्रमवश सन्धि के ही १४वे कडवक से अनि.म २१वे कडवक तक महावीर चरित के साथ किसी प्रतिलिपिक की भल से एक महावीर के जन्म स्थल कुण्डलपुर आदि का वर्णन किया ही लेखक की रचना होने के कारण सयुक्त कर दी गई गया है। इसमें, तथा पांचवी ३८ कडवक), सातवी होगी, तो भी, वह (श्रेणिक चरित) भी वर्तमान में (१४ क्डव तथा आठवी सन्धि (२७ कडवक) में अनुपलब्ध ही है । तृतीय उक्त रचना-सम्म इ-जिण चरिउ महावीर के प्रथम ४ कल्याणकों का साहित्यिक शैली मे सम्पादित होकर प्रेस में जा चुकी है। बहुत सम्भव है वर्णन किया गया है। इन सन्धियो में कवि ने कुछ विशिष्ट कि इस वर्ष के अन्त तक वह प्रकाशित होकर पाठको के प्रसग उपस्थित कर उन में सम्यक्त्व, जीवादि सप्तत्व. हाथ में पहुंच जाय।
षड्द्रव्य द्वादशानुप्रेक्षा, द्वादशता, द्वादशवत, ध्यान एव योग
आदि के भी सक्षिप्त वर्णन किए हैं, जिनका आधार उक्त सभी रचनाओं में मूल कथानक दिगम्बर- उमास्वतिकृत तत्त्वार्थसूत्र है। परम्परानुमोदित ही है, किन्तु भाषा एव वर्णन-शैली नवमी सन्धि के २१ कडवको मे से प्रथम १५ कडवकों कवियो की अपनी-पनी है। घटनाओ मे भी कवियों ने मे तीर्थकर महावीर के प्रधान शिष्य-गणधर-इन्द्रभूति होनाधिक मात्रा मे अपनी-अपनी रुचि के अनुसार सकोच गौतम का जीवन चरित्र तथा उसके बाद महावीर-निर्वाण अथवा विस्तार किया है।
तथा उसके स्मृति चिह्न के रूप मे दीपावली-पर्व के प्रारम्भ