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भगवान महावीर प्रथम देशना स्मारक-राजगृही
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पटना से लगभग सौ किलोमीटर नालन्दा से लगभग १७ किलोमीटर दूर स्थित राजगृही एक ऐतिहासिक स्थल है। जिसे भगवान महावीर और गौतम बुद्ध ने अनेक बार अपने बिहार से पवित्र किया था। इसी नगरी में स्थित पांच पहाड़ियों में से प्रथम पहाड़ी विपुलांचल पर्वत पर भगवान महावीर का पहला उपदेश हुआ था। इसी कारण विपुलांचल पर्वत विशेष रूप से जैनियों का अत्यन्त पवित्र स्थल बना हुमा है। यद्यपि कालान्तर में हिन्दूमुसलमान, सिख आदि धमों का भी महत्व इस नगरी से जुड़सा गया और राजगृही सर्वधर्म समन्वय की नगरी बन गई। यहां हर साल देश-भर से लगभग एक लाख जैन और लगभग इतने ही अजैन तीर्थ-यात्री दर्शनार्थ आते हैं ।
राजगही पंच पहाडियों के मध्य अवस्थित है। इसी कारण महाभारत के पूर्व में एवं हिन्दू पुराणो में इसे गिरीब्रज कहा गया है। जैन पुराणो में बताया गया है कि श्री वासुपूज्य भगवान के अतिरिक्त तेईस तीर्थंकरों का समवशरण राजगृहमें ही हुआ था। बीसवे तीर्थकर भगवान मुनि सुबतनाथ के गर्भ, जन्म तप और ज्ञान ये चारों वल्याणक इसी राजगृही मे हए थे। भगवान महावीर स्वामी के समवशरण मे महारजा श्रेणिक द्वारा किए गए साठ हजार प्रश्नों के उत्तर में रचे गए सैकड़ो ग्रन्थ इसी राजगीर से सबधित है। अब हम इसे कथानकों का उदगम स्थान भी कह सकते है। इस पचकल्याणक मे होने वाले द्वितीय केवली श्री सुधर्माचार्य का निर्वाण माघ सुदी सप्तमी के दिन राजगीर के विपुलांचल पर्वत पर ही हुआ था।
राजगीर को जैन हिन्दू बौद्ध सभी पबित्र मानते है। यहां गर्म पानी के स्वास्थ्यवर्द्धक झरने हैं जिनसे अहनिस उष्णजल प्रवाहित होता रहा है। इस गंधक युक्त जल से जनमानस की शारीरिक तथा मानसिक अशान्तियाँ दूर हो जाती है । शीत-ऋतु मे हजारो रोगी स्त्री-पुरुष यहाँ जलवायु परिवर्तनार्थ आकर स्वास्थ्य लाभ करते है। इस गर्म पानी के झरनो तथा अपने शान्त और सुरभ्य प्राकृतिक वातावरण के चलते यह देश का ही नही बल्कि विश्व के पर्यटन स्थली को मानचित्रों मे अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
राजगीर मे अनेक प्राचीन दर्शनीय स्थल है। प्राचीन मन्दिरों के भग्नावशेष प्राचीन मूर्तियाँ, पाजातशत्रु का किला स्वर्ण भण्डार गुफा आदि जैन ब्राह्मी कला, मन्दिर राजगीर (वीरायतन) देखने योग्य है। इसमे चौबीसों तीर्थंकरों पर दर्शाई गई झाकियाँ अति सुन्दर व मनोज्ञ हैं। अठारह लाख की लागत से राजगीर पर्वत पर रज्जू मार्ग बनाया गया। जिस पर १६० आदमी एक साथ आकाश मार्ग से ऊपर आ जा सकेगे।
इस प्रकार इस तीर्थ क्षेत्र के महत्व को देखते हुए १९७४-७५ में भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव के समय समारोह के अध्यक्ष समाज सेवक साहू शांतिप्रसाद जैन के नेतृत्व मे समाज ने यह निर्णय किया था कि विपूलाचल पर्वत पर भगवान महावीर के प्रथम उपदेश की स्मृति में एक भव्य स्मारक का निर्माण किया जाए। स्मारक के निर्माण का दायित्व साह जैन ट्रम्ट को सौपा गया। निर्माण का विशेष आकर्षण पहाडी पर खुले आकाश मे अवस्थित चार मनोहारी पांच-पांच फुट ऊंची चतर्मखी पद्मासन प्रतिमाएं है जो ७२ फुट ऊँचे इस स्मारक पर विराजमान है। इसकी रचना समवशरण के रूप में हैं। इसका निर्माण करते समय आध्यात्मिक वातावरण का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है। ऐसा लगता है कि जैसे भगवन का उपदेश चारों दिशाओ मे प्रतिध्वनित हो रहा हो।