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१४, वर्ष ४०, कि०४
रूप में २२ परिषह बताये हैं। सूत्र ८ "मार्गाच्यवन निर्ज- नगर दिल्ली में पानसाह फिरोज शाह पठाण की में रार्थ परिषोढव्याः परीषहाः" में मार्ग से व्युत न होने के प्रतिष्ठा हई सवा करोड़ रुपये लागे । एक बार पातसाह लिए और कर्म निर्जरा के लिए इन २२ परीषहों को सहन फिरोजशाह ने हिन्दुओं के विरुद्ध मुसलमानों की शिकायत करना बताया है। इस प्रकार परिषह साधु जीवन की पर सिपाही भेजे तब भट्रारक जी की पालकी बिना कहारों नीव है बिना नग्न परिषह धारण किये वह जिनमार्ग से के चलकर आई और सिपाहियों के हाथ यों के यों रह च्युत माना गया है। जहाँ मूल मे ही नग्नत्व का प्ररूपण गए, मुह बांके हो गये, जुबान बन्द हो गई। बादशाह किया गया हो वहाँ उसका अभाव बताना अज्ञान है। ने सुनी तो आकर हाथ बांध कर भट्टारक जी के चरणों मे माघओं के लिए सव परोषहों का सहन करना आवश्यक गिरा और बोना-मेरा कसूर माफ करो। बतामा है। बिना नग्नत्व के शातोष्ण दशमशक (सर्दी,
फिर बेगमों ने बादशाह से कही-ऐसे औलिया(संत) गर्मी, हांस-मच्छर की) परिषह भी सम्भव नही अतः नग्नत्व
के दर्शन हमको भी करावो। बादशाह ने भट्टारक जी से प्राथमिक और आवश्यक है। तृण स्पर्श, मल, शय्यादि
अर्ज करी कि--बेगमें दीदार करना चाहती हैं । यह वक्त परिषह भी नग्नत्व में ही पूर्ण फलित होती है । अत नग्नत्व
नगन रहने का नहीं, आप दूसरे खुदा हो सो एक लगोट का लोप करना जैनधर्म का हो लोप करना है। दि० श्वे.
तो लगाना ही चाहिये । भट्टारक जी की स्वीकृति पा के भेद को मिटा कर श्वेताम्बर विकृत मार्ग को ही पुष्ट
बादशाह ने लाल लगोट कराई फिर सिंदूरिया वस्त्र भी करना है अत: जैन साधु का वस्त्र धारण करना जिनसासन ।
भट्टारक जी ने ग्रहण किया सं० १३१० से यह वस्त्र रखने का दूषण है अपराध है किसी भी स्थिति में योग्य नहीं।
की प्रथा शुरू हुई।" अजनो मे भी नग्नत्व को परम हम का रूप माना है। जैन निर्ग्रन्थ के लिए वस्त्र धारण करना निन्द्य है दोषास्पद Note- इतिहास में इस फिरोजशाह (जलालुद्दीन है अपने पद और नाम के विरुद्ध है। संसार के सब धर्मों खिलजी) का समय वि० स० १३४७ से १३५३ है। अनः से जैन को अलग पहचान नग्नत्व ही कराता है। ऐसे १३१० संवत् के साथ इसकी संगति नही बैठती। स० जगत् के भूषण नग्नत्व के लिए अनन्तशः बन्दन ! १३१० भट्टारक प्रभाचन्द्र का पट्ट पर बैठने का है। इस
घटना के समय का ठीक से निश्चय न होने के कारण वही "वीरवाणी" पृ० २१४ (१८ जून ८८ अक) मे "एक
स० १३१० लिख दिया गया हो। इतिहासज्ञों को ठीक ऐतिहासिक गुट का'' (वि० स० १९८५ म लिखित) निबध
निर्णय करना चाहिये। फिरोजशाह का समय १३१० मे बताया है कि
नहीं है। "सवत् १३१० में भट्टारक प्रभाचन्द्र जी के समय में
-केकड़ी (अजमेर) ३०५४०४
जो सिद्धान्त ज्ञान आत्मा और पर के कल्याण का साधक था आज उसे लोगों ने आजीविका का साधन बना रखा है। जिस सिद्धान्त के ज्ञान से हम कर्म कलंक को प्रक्षालन करने के अधिकारी थे। आज उसके द्वारा धनिक वर्ग का स्तवन किया जाता है यह सिद्धान्त का दोष नहीं, हमारे मोह की बलवत्ता है
-वर्णी-वाणी I पृ० १८३