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दो हजारवीं जयंती हेतु विशेष प्रेरणा
आचार्य हमारे कुन्दकुन्द
सुरेश सरल, जबलपुर जैनों के वह आचार्य जो नीति, न्याय और बुद्धि के संवत ४४ अथवा वीर नि० स० ५१३ में जन्मने वाले धरातल पर आध्यात्मिक के ग्रन्थ, ग्रन्थ नही ग्रन्थावली, कुन्दकुन्द विचार क्रान्ति और चरित्र-उपासना के उदाहरण. अब से सैकड़ों साल पूर्व रचकर हमे विश्व के विद्वानो के महाकवि बनकर जग की अगुवाई करने तत्कालीन समाज समक्ष बराबरी से खड़े हो जाने लायक स्थान दे गए, के सामने आए थे और तब से अब तक वे आगे हैं अपने जिनके कारण विश्व के किसी भी महान् ग्रन्थ और उसके दर परावर्ती से। रचयिता की चर्चा सुनकर हमें हीनता का आभाम नहीं
विश्व-विद्वत्ता के भडारो अथवा प्रतीको-श्रेष्ठ होता। जब जिस किसी भी विशिष्ट धर्मधारा, नीति
शकराचार्यों और महामहोपाध्यायों-की हर पीढ़ी पर धारा, की खुली चर्चा की जाती है वह पूर्व से ही उन
अपने दर्शन का हिमालयी-प्रभाव बनाये रखने वाले यदि ग्रन्थों में, ग्रन्थकार के दर्शन में, भरी पड़ी है। माने कि
कोई जैन आचार्य हुए हैं तो वे कुन्दकुन्द ही हैं। प्राचीनअकेले ग्रन्थराज 'समयसार' में वह सब है जिसके कारण
वेदो से लेकर गीता, रामायण, बाइबिल, कुरान और संसार में कोई ग्रन्थ 'प्रादर्श' कहलाता है। किसकी देन है
'शबद' तक के दर्शन के समक्ष कुन्दकुन्द जी अपनी यह ? महापडित महामुनि, महाचार्य प्रातः स्मरणीय
मौलिकता और मनोवैज्ञानिकता अलग ही चमकाते मिलते कुन्दकुन्द जी की। उनने एक ग्रन्थ नही चौरासी पाहड़ें दी हैं। उनके सात ग्रन्थों मे समूचे विश्व का मर्म- जैन
हैं। उनके धर्म-सूत्र अखिल-विश्व एवं समग्र प्राणी जन के धर्म आध्यात्म, संस्कृति नीति और न्याय के आदर्श मूत्र है
लिए हैं। पुद्गल से ऊ र आत्मा का सौन्दर्य-शास्त्र है जिनके बल पर हम विश्व का पांडित्य करने लायक हो
उनका-सुलेखन । ऐसे महान् परोपकारी, धर्म-सुधारक,
धर्म प्रवर्तक संत की जयन्ती प्रतिवर्ष, उनके जन्म दिन पर गए है। समयसार के बाद प्रवचनसार, पनास्ति हाय अष्टपाहुड, नियमसार, द्वादशानुप्रेक्षा और रयगामार जैसे
आषाढ शुक्ल पूर्णिमा को राष्ट्र स्तर पर मनाए तो हम ग्रन्थ जहां उनकी बौद्धिक तपस्या के प्रतीक है वही वे
अपने पूर्वजो के प्रति एक ईमानदार परम्परा को प्रारभ कर उनके वैचारिक क्षितिज की उच्चतर के मानक स्तम्भ भी .
___ स्वयं ही उपकृत हो सकेंगे और हो सकेगे कृतज्ञ ।
जयती क्यों मनाए? कैसे मनाए ? दो प्रश्न सामने कुन्दकुन्दाचार्य का जन्म, जो किसी 'अवतार' से कम उछाले जा सकते हैं। पहले प्रश्न का समीचीन उत्तर उक्त नही है, सत ईसा से तेरह वर्ष पूर्व हा था। कहे हमारे पक्तियो मे आप पा चुके है। समाधान चाहिए अब द्वितीय देश के महाराजा, श्री विक्रम के ४४ वर्ष बाद वे जन्मे। का कैसे मनाए? उनके कार्यकाज के विषय पर मनीषियों भगवान महावीर के ५१३ वर्ष बाद कुन्दकुन्द ने जन्म से लिखाकर । उनके लिखे हए पर शोध कार्य कर उनके लेकर महावीर दर्शन एक मायने मे पुनर्स्थापित किया था। उपलब्ध ग्रन्थो को सरल हिन्दी व अन्य भाषाओं मे महावीर की वाणी और वैचारिकता के जीवन चित्र है प्रकाशित-सम्पादिन करा कर। समयसार के 'सरलउनके ग्रन्थ । ब्राह्मण राज गौतम गणधर को जो करना था संस्करण' को लाखो की संख्या मे तैयार कर आम-जन के उनसे कही ज्यादा कुन्दकुन्द ने किया महावीर का कार्य हाथों में पहुंचाकर उनके ग्रन्थों पर शिक्षण-प्रशिक्षण की लेखनी चला कर । अब से करीब दो हजार वर्ष पूर्व विक्रम सुविधाएं नव-विद्वानों को प्रदान कर। पाक्षिक मासिक