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________________ वर्ष ३६ किरण ३ } मी मन अनेका परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर - निर्वाण संवत् २५११ वि० सं० २०४३ अनेकान्त महिमा अनंत धर्मणस्तस्वं पश्यन्तो प्रत्यगात्मनः । कान्मयो मूर्तिनित्यमेव प्रकाशताम् ॥ जेण विरता लोगस्स वि ववहारो सव्वा रग डिइ । भवनेकगुरुणो णमो प्ररणेगंतवायस्स ॥ परमागमम्य बोजं निमिद्ध जात्यन्ध-सिन्धुरभिधानम् । तम्स जुलाई-सितम्बर १६८६ नयमितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ ममिच्छारण समूह महियस्स प्रमयसारस्स । जिणवरणस्स भगवओ संविग्गसुहाहिगमस्स ॥ परमागम का वीज जो, जैनागम का प्राण । 'अनेकान्त' सत्सूर्य सो, करो जगत कल्याण ॥ 'अनेकान्त' रवि किरण से, तम अज्ञान विनाश । मिट मिथ्यात्व- कुरीति सव हो सद्धर्म प्रकाश ॥ धर्मा eat अथवा चैतन्य-परम- आत्मा को पृथक-भिन्न रूप दर्शाने वाली, अनेकान्तमयी मूर्ति - जिनवाणी, नित्य त्रिकाल ही प्रकाश करती रहे- हमारी अन्तज्योति को जागृत करती रहे । जिसके बिना लोक का व्यवहार सर्व था ही नहीं बन सकता, उस भुवन के गुरु — असाधारणगुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार हो । . जन्मान्ध पुरुषों के हस्तिविधान रूप एकांत को दूर करने वाले, समस्त नयों से प्रकाशित, वस्तु स्वभावों के विरोधों का मन्थन करने वाले उत्कृष्ट जैन सिद्धान्त के जीवनभूत, एक पक्ष रहित अनेकान्तस्याद्वाद को नमस्कार करता हूं । मिथ्यादर्शन समूह का विनाश करने वाले, अमृतसार रूप; सुख पूर्वक समझ में आने वाले; भगवान जिनके ( अनेकान्त गर्भित) बचन के भद्र (कल्याण) हों । 000
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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