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१५ वर्ष ३६, कि०२
प्रतिशत बढ़ाने की महती आवश्यकता है।
रूपता की प्रतिष्ठा हमें लोकोत्तरीप पटनामों की सत्वना (ब) विज्ञान :
के प्रति भी प्रेरित कर सकेगी। जैन विद्याओं के आगम, आगमेतर धामिक और (स) विदेशों में जैन विद्या शोष: दार्शनिक साहित्यमें भौतिक जगत संबंधी विवरण स्फुट जैन विद्या भारतीय विद्या का एक महत्वपूर्ण बब है। रूप में पाये जाते हैं। ये भौतिकी, रसायन, वनस्पति एवं इसके अध्ययन के बिना भारतविद्या का ज्ञान अधुरा हो प्राणिशास्त्र, भूगोल, ज्योतिष, गणित, आहार और औषधि माना जाता है। फलतः इस देश के अतिरिक्त अन्य देशों शास्त्र आदि से संबंधित हैं। ये विवरण तत्कालीन ज्ञान में भी इस विद्या के अन्तर्गत या स्वतंत्र रूप से बैन के निरूपक है। इन विवरणों का विषयवार संकलन एवं विद्याओं के अध्ययन, अध्यापन और शोध की ओर ध्यान तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है । इन विवरणों की समी- गया। यह एक अचरजकारी तथ्य ही है कि जैन पिवानों क्षात्मक प्रामाणिकता नयी पीढ़ी की धार्मिक आस्था को पर आधुनिक दृष्टि से शोध का प्रारम्भ बारहवीं सदी बलवती बनावेगी।
के अन्तिम दशक में विदेशों में ही हआ। इस सम्बन्त में इस क्षेत्र में शोधकर्ता तो अनेक हैं, पर उपाधि हेतु अनेक जैन विद्वानों ने विवरण दिये हैं पर योधनामिकानों शोध की मात्रा में कमी ही आई है। अभी तक गणित(२), में डा. जैन ने ही इन्हें १९७३ और १९८३ में स्थान पुद्गल, परमाणुवाद, भूगोल एवं स्रष्टि विद्या पर एक-एक दिया है। इन्हें देखने से लगता है कि १९८३ की नामिका
सामने आई है। आयुर्वेद में दो शोधे पजीकृत हैं, एक नाम को छोड़कर १९७की अनुकृति ही है। दस स्फुट लेख अवश्य प्रकाशित हुए हैं। इस क्षेत्र मे शोध की वर्षों में विदेशों में जैन विद्याओं पर कोई उपाधिहेतुक पर्याप्त संभावनाएं है। इसे प्रेरित करने के लिए वरीयता शोध न हुई हो, इस पर विश्वास नहीं हो पाता। फलतः से इस क्षेत्र में छात्र वतियां देनी चाहिए। साथ ही, शोध- इस नामिका की अपूर्णता के बावजूद भी, यह अनुमान निर्देशको को भी इन विषयों में शोध कराने में गहन रुचि सहज है कि विदेशों मे जैन विद्या शोष अधिकांश में लेनी चाहिए।
जर्मनी में हुई है। विभिन्न विवरणों के अनुसार-मांस, यह प्रसन्नता की बात है कि इन दिशाओं में उपाधि
आस्ट्रिया, अमरीका, रूस, इंग्लैंड और जापान में भी निरपेक्ष शोध पर्याप्त होती दिख रही है। मध्य प्रदेश ऐसी जैन विद्याओं पर शोध हो रही है। इस शोष को भी शोध का प्रारम्भ से ही अग्रणी रहा है। प्रो० जी० आर० नामिकाओ में समाहित करना चाहिए। इस शोध में जैन, एफ० सी० जैन, जे० सी० सिकदर और एन०एफ० आगम, ललित साहित्य, भाषा विज्ञान एवं न्यायशास्त्र के जैन यही रहे है। मुनि श्री महेन्द्र जी, जे० एस० जवेरी, विविध पक्ष आये हैं। एक अभिनन्दन अन्य में इसकी के० एल० लोढ़ा, एस० एस० लिरक आदि विद्वानो ने झांकी देखी जा सकती है। यह हर्ष का विषय है कि जैन विद्याओ के अनेक वैज्ञानिक पक्षों को सकलित और अनेक जैन विद्वान अब विदेश जाने लगे हैं और पूछ बैन विवेचित कर अनेक पुस्तिकाए और शोधपत्र प्रकाशित संस्थाएं भी इस दिशा में रुचि लेती दिखती हैं। यह संपर्क किए है। इनका एक संक्षिप्त रूप दो अभिनन्दन ग्रंथों के और रुचि भविष्य में प्रकाशित होने वाली नामिकाओं की विज्ञान खण्डो मे देखा जा सकता है। लोकोत्तर गणित के उक्त अपूर्णता दूर कर सकेंगी। कुछ शोधपत्रों ने तो विदेशी पत्रिकाओ मे भी स्थान पाया उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि १९७३-३ है। ये विषय ऐसे हैं जिनके प्राचीन विवरणों की सत्यता दशक में जैन-विद्या-शोध में ललित साहित्य का ही सहभौतिक या यांत्रिक चक्षुनो से परखी जा सकती है। इनके योग रहा है। अन्य क्षेत्रों में गुणात्मक और परिमाणात्मक अध्ययन से वैज्ञानिक विकास के इतिहाग मे जैन विद्याओं दोनों ही दृष्टियों से शोध काफी कम है। लेखकका के योगदान का मूल्याकन किया जा सकता है। विभिन्न विश्वास है कि नई पीढ़ी अनुसंधान के नये वितिजों की वैज्ञानिक पक्षों का तुलनात्मक अध्ययन और उनकी अनु- ओर अधिक ध्यान देगी। - कानिज, रीय