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________________ उड़ीसा की प्राचीन गुफाओं में दशित जैन धर्म एवं समाज श्री हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा उदयगिरि एवं खंडगिरि पर्वतों की प्रसिद्धि प्राचीन प्रतीक मथुरा के जैन आयाग पट्टों पर अंकित पाए गये हैं। जैन गुफाएं उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। ये मध्ययुगीन काल में जब इन गुफाओं का पुनरुद्धार भवनेश्वर रेलवे स्टेशन से लगभग ८ किलोमीटर पश्चिम हुआ, तब यहां की दीवारों पर तीर्थंकरो एवं उनकी शासन: में अवस्थित हैं। खंडगिरि पर एक प्राधुनिक जैन मन्दिर देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण की गयीं, जो हमें आज भी इन भी निर्मित हैं। गुफाओ की दीवारों पर देखने को मिलती हैं। __यहां पर जैन मुनियो के लिये उत्खनित ये प्राचीन प्रारम्भिक उत्किणियो से हमें तत्कालीन समाज की गफाएँ मेघवाहन वश के तीसरे प्रसिद्ध शासक खारवेल की हल्की सी झलक हल्की सी झलक भर मिलती है। तत्कालीन वेश-भूषा एवं fre: कृतियाँ हैं, जिनकी तिथि प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व है खार आभूषण इन मूर्तियों मे ईमानदारी से प्रदर्शित किये गये वेल का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अभिलेख उदयगिरि के हैं। पुरुष मुख्यतः धोती ही धारण करते थे, जबकि स्त्रियां हाथी गुम्फा की एक दीवार पर उत्कीर्ण है । इम अभिलेख साडियां। स्त्रियो की सादियां कमर पर एक कमर-बन्ध से ज्ञात होता है कि खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था। से बन्धी होती थीं, तथा आंचल सामने झूलता था । स्त्रीअपने शासन के तेरहवे वर्ष मे उसने जैन मुनियो के लिए पुरुष कोई ऊर्ध्व वस्त्र नही पहनते थे । फलतः उनका शरीर ये गफाये खदवायी। हालांकि, यहाँ जैन गति-विधियो के, कमर से ऊपर वस्त्र-हीन होता था। विशेष अवसरों पर और भी पहले प्रारम्भ होने की सम्भावनाओ से इन्कार। वे गले में एक कपडा लपेटते थे। पुरुष पगड़ी बांधते थे, नहीं किया जा सकता। जिसमें सामर्थ्यानुसार रत्न आदि जड़े होते थे। महिलाएं हमे इन गुफाओ के माध्यम से जैन धर्म से सम्बन्धित सर पर साड़ी तो डालती थी, किन्तु धूंघट का प्रचलन नहीं Hशत अधिक सचनाये नही मिलती, क्योंकि, जैसे कि उन था। स्त्रियो का वेश-भूषा में विभिन्नता थी तथा आभहितों जैन धर्म के स्थानीय नियम थे-मानव रूप मे षगों की बहुतायत थी। पुरुष कर्णाभूषण, हार तथा कड़े तीर्थकरो की मूर्ति-पूजा वजित थी। परिणामतः इन पहनते थे, तो स्त्रिया इन सबके अलावा मेखला, बांह तथा गफाओं की दीवारो पर तत्कालीन समय में तीर्थंकरों की सर के आभूषण भी पहनती थी। . . मातियां उत्कीर्ण नहीं की गई। किन्तु प्रतीक पूजा के प्रचुर घर के उपस्करों मे चारपाई, स्ट्रल, मेज, मोढ़ा; प्रमाण मिलते है। उदाहरण स्मरूप उदयगिरि की जय- बर्तनों में कटोरियां, प्लेट एवं घड़े; एवं घरों के अन्य विजय गुम्फा (सख्या-५) तथा खडगिरि को अनन्त गुम्फा सामानों मे छतरी, पंखे, मंजूषा आदि इन गुफाओं में (संख्या-३) की दीवारो पर एक-एक वृक्ष अङ्कित है, जिन उत्कीर्ण दृश्यों में देखे जा सकते हैं । उदयगिरि की रानी पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए भक्तगण चित्रित किये गये. . गुम्फा (सख्या-१) से.उत्कीर्ण सिर्फ एक दृश्य में एक दोहै। पुन: उदयगिरि की मंचपुरी गुम्फा (संख्या-६) मे , मंजिला मकान दिखलाया गया है । हालांकि, मुझ्यतः वहां राज-परिवार को एक अस्पष्ट प्रतीक की पूजा करते हुए पायेगार एक मंजिले मकानों का ही प्रचलेन भाम रहा या गया है। अनन्त गुम्फा को पिछली दीवारों पर होगा, जैसा कि उत्किणियों के अध्ययन से पता चलता है जैनों के 'अष्ट मंगलो' मे से कुछ, यथा :-नदीपाद, घरों को वेदिकाओं से घेरने की प्रथा भी आम तथा लोकस्थापना, स्वस्तिक तथा श्रीवत्स उत्कीर्ण हैं। ठीक ऐसे ही प्रिय थी। —(शेष पृ० १२ पर)
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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