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मनावीर श्रीमालागार
था। उनके अनेक शिष्य है जो अच्छे पदों पर कोई बनासक्त कर्म योगी थे, जिसका ज्वलंत प्रमाण उनका लोक सेवा कर रहा है । कोई समाज सेवा कोई साहित्य 'श्री स्यावाद महाविद्यालय' (वाराणसी) है।' सेवा । समाज को उन्होने अपनी प्रतिभा का खूब दान दिया। जहाँ भी वे धर्म प्रचारार्थ गये अपने लिए कभी कुछ भेट नही ली। अाज ऐसे निःस्वार्थ विद्वान कम ही सिद्धांताचार्य प. कैलाश चन्द्र जी शास्त्री जैन विद्वत् है। उन्होंने महान सिद्धांत ग्रन्थ जयधबला के सम्पादनादि समाज के महनीय विद्वान थे । वे शिक्षक, लेखक, पत्रमे भी पूरा सहयोग दिया।'
कारिता और वक्तृत्वकला के पारगामी थे । अर्धशती से
भधिक काल तक स्यावाद महाविद्यालय वाराणसी के श्री ज्ञान चन्द खिन्दूका
प्राचार्य पद पर स्थित रहकर आपने सभी प्रान्तो के अनेक ___ 'पं० साहव का जीवन साहित्य-सपर्या के लिए समर्पित बालको को निष्णात विद्वान् बनाया है । धवला तथा जयथा। अनेक ग्रन्थों का सृजन, सम्पादन, अनुवाद कर, धवला आदि सिद्धांत के गहन ग्रन्थों की:ोका तथा उनकी अनेक पत्र-पत्रिकाओ का कुशल सम्पादन कर आपने महत्वपूर्ण विस्तृत प्रस्तावना लिखकर नवीन शोध छात्रों सरस्वती की अभूतपूर्व सेवा की है । स्यादाद महाविद्यालय को शोध का मार्ग प्रदर्शित किया है। प्रारम्भ से ही जैन काशी के अधिष्ठाता के रूप मे पंडित जो का समाज के सदेश के प्रधान सम्पादक रहकर अपने सग्रहणीय सम्मादलिए दिया गया, अवदान स्वर्ण अक्षरों में अकित रहेगा। कोय लेखो मे उसकी गरिमा बढ़ाई है। अपने छात्रों को उनका उदार सामाजिक दृष्टिकोण और तर्कसम्मत विचार उन्नत पदों पर देखकर आप प्रमोद का अनुभव करते थे। धारा उनके निर्भीक भाषणो एव लेखों में स्पष्ट प्रतिध्वनित प्राचार्यत्व के काल मे आने उद्दण्ड छात्रो को उद्दण्डता को होती है।
पिता के समान महन कर विनयशील बनाया है। भारतऐसे महान साहित्य-सेवी, पत्र-परिणामी, सादा जीवन वर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद के आप दो बार अध्यक्ष जीनेवाले, सरल एवं निस्पृह व्यक्तित्व के प्रति हम अपनी रह चुके हैं । और उसका ऐमा कोई अधिवेशन नही रहा श्रद्धांजलि अर्पित करते है।'
जिसमे आप की उपस्थिति न रही हो । आचार्य श्री १०८
विद्यासागर जी के सानिध्य में चलने वाली षट्खण्डागम श्री प्रेमचन्द जैन, जैना वाचकम्पनी
की सभी वाचनाओ में उपस्थित रहकर अपने गहन प्रन्यो 'श्रीमान पंडित जी जैसा निर्भीक बक्ता समाज को की वाचना को सरल एव सुबाह्य बनाया है। मिलना अत्यन्त कठिन है तथा उनकी सेवाओं का मूल्या- भापके निधन से जैन विद्वज्जगत् को अपूरणीय क्षति कन करना भी संभव नहीं है । कठिन से कठिन परिस्थिति का अनुभव करना पड़ा है । मैं एक छात्र के नाते उनके मे भी पंडित जी के पग वीतराग मार्ग से नही डगमगाए। प्रति जपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ उनके
उनकी आत्मा को उत्तरोत्तर काल में संसार बंधन को लिए सुख शान्ति की कामना करता है।' छेद कर मुक्ति का लाभ हो ऐसी हम प्रार्थना करते हैं।'
श्री साहू अशोक जैन, अध्यक्ष दि० जन-. डा० निजामुद्दीन
तीर्थक्षेत्र कमेटी सिद्धांताचार्य प० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने जैन धर्म 'पंडित जी के वियोग मे यह समाज ज्ञान के पथ मे दर्शन पर विपुल साहित्य की रचना कर नयी धर्म ज्योति अनाथ जैसी हो गई है उन्होन अपने जीवन में समाज को लोगों के अन्तःकरण मे जलाई, एक नयी दृष्टि प्रदान की, बो दिया है। उसे कुछ शब्दो मे लिखा नही जा सकता। नयी प्रेरणा दी। वह जैन धर्म दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् पं. जी वास्तव में सरस्वती के वरद् पुत्र थे। उन्हे मेरी थे। उनकी विद्वता को बड़ा सम्मान प्राप्त था। वह हादिक श्रद्धांजलि ।'