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________________ महाकवि अर्हदास : 'व्यक्तित्व एवं कृतित्व आश्रमवासियों की सहायता भी किया करते थे। इस पद्य में आशायर की जिस परोपकार वृत्ति का निर्देश ि गया है, उसका अनुभव कवि ने सभवतः प्रत्यक्ष किया है और प्रत्यक्ष में कहे जाने वाले सदवचन भी सूक्ति कहनाते हैं, अतएव बहुत संभव है कि अदास आशाधर के समकालीन हों। पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री ने भी उक्त आधार पर अद्दास का आशाधर के लघुसमकालीन होने का अनुमान किया है।" किन्तु इस सन्दर्भ में पण्डित नाथूराम प्रेमी और पण्डित हरनाथ द्विवेदी के मनों को दृष्टि से ओझल नही किया जा सकता। प्रेमीजी ने लिखा है कि इन पदों में स्पष्ट ही उनकी सूक्तियो या उनके सद्ग्रन्थों का ही संकेत है, जिनके द्वारा अहंस को सन्मार्ग की प्राप्ति हुई थी, गुरू शिष्यत्व का नहीं।" इसी प्रकार माणिकवन्द दिगम्बर जैन प्रथमाना से प्रका शित पुरूदेवचंपू के सपादक पण्डित जिनदान शास्त्री फड कुले के मत पर कटाक्ष करते हुए पण्डित हरनाथ द्विवेदी ने लिखा है- पुरुदेवचपू के विज्ञ सादक फड़कुले महोदय ने अपनी पाण्डित्वपूर्ण भूमिका मे लिखा है कि उल्लिखित प्रशस्तियों से कविवर अदास पण्डिताचार्य आशावर जी के समकालीन निर्विवाद सिद्ध होते है किन्तु कम से कम मैं आपकी इस निर्णायक सरणी से सहमत हो आपकी निविवादिता स्वीकार करने में असमर्थ हूं क्योंकि प्रणस्तियों से यह नही सिद्ध होता कि आशाधर जी को साक्षात्कृति अदास जी को थी कि नहीं सूक्ति और उक्ति की अधिकता से यह अनुमान करना कि साक्षात् आशाधर सूरि से अदास जी ने उपदेश ग्रहण कर उन्हे गुरू मान रखा था, यह प्रामाणिक प्रतीत नही होता । क्योंकि सूनि और उविन का अर्थ रचना-बद्ध ग्रन्थ-संदर्भ का भी हो सकता है। " हमारे अनुमान से यह अधिक उचित प्रतीत होता है कि आशाधर के अन्तिम समय अर्थात् वि० स० १३०० मे अहंदास आशाधर जी के पास पहुंचे होगे और १-२ वर्ष साक्षात् शिष्यत्व प्राप्त कर उनके धर्मामृत से प्रभावित होकर काव्य रचना में प्रवृत्त हुए होगे। जैसा कि उनके "धावनकापथ" (मुनिसुव्रत काव्य १० / ६४ ) पद्म से भी व्यक्त होता है। १६ अहंद्दास नाम के अनेक विद्वान् अदास नाम के दूसरे कवि र कवि अहंदास है। यह जैन ब्राह्मण थे और इनके पिता का नाम नागकुमार था जो गंगा मारसिंह के चमूपति का डमरस १५वी पीढ़ी मे हुए थे। इनका समय भी १३०० ई० के आसपास स्वीकार किया गया है। कवि अर्हास कन्नड़ भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् थे। उन्होंने करनड़ भाषा मे अहमत नाम के महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रंथ पूरा नही मिलता। शक संवत् की चौदहवी शताब्दी में भास्कर नाम के आंध्र कवि ने इस ग्रथ का तेलगु भाषा में अनुवाद किया था । इस ग्रंथ के उपलब्ध भाग मे वर्षा के चिह्न, शकुन, वायु-चक, गृहप्रवेश, भूकम्प भूजात फल, उत्पात- लक्षण, इन्द्रधनु लक्षण आदि विषयो का निरूपण किया गया है।" पर ये अहंदास पुरूदेवचम्पू के कर्ता अहंहास से भिन्न है । श्रद्दास का समय : संस्कृत के अन्य महाकवियों की तरह महाकवि अर्हदास का समय भी अन्धकाराच्छन्न है । यतः उन्होने अपने जन्म समय, जन्म स्थान, माता पिता आदि के संबंध मे कोई उल्लेख नहीं किया है। फिर भी कतिपय प्रमाण ऐगे है, जिनसे उनका समय निर्धारण करना सम्भव है। अदास के काल-निर्धारण में पूर्व और अपर सीमा निर्धारण के लिए क्रमशः आशाधर और अतिसेन महत्त्व पूर्ण मानदण्ड है। अदास ने अपनी कृतियो मे र का नामोल्लेख जिस सम्मान और धद्धा से किया है, उससे तो इस अनुमान के लिए पर्याप्त अवकाश मिलता है कि वे आमाघर के संक्षिप्त शिष्य रहे होंगे। किन्तु आशाधर ने अपने ग्रंथों में जिन आचार्यों और कवियों का उल्लेख किया है, उनमे अहंदास का उल्लेख नही है । यहा तक कि उनकी रचना अनगारधर्मामृत की टीका मे अर्हद्दास या उनके किसी ग्रन्थ का कोई उल्लेख नही है ।" अन्तिम इससे इतना तो निर्विवाद सिद्ध है कि वे आगाधर के पश्चात्वर्ती है। साथ ही आचार्य अजितसेन ने अपनी अलंकार चिन्तामणि में जिनसेन, हरिचन्द्र वाग्भट आदि के साथ ही अहंदास के मुनिसुतकाव्य के अनेक श्लोक
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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