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________________ सिद्धा मनीषा-धवला २१ -वस्तु निमित्त उत्पन्न जीव का भाव उपयोग पाए जाते हैं, उनमें से सिबों में एक भी घटित नहीं होता। होता है। फलत -जीव और सिर को एक श्रेणी का मानना युक्ति५. 'लब्धि निमित्तं प्रतीत्य उत्पद्यमान प्रात्मनः परिणामः संगत नहीं ठहरता । उपयोग इत्युपविश्यते'-त. रा. वा० २/१८/१-२ आगमो में उपयोग के लक्षण इस भाति और भी (आवरण कर्म के क्षयोपशम रूप) लब्धि के अवलम्बन मिलते हैंसे उत्पन्न होने वाले आत्मा के परिणाम को उपयोग १. यत्सनिधानादात्मा द्रव्येन्द्रियनिवृत्ति प्रति व्याप्रियते कहते हैं। तम्निमित आत्मनः परिणामः (प्र. मी. परिणाम. उक्त सर्व कथन उपयोग सबंधी हैं और उक्त सभी विशेषः) उपयोगः (सर्वा० सि. २/१८, लक्षण जिसमें हों वह जीव है ऐसा मानना चाहिए । अब प्रमाणमी०१/१/२४) प्रश्न यह है कि क्या उक्त लक्षण सिद्धो भी पाए जाते २. बाह्याभ्यन्तरहेतुद्वयसनिधाने यथासभवमुपलब्धुपये. हैं? जिनके आधार पर उन्हें जीव कहा जा सके ? जब हम तन्यानुविधायी परिणाम उपयोग:(त० वा० २/८/२१) विचारते हैं तो सिद्धो मे (न०१)-स्व और पर का ३. उपयोगो ज्ञानादि व्यापार. स्पर्शादिविषयः (त. भा० विकल्प ही नही दिखता और जब विकला नही तब उनके हरिः ३० २.१०) स्व-पर के ग्रहण का प्रश्न ही नही उठता, जो उनके उपयोग ४. उपयोजनमुपयोगो विवक्षिते कर्मणिमनसोऽभिनिवेश माना जा सके। (नन्दो० हरि० पृ० ६२) (नं० २)-जब सिद्धो में मार्गणा से प्रयोजन नही- ५. अर्थग्रहणव्यापार उपयोग: (प्रमाण 10 व० ६१, उनमें मार्गणाएं भी नही तब उनमे मार्गण (खोज) के उपाय लवीय० अभयव० १/५) की बात कहां? ६. तन्निमित्तः आत्मन. परिणाम उपयोगः, कारणधर्मस्य (न० ३)-स्वभाव और स्वाभाविक दशा मे निमित्त कार्ये दर्शनात् (मूला. वृ० १/१६) का प्रश्न ही नही, तब उपयोग कैसे सभव होगा ? फिर ७. उपयोगस्तु रूमादिविषयग्रहण व्यापारः ( प्रक० निमित्त तो सदा वैभाविक में पाया जाता है। मा० २/५ (नं०४)-सिद्ध कृत-कृत्य हैं उनमें वस्तु के ग्रहण का ८. जन्तो वो हि वस्त्वर्थ उपयोग: (भा० स० वाम ४०) ६. उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं प्रति जीवोऽनेन इत्युपयोग भाव ही संभव नही, तब उपयोग कहाँ ? षडशीति-मलय० वृ० १..) (मं० ५)-सिद्धो में कर्म ही नही तब क्षयोपशम जन्य उपयोग के जक्त लक्षणो में एक भी ऐसा नहीं दिखत लब्धि को निमित्त बनाकर परिणाम होने की बात ही पैदा जो चेतन की अशुद्ध अवस्था (जीव) के सिवाय, चेतन की मही होती। ऐसे में उपयोग होने का प्रश्न हो नहीं । शुद्ध अवस्था 'सिद्ध' पर्याय मे पाया जाता हो। क्योंकि ये अपितु इससे तो यही सिद्ध होता है कि क्षोपशम को सभी लक्षण चेतन के पराश्रितपने को इंगित करने वाले हैं। निमित्त बनाकर उत्पन्न परिणाम (उपयोग) संसारी ऐसे लक्षणो के सिवाय यदि कहीं किन्ही आचार्यों ने उपयोग मात्माओं (जीवों) में ही होता है । कहा भी है के लक्षण का ज्ञान-दर्शन के रूप में उल्लेख कर भी दिया ___ क्षयोपशम निमित्तस्योपयोगस्येन्द्रियत्वात्। न । हो तो उसे कारण में कार्य का उपचार ही मानना चाहिए । क्षीणाशेषकर्मसु सिद्धेषु भयोपशमोऽस्ति' और व्याख्याओं से उसे समझ लेना चाहिए। जैसे -धवला १/२/३३ पृ० २४८ 'उवयोगो रणागवंस मरिणवो' --क्षयोपशमजनित उपयोग इन्द्रियों पूर्वक होनेसे । वह -प्रव० मा० २।६३-६४ उपयोग क्षीण सम्पूर्ण कर्मों वाले सिद्धो में नहीं है। 'मात्मनो हि पर-द्रव्य-संयोगकारणमुपयोग विशेषः इस प्रकार जो लक्षण जीव के बताए और जीव में उपयोगो जीवस्य पर-द्रव्यसंयोगकारणमशुद्धिः । सा
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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