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________________ वर्ष ३६ कि. किया। महाकवि असंग के अनुसार गौतमादि का जन्म एवं तथापि दिगम्बर परम्परा के वृत्तान्तों से वे सब मिलकर निवास स्थान गौतम नामक ग्राम था, रईधु उन्हें पोलासपुर पर्याप्त अधिक एवं विस्तृत हैं। उनके अनुसार गौतम आदि ग्राम का निवासी रहा बताते हैं, और श्वेताम्बर साहित्य अपापापुरी (पावापुर) में आयोजित सोमिल नामक गृहस्थ में उन्हें गोबर या गोबर ग्राम का निवासी बताया है। के यज्ञ में भाग लेने आये थे-वे वही से भगवान के समयवहाँ यह भी बताया है कि उनके पिता का नाम वमुभूति सरण में आये थे, अपने ग्राम में नही। सभी गणधर मौर माता का पृथ्वी था। इस विषय मे भी दोनों परम्पराएं विभिन्न गोत्रीय ब्राह्मण विद्वान थे। इन ग्रन्थों में भगवान एकमत हैं किगौतम स्वामि का निर्वाण महावीर-निर्वाण से महावीर और गौतम स्वामि के संबंधों को लेकर अनेक १२ वर्ष बाद हुआ किन्तु निर्वाण स्थल के विषय में कुछ रोचक एवं बोधप्रद प्रसग भी प्राप्त होते हैं। उत्तराध्ययन मतभेद है-एकमत गुणशील-चैत्य बताया है जिसका समी- सूत्र में तो ती० पार्श्व की परम्परा के आचार्य केशिकुमार करण पावापुरी के निकटस्थ वर्तमान गुणावा से किया और ती० महावीर के गणधर गौतम के मध्य हुआ रोचक जाता है, कुछ अन्य विपुलाचल को तथा कुछ सम्मेदशिखर संवाद भी। गौतम भ० महावीर से ८ वर्ष जेठे थे, अर्थात् को उनका निर्वाण स्थल बताते हैं । यतिवृषभ, गुणभद्र, उनका जन्म ईसा पूर्व ६०७ मे हुआ था, दीक्षा एवं गणधर पुष्पदन्त आदि ने भगवान महावीर के बारह गणधरों के पद प्राप्ति ई०पू० ५५७ मे, केवल ज्ञान ई० पू० ५२७ मे नाम भी दिये हैं, किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या वे और निर्वाण ई० पू० ५१५ में । इस प्रकार १९८५ ई० में सब ब्राह्मण थे, अथवा उनमें कोई क्षत्रिय आदि भी था। गणधरदेव गौतम स्वामि के निर्वाण को २५०० वर्ष हो उनके माता-पिता, निवास स्थान आदि का भी उल्लेख हो चके । श्वेताम्बर समाज मे तो इस महोत्सव को मनाने नहीं है। उत्तरपुराण में गौतमस्वामि को आदित्य नामक का अभियान भी चला, कई पत्र-पत्रिकाओ में विशेषांक भी देवविमान से चयकर इस भव में आया भी बताया है। निकाले, किन्तु विशेष कुछ हुआ नही । दिगम्बर समाज इस यह भी प्रायः सभी ने प्रतिपादित किया है कि गौतम समस्त । विषय मे उदासीन ही प्रतीत होते हैं। जिन शासन के वेद-वेदांगों (चार वेद, छ: बेदांग, तथा चार उपांगों) में परम उपकारक परम गुरु गणधर देव गौतम स्वामि का निष्णात था. और गणधर पद पर प्रतिष्ठित होते ही वह गुण स्मरण और उनके, सुचरित्र का प्रकाशन प्रचार तो मति-श्रुत-अवधि-मन:पर्यय नामक चार ज्ञानों और सप्त- होना ही चाहिए। ऋद्धियों का स्वामी बन गया था। श्वेताम्बर परम्परा के भगवतीसूत्र, उपासकदशांग. उत्तराध्ययन, आवश्यक नियुक्ति ज्योति निकुञ्ज, आदि आगमों में गौतम विषयक फुटकर ज्ञातव्य मिलते हैं, चारबाग, लखनऊ-२२६०१६ (पृ० १२ का शेषांश) विवाह का प्रस्ताव भेजती है जिसे रुक्मी अस्वीकृत पूछता है तो वह कुछ नहीं बताती। अतः क्रुद्ध पिता कर देता है तब प्रद्युम्न और शाम्ब चाण्डाल का रूप उसे चाण्डालों (प्रद्युम्न शाम्ब) को दे देता है। बाद बनाकर "भोजकट" नगर पहुंचते हैं। अपने मधुर में अनुचरों से वस्तुस्थिति ज्ञात होने पर रुक्मी उत्सव संगीत से रुक्मी का मन मोह लेते हैं और सगीत के पूर्वक दोनों का विवाह करवाता है। साधारुकृत के प्रभाव से ही उन्मत्त गज को वशीभूत करते हैं। उप- "प्रद्य श्न चरित" में इस वेशधारी प्रद्युम्न शाम्ब, हार के रूप में वे रुक्मी से वैदर्भी की मांग करते हैं "रूपचन्द" (रुक्मिणी का भाई को पकड़ द्वारिका ले पर भोजकट नरेश उन्हें तिरस्कृत करता है। रात्रि जाते हैं। वहां कृष्ण एव रुक्मिणी से स्वागत आतिथ्य मे प्रद्युम्न विद्याबल से वैदर्भी के कक्ष में प्रविष्ट पाकर रूपचन्द सहर्ष वैदर्भी का विवाह प्रद्युम्न से होकर उससे गन्धर्व विवाह कर लेता है। प्रात:काल कर देता है (५४) सहाण चिमा देखकर मी वर्षी से पसके विषय में
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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