________________
कामदेव प्रघुम्न
के अग्रभाग पर चढ़ने को तत्पर करते हैं। प्रद्युम्न गोपुर उसे प्रशप्ति विद्या प्राप्त होने वाली है। पुन: भवन में पर चढ़कर वहां से मुकुट और निधि प्राप्त करके लौट लौटकर प्रद्यम्न रानी से प्रज्ञप्ति विद्या के विषय में आता है।
जिज्ञासा करता है। उत्तर में कनकमाला कहती है कि इसी प्रकार पांच सौ कुमारों द्वारा प्रेषित प्रद्य म्न- "यदि तुम मुझे चाहते हो तो गौरी एवं प्रज्ञप्ति नामक कुमार महाकाल नामक गुफा के निवासी देव को वशीभूत विद्याएं तुम्हें देती हैं।" करके तलवार, ढाल, छत्र एवं चंवर लेकर आता है। विद्याएं प्रात कर लेने पर प्रधुम्न कनकलता को नाग गुफा के देव से उत्तम पादपीठ, नागशय्या, वीणा अपनी माता और गुरू बनाबर चला जाता हैं ।" इस तथा भवन निर्माण विद्या प्राप्त होती है । वापिका के देव प्रकार स्वयं को छला गया जानकर कनकमाला अपने अंगों को पराजित करके प्रद्यम्न मकर-चिन्हित वजा प्राप्त को क्षत-विक्षत करके पति से प्रद्युम्न की चरित्रहीनता का करता है। तदनन्तर अग्नि कुण्ड में प्रविष्ट हो अग्नि दोषारोपण करती है। ऋद्ध कालसवर अपने पांच सौ नामक वस्त्र लेकर लौटता है। मेषाकृति पर्वत की गुफा कुमारों को प्रद्युम्न को मार डालने का आदेश देता है। के निवासी देव से कानों के कुण्डल प्राप्त होते हैं। इसके कुमार जब उसको मारने पहुंचते है," तो प्रद्युम्न कृत्रिम पश्चात पाण्डुक नामक वन का देव प्रद्युम्न कुमार को शरीर से वापिका मे कूद जाता है। उसके पीछे-पीछे सभी मुकुट तथा अमतमयी माला देता है। "कापित्थ" वन के सवर पुत्र भी कृद जाते हैं तो वह एक को छोड़कर शेष विद्यामय हस्ती की उपलब्धि होती है। इसी प्रकार सभी को अधोमुख करके कील देता है तथा उस एक को "बाल्मीक" वनदेव से कवच, कड़ा, बाजूबन्द, कण्ठाभरण सम्पचार राजा तक पहुंचाने हेतु भेज देता है। जब अत्य. और "शूकर" वन से शंख एवं धनुष प्राप्त होते है। मनो- धिक क्रोधित कालसवर" स्वय वापिका तक पहुंचता है वेग नामक विद्याधर को छुडा देने पर हार तथा इन्द्रजाल तब तक प्रद्युम्न विद्या के प्रभाव से एक बड़ी सेना तयार उपहार स्वरूप मिलता है, आगे एक भव के अधिपति से कर लेता है। यह स्थिति देखकर कालसवर अपनी रानी पुष्पमय धनुष तथा पंचशर (उन्माद, मोह, सताप, मद कनकमाला से प्रज्ञप्ति विद्या मांगता है तो वह झूठ ही तथा शोक उत्पन्न करने वाले वाण) उपलब्ध होते है कह देती है कि "बाल्यावस्था मे दूध के साथ ही वह विद्या दुसरी नाग गुफा में जाने पर चन्द हार, फूनो का छत्र में प्रद्यम्न को दे चकी हैं।"" । इस उत्तर से दुखित एवं पुष्प शैय्या प्राप्त करता है और अन्त मे जयन्तगिरि राजा पून भीषण युद्ध के लिए तत्पर होता है तभी नारद पर्वत पर विद्याधर की रति नामक कन्या को लेकर पांच वहा उपस्थित होकर समस्त वृत्तात सुनाकर उनमें परस्पर सो कुमारों के पास लौटता है।
प्रीति उत्पन्न करते है। प्रद्युम्न सभी कुमारों को मुक्त विभिन्न लाभों५ से युक्तं प्रद्युम्न मेघदूत नगर पहुच कर देता है। तत्पश्चात् विद्याधर से आज्ञा प्राप्त कर वह कर रानी कनकलता को प्रणाम करता है तो कामदेव के नारद के साथ विमान से द्वारका के लिए प्रस्थान अपरूप सौन्दर्य को देखकर रानी के भावों में परिवर्तन हो करता है। जाता है। वह विचार करती है “यदि मुझे प्रद्युम्न का हस्तिनापुर के कुछ आगे उन्हें सैन्य जमाव दिखाई आलिंगन प्राप्त होता है तभी मेरा रूप, लावण्य, सौभाग्य देता है । प्रद्युम्न के जिज्ञासा करने पर नारद बताते है कि सफल है अयथा सब व्यर्थ है।" प्रद्युम्न का प्रणय प्राप्त कुरुराज दुर्योधन की पुत्री उदधि, सत्यभामा के पुत्र करने की चिन्ता मे कनकमाला अस्वस्थ हो जाती है, तब भानुकुगार से विवाह करने हेतु द्वारिका जा रही है। कुशल क्षेम पूछने प्रद्युम्न उपके समीप जाता है । रानी प्रद्युम्नकुमार भील का वेश धारण करके दुर्योधन के की अनुचित चेष्टाओ से चकित प्रद्युम्न, सागरचन्द मुनि- सैनिकों से शुल्क के रूप मे सारभूत वातु की मांग करता राज से इसका कारण पूछता है तो वे उसे पूर्व भव का है। सैनिको के यह कहने पर "सर्वाधिक सार वस्तु तो वृत्तान्त बताते हैं तथा यह भी कहते है कि कनकमाला से स्वय उदधि लु मारी है तथा उन्हे केवल विष्णु से उत्पन्न