________________
ब,पर्व ४० कि०४
श्री रतनलाल गंगवाल- .
, सही दिशा की ओर उन्मुन करने में पं० कैलाशचन्द्र जी ____ 'पंडित जी दिगम्बर जैन समाज के एक ऐसे स्तम्भ थे की सूझबूझ बहुत ही प्रशसन मानी जाएगी। जिन्होने अपने ज्ञान से इस समाज को सदैव आकोकित भारतं य परम्परा के मनीपोते. प्रा: मैं अपनी भाव. किया, माता जिनवाणी के वे गम्चे, सपन थे विकार भीनी श्रद्धांजलि अप्ति करता है। भाव से जीवन पर्यन्त वे गम का मार्ग दर्शन करते रहे। दरबारी हाल कोठिया, सम्पाद___मैं पडित जी के प्रति अपनी श्रद्धापर्ण निय. जलि कैसे हा मन पर गे आये, श्रोता एक ट होकर उनके अपित करता है और उनके परिवार के प्रति हार्तिक
धारा प्रवाई भाषा को मनते थे। उनके अंना हजारोगा मंवेदना ।'
नाखों हों, वे पभावित कर लेते थे। वे स्त्र प्रवक्ता श्री डालचन्द जैन, सांसद ---
भी अमा, ण थे । अष्टान्हिका पर्व पर वे बम्बई गये थे। भारतीय दि. जैन ममाज के वियोग में आज एक निहाने आम्म-तत्त्व पर ऐ. प्रवचन किया कि व्याकुल है। मेरी हार्दिक नियाजल।' __- श्रीन पत्र : ग्ध हो गए । शास्त्र प्रवान के बाद एक धोना
उनके पाम (हुंने और बोले कि पडि । जी! काप को तो श्री साह श्रेयांसप्रसाद जैन--
आत्म-
साकार हो गया होगा।' पाडत जी ने बतनाया दिगम्बर जैन पपिरती की परम्परा में प० कलामचद्र विकोठिया जी का क्या उत्तर देता?' आत्म-तत्त्व जी ऐमे मुमेरू माणिक्य थे, जा मम्यक ज्ञान, गम्यक र्शन
पर बोलना अलग चीज है और एक साक्षा कार होना और सम्यक चारित के प्रतीक के संप में युग-युगा. नरो
अला चीज है । आत्म-साक्षात्कार के पूर्ण सयम, तक एक जीवन्त तीर्थ के रुप में स्मरणीय रहेगे। उकी
इन्द्रिय निग्र , मनोनिरोध और तपश्चर्या आदि आवश्यक वीतराग, धर्म दशन साहित्य एव तीर्थ मे श्रद्धा असाढ़
हैं । पण्डित जी ने यह सस्मरण ज्यो-, -त्यों सुनाया। और अविचल थी। पण्डित जी ने अपने गम्भीर चिमन, वास्तव में वे प्रभावका वक्ता थे। लेखन, मापादन, प्रवचन अध्यापन और मम्था निर्माण व हम शिव्य समुदाय की और से उन्हे . द्वा-सुनन संचालन आदि वनिया में सच लेकर मामाजिक था गपित करते है। उनकी आत्मा को शाश्व। शान्त-लाभ आध्यात्मिक प्रवृत्तियो मे विशिष्ट सहयोग देकर ममाण मे की कामना करते है एवं परिवार के प्रति हाकि स . स्थायी कीर्तिमान स्थापित किया। समाज को समय पर वेदना प्रकट करते है।'--(सकलित)
(पृ. ५ का शेषांश) ___ यह भी सचने की बात है कि पस्ति जी जैसी त्याग के स्थान पर सग्रह में और ता के स्थान पर जता धार्मिकता, निकिता, नि:स्वार्थला कितनों मे है और. के हित के नाम पर, चिन्ताओ में तप रहे है । ऐ। मे कैसे कितनो मे धर्म के प्रति वैसे समर्पण के भाव है जैसे उमे और किनसे पूरा हो सकेगा, पण्डित जी का मिा ? थे ? पण्डित जी धर्म के सही विवेवन करने मे कभी के हमारा विश्वास है पण्डित जी का मिशन ही पूरा नहीं-कह दिया सौ बार उनसे जो हमारे दिल मे है।' होगा जब पण्डित निःस्वार्थी होगे, धार्मिक जा पण्डितों ऐसे पण्डित जी को हमारे शत-शत नम।। . . की सुख सुविधा के ध्यान रख उन्हें मान देगे और त्यागी
देखना यह भी होगा कि भविष्य मे "कितने नवीर- मुनि आदि सामाजिक-प्रवृत्तियो से दूर-प. आत्मपण्डित अपने को पण्डित जी के रूप में ढाल पाएंग? आ॥ साधना मे लगे रहेग। हम अपने मन्तव्य। इन 'दों के तो नहीं कि केवल आजीविका को दौड-धुप वाल. पणित साथ पूरा करते हैं कि हम सब पण्डि । जी के बादर्श पण्डित जी की पण्डित-प.म्परा को जीवित रखने में समर्थ मार्ग पर च और जो कुछ करें-- सम्मक. म के शे सकेगे ! और यह भी आशा ही कि केवल नेता-टाइ लिए करें। कार सेवा मन्दिर परिवार और डा० उति लोग पण्डितो की कद्र कर सकेगे--सभी अपने-अपने स्वारा प्रसाद आदि सम्पादक मण्डल (अकान्त) ५.ण्डतजी के प्रति मे लगे है। आज तो कई मुनियों का यह हाल है कि सादर श्रद्धावत हैं।