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१२, वर्ष ३९, कि० ३
(च) “प्रद्युम्न चरित " ( महासेनाचार्य कृत) " बनचर" का वेश बनाकर उदधि का है । (देखें नवम सर्ग )
३३. (क) हरिवंश पुराण ४७।१०१-१०७
(ख) उत्तरपुराण, नेमिनाथ, प्रद्युम्नचरित सभी में उक्त प्रसग प्राय: समान ही है ।
अनेकान्त
में प्रश्न हरण करता
३४. त्रिशष्टि० के अनुसार विप्ररूप धारी प्रद्युम्न सत्यभामा की एक व अंगों वाली दासी को पुन: रूपवान कर देता है और वही दासी प्रद्युम्न को रानी के भवन ले जाती है । विप्र मे महात्म्य के विषय में जानकर सत्यभामा निवेदन करती है - "मुझे रुक्मिणी से भी सुन्दर बना दीजिए तब विप्रवेश धारी प्रद्य ुम्न उसे सुझाव देता है ! सौन्दर्य शून्यता ही सौन्दर्य को अतिक्रान्त कर सकती है अतः तुम केश कटवाकर शरीर पर कालिख लगा फटे वस्त्र धारण कर लो" सत्यभामा वैसा ही करती है । ३५. उत्तरपुराण, त्रित्रष्टि०, प्रद्युम्न चरित ( महासेन) में "वमन" करने का उल्लेख नही है ।
१६. (क) संकर्षणस्य हत्वेच्छा वादाकर्षणकारिणः । अरराम चिरं स्वेच्छ लोक विस्मयकृत्कृतो ॥ हरि० पु० ४७।११२ (ख) उत्तरपुराण मे प्रद्युम्न सिंह का वेश धरकर
बलभद्र को निगलकर अहत्य कर देता । ७२१६२ (ग) साधारु कृत "प्रद्युम्न चरित" में भी सिंह बन कर बलराम को अखाड़े मे फेक देने का वर्णन है । ( ४५२) (घ) त्रिषष्टि के अनुसार बलभद्र जब रुक्मिणी के भवन पहुचते है तो प्रद्य ुम्न कृष्ण बनकर, रुक्मिणी को आलिंगन बद्ध कर लेता है। यह दृश्य देखकर हलधर लौट जाते है और सभा मे भी उपस्थित कृष्ण को देख आश्चर्य मे पड़ जाते है । वे श्री कृष्ण से पूछते है कि वे एक ही समय मे दो स्थानों पर कैसे ? तब वास्तविक स्थिति जानने के लिए दोनो पुनः रुक्मिणी कक्ष की ओर जाते है पर तभी प्रद्युम्न शंखनाद द्वारा रुक्मिणी हरण की सूचना देता है।
३७. (क) बालभवमहं मातर्दर्शयामी दृश्यताम | हरि० पु० ४७।१२०
(ख) उत्तरपुराण और त्रिषष्टि० में बाल लीलाओं की पुनरावृत्ति का उल्लेख नहीं है पर महासेन ने "प्रद्युम्न चरित" में प्रद्युम्न द्वारा विद्याबल से बाल क्रीड़ाओं द्वारा माता रुक्मिणी को हर्ष प्रदान करने का वर्णन किया है । साधारु के "प्रद्य ुम्न चरित" मे प्रद्युम्न माता के आग्रह पर बाल्यकाल
वाया ।
की घटनाओं को विस्तार पूर्वक सुनाते हैं । ३८. (क) उत्तरपुराण के अनुसार जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को छुडाने के लिए आए तो भील रूपधारी प्रद्युम्न ने 'नरेन्द्र जाल' नामक विद्या से उन्हें जीत लिया । तत्पश्चात् ही नारद ने उपस्थित हो परिचय कर७२/१६२-१६६ (ख) 'प्रद्युम्न रास' तथा 'प्रद्य ुम्न चरित' ( साधारुकृत) में कृष्ण के अतिरिक्त पाँचो पाण्डवो को भी अलग-अलग ललकारने का वर्णन है। प्रद्य ुम्नरास कृष्ण प्रनयुद्धका वर्णन निम्न शब्दो मे है - हो असवारां मारै असवारा, हो रथ सेधी रथजुरे झुझारी । हस्यीस्यो हस्ती भीडे जी, हो घणी कहां तो होई विस्तारी ॥ १७४ परन्तु कवि साधारु ने इस भयंकर युद्ध का वर्णन करने में पूरे ६८ छंद रच डाले है । ( ४७४ रे ४५२ तक ) ३६. (क) हरिवंश पुराण ४७।१३६-१३७
(ख) उत्तर पुराण ७२/१७८-१८०
(ग) साधारुकृत प्रद्युम्न चरित में प्रद्युम्न उदधि विवाह के समय बिद्याधर कालसवर एवं उसकी पत्नी के उपस्थित होने का उल्लेख है यहां वर्णन महासेनाचार्य के 'प्रद्युम्न चरित' मे भी है । (घ) त्रिषष्टि के अनुसार प्रद्युम्न उदधिका विवाह
४०.
सत्यभामा के पुत्र भानुकुमार से ही करवाता है । हरिवश पुराण, उत्तर पुराण, प्रद्युम्न चरित ( महासेन ) प्रद्युम्न और वैदर्भी विवाह की घटना संक्षेप में व्यक्त है जबकि त्रिषष्टि० में विस्तार पूर्वक वर्णित है । त्रिषष्टि के अनुसार : - वैदर्भी रुक्मी ( रुक्मिणी के भाई) की पुत्री थी । रुक्मिणी प्रद्युम्न के वैदर्भी से (शेष पु० ४ पर)