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________________ कामदेव प्रद्युम्न का कोई तल्लेख नहीं है। "प्रद्युम्न रास" में सम्पूर्ण प्रद्युम्न द्वारा उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकृत करने प्रसंग को केवल तीन छन्दो में व्यक्त किया गया है। पर वह उस पर दोषारोपण कर अपने पांच सौ पुत्रों २६.(क) उत्तरपुराण २१७७ को प्रद्युम्न के वध का उपदेश देती है। विद्युददंष्ट्र (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित के अनुसार कनक- आदि पांच सौ कुमार जब प्रद्युम्न के विनाश के उद्दे___ माला की प्रारम्भ से ही प्रद्युम्न मे आसक्ति की श्य से उसे विभिन्न गुफाओं से ले जाते हैं तभी वह और प्रद्युम्न के युवा हो जाने पर वह उससे प्रणय विभिन्न लाभ प्राप्त करता है। जबकि हरिवंशपुराण निवेदन करती है। मे वह युवराज बनने के बाद ही कुमारों की ईष्या के २७. रूपलावण्य सौभाग्य वैदग्ध्य गुणगोरवरण । फलस्वरूप षोडश लाभ प्राप्त कर चुका था। कामश्लेषस्य सौलभ्ये दोलभ्येस्यातुणं तु मे ॥ उ० पु०७२-७७ से १३० तक htra २६. त्रिषष्टि में यह प्रसंग अत्यन्त सक्षिप्त है उसमें २८. (क) प्रसरितकरो विद्य गृहीत्वा प्रमदी स ताम । केवल इतना ही उल्लेख है कि प्रद्युम्न सरलता से प्राण विद्याप्रदानान्मे गुरुस्त्वामिति सद्वचा। सभी संवर पुत्रो का सहार कर देता है। हरि० पु० ४७।६५ ३०. वीर रसप्रिय कवि साधारु ने इस सन्दर्भ में लिखा है (ख) त्रिषष्टि० मे कनकमाला स्वय प्रद्युम्न को अपने कि क्रोधित यम सवर चतुरगिणी सेना सजा कर पिता निध से प्राप्त “गौरी" और पति से प्राप्त प्रद्युम्न से लड़ने पहुचा:"प्रज्ञाप्त" विद्याओ के विषय में बताती है विद्याये जाई पहुतल दल अतिवत, नहा हाकि भी गयगत । हस्तगत कर लन में पहचान यहा भी प्रद्युम्न कनक- रावत सा रावत रण भिरई, पाइल स्यौपाइक अभिइ। माला को माता और गुरू कहकर प्रेम प्रस्ताव अस्वीकार कर देता है। ३१. (क) स्तन्ये सह बाल्ये स्मे मया दतिति सावदत। (ग) प्रद्युम्न रास म कचनमाला द्वारा प्रद्युम्न को तीन हरि.पु.४७१७७ विद्याय देन का उल्लख है : (ख) त्रिशष्टि० मे प्रद्युम्न ही कालसवर को बताता है कि हो गणी यणे राउ रमान; हो विद्या तीनि लेहुधो धाने किस प्रकार उसे विद्यायें कनकमाला से प्राप्त हुयीं "खेचर तब क्षमा मांगता है। (घ) साधारु कृत प्रद्युम्न चरित मे मुनि महाराज प्रद्युम्न (ग) प्रद्युम्न चरित (साधारु) में रानी कहती है कि सेकहते है कि "पूर्वजन्म में अनुराग वश कनकमाला प्रद्युम्न ने विद्यायें उससे छीन ली। इसी सन्दर्भ में तुम्हारे में अनुरूप है उसे छल कर तीनो विद्याये प्राप्त कवि ने स्त्री की चरित्रहीनता पर बारह स्वतंत्र छंद कर लो। तदनुसार हा प्रद्युम्न रानी से यह कहकर रच डाले है। "यदि तुम मुझ तीनो विद्याए दे तो मै तुश्ह प्रसन्न ३२. (क) हरिवश पुराण ४७९४ से ६ तक करने का उपाय कर सकता हू" विद्याए प्राप्त कर (ख) उत्तरपुराण म भीलवेश धारी प्रद्युम्न द्वारा दुर्योधन लेता है। फिर जैसे माता और गुरू बता चला जाता के सैनिक के तिरस्कार का वर्णन है परन्तु शुल्क प्र० च० २४० से ३४८ तक मांगने और उदधि हरण का उल्लेख नहीं है। (च) उमरपुराण में यह प्रसग हरिवशपुराण के अनुरूप हा (ग) त्रिशष्टि० मे उदधिहरण प्रसंग है परन्तु वहाँ प्रधुम्न है परन्तु कथा के क्रम में अन्तर है। उत्तरपुराण क का भील का वेश बनाने और शुल्क मांगने जैसी अनुसार रानी कचनमाला प्रद्युम्न को "प्रज्ञप्ति" बात नहीं है। विद्या उसी समय दे देती है जब वह सवर के विरोधी (घ) साधारु कृत प्रद्युम्न परित में सम्पूर्ण घटना हरिवंश मग्निराज को पराजित करके आता है। बाद में पुराण जैसी है। (छन्द २९६ से ३०९ तक) किर क
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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