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सिरसा से प्राप्त जैन मतियाँ
0 विद्यासागर शुक्ल रिसर्च स्कोलर
हरियाणा के पश्चिमी भाग में स्थित सिरसा पुरातत्व 'यक्षी' तथा गोमुख 'या' तीर्थंकर ऋषभदेव प्रथवा की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका प्राचीन आदिनाथ के पार्श्व देवता हैं। इस प्रकार यह मूर्तिनाम शोरीषक था जिसका उल्लेख अष्टाध्यायी, महाभारत आधार आदिनाथ की मूर्ति के लिए अभिप्रेत था। तीर्थंकर एवं दिव्यावदान में आया है। यह एक महत्वपूर्ण नगर रहा आदिनाथ मूर्ति के इस आधार पर अंकित तथा अलकृत था जिसके अवशेष सिरसा नगर के समीप विस्तृत क्षेत्र में बस्त्रासन बड़ी कुशलता से प्रदर्शित किये गये हैं । इस मूर्ति फैले हुए हैं। यहां से मिट्टी, शिल्प तथा धातु से बनी अनेक आधार को शैली आधार पर नवीं-दसवीं शती में रखा जा प्रकार की मूर्तियां उपलब्ध हुई है जिनमे से कुछ मूर्तियां सकता है। सिरसा से तीर्थकर मूर्ति का एक अन्य आधार जैन धर्म से सम्बन्धित है। सिरसा प्राचीन काल मे जैन काले पत्थर का मिला है जो इस समय पुरातत्व संग्रहालय, धर्म का केन्द्र रहा था जिसकी पुष्टि हमे वहां से प्राप्त कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय मे है। इस पर तीर्थकर की मूर्ति कलावशेषों से होती है। ये कनावशेष कानक्रम की दृष्टि बैठी हुई रही थी। यह आधार त्रिरथ आकृति सदृश है से ८वी शती से १२वी शती के हैं। इनमे दिगम्बर तथा जिसके सम्मुख भाग पर धर्मचक्र, हिरण और सिंह अंकित श्वेताम्बर दोनों जैन सम्प्रदायों की स्थिति पर भी प्रकाश हैं। बीच में शंख का चित्रण है तथा उसके नीचे एक पड़ता है।
आकृति मध्य में बनी रही थी जो पर्याप्त घिस गई है। सिरसा के समीप ही सिकन्दरपुर गाव मे एक लघु
इसकी पहिचान कर सकना कठिन है। इसके साथ ही एक
सीध में कुछ बैठी हुई अति लघुकाय आकृतियां भी बनी काय तीर्थकर मूर्ति का सिर प्राप्त हुआ है जो इस समय
है । इस मूर्ति मे तीर्थंकर का लांबद (शख) दिखलाये जाने कुरुक्षेत्र संग्रहालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के संग्रह
से इस मति की पहिचान बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ से मे है। इसमे सिर सकुचित अलकावली से आवत है। यह
करना उचित होगा।' उक्त मूति वास्तव में विशाल आकार आठवी शती की मूर्ति का भाग है। हरियाणा पुरातत्व
की रही थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इसे मन्दिर के गर्ने विभाग, चण्डोगढ़ के संग्रहालय में एक जैन मूर्ति का
गृह मे स्थापित किया गया था। शैली के अनुसार यह आधार संग्रहीत है ।' मूर्ति का यह आधार और उस पर
नवी-दसवी शती ईसवी में रखा जा सकता है। खड़ी (अथवा बठो) मूर्ति दोनो अलग-अलग निर्मित हुए थे। इस आधार के मध्य में सामने अलकृत आसन लटकता दिखलाया गया है। उसके नीचे बीच मे (धर्मचक्र) तथा दो सिरसा की अन्य तीर्थकर मतियां छोटे आकार की हिरण तथा सिंह अकित है। पार्श्व में बायी ओर चतुर्भज है। शैली को दृष्टि से ये १०वी-११वी शती को हैं । इनमे चक्रेश्वरी बैठी हुई दिखलाई गयी है। उनके अतिरिक्त तीर्थकर को ध्यान-मुद्रा में कमलासन पर बैठे दिखलाया दाहिने हाथ मे चक्र तया उनका सामान्य हाथ अभय-मुद्रा गया है। दूसरी मुर्ति जो संगमरमर की है, में ध्यान-मुद्रा में है।' इस आधार के दाहिनी ओर बृषभ-सिर युक्त एक मे बैठे तीर्थकर के साथ दो आकृतियां खड्गासन मे खड़ी हाथ में पप लिए ललितासन-मुद्रा में एक पुरुष आकृति अधोवस्त्र पहने दिखलाई गई है। इनको वस्त्र पहने आसीन है। यह गोमुख यक्ष का अकन है। चक्रेश्वरी दिखलाये जाने से स्पष्ट है कि ये मन्य देवो से ही