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पं० शिरोमनिवास
. धर्मसार सतसई
अथ दान गुण दोष वर्णन--
ज्ञान दान दीजे शुभ सार, दोहा-वण पंचहु त्यागि के, भूषण पचह वास ।
उत्तम मति होय जातें सार । गुण सात हूं सुनि दान के, नव विधि पुण्य प्रकास ॥१३८ केवल ज्ञान लहै जग पूजा, अप दूषण
पुनि सो सिद्ध होय पद दूजा ॥१४७ विलम्ब विमुख अप्रिय वचन, आदर चित्त न होय ।
औषधि दान देय जो ज्ञानी, देकरि पश्चाताप करि, दूषण पचहु सोय ॥१३६
नीरोग देह सो पावहिं प्राणी। अय भूषण
दीरघ आयु मिले शुभ काय, आनंद आदर प्रिय वचन, जनम सफल निज मानि ।
कीरति है तिहुं जग में छाय ॥१४८ निर्मल भाव जु अति करै, भूषण पंचहु जानि ।।१४०
अभय दान सब जीवनि देय, अथ गुण
जातें इन्द्र चक्री पद लेय । श्रद्धा ज्ञान अलोभता, दया क्षमा निज शक्ति ।
बहुत भोग भुगतै सुख पाय, दाता गुण ये सप्त कहि, करै भाव सौं भक्ति ॥१४१
पुनि सो होय मुकति पति राय ॥१४९ अथ नव प्रकार पुण्य
सूकर नौरा बांदर वाय, चौपाई-पात्रहिं पड़गाहै कर जोडि,
कुरजी वए बहु दुखदाय । चऊ आसन जु धरै समोरि ।
दान भाव जो मन में भयो, चरण धोय बंद तसु पाय,
___ छिन में भोग भूमि पद लियो ॥१५० पुनि सो विधि सौ पूज कराय । १४२ दोहा-जो नर उत्तम भाव सौ, पात्र दान शुभ देय । मन वच काय रसोई शुद्ध,
सो महिमा को गनि सके, गणधर आप कहेय ॥१५१ नव विधि पुण्य कहो सुनि बुद्ध ।
चौपाई-उत्तम पात्र त्याग फल जानि, पुनि सुनि मल चउदह दुखदाई,
तद्भव मोक्ष होइ सुख खानि । ए पुनि दान न दीजे भाई ॥१४३ के फल भोग भूमि मे लहै, अथ चउदह मल वर्णन
तीन पल्ल की आयु जु कहै ॥१५२
तीन कोस देह ऊंची होय, कंद मूल फल हरित जु होय,
महा सुगध मल वजित सोय । पान फूल बहुबीजा सोय।
देह दीप्ति दीसै प्रकाश, मांस रुधिर जो सगति भयो, रोम, चाम, जीव वध तह छयो ॥१४४
___ चन्द्र सूर्य तहं करै न बास ॥१५३
ग्रीषम, वर्षा, शीतु न जहां, छांउहः स्वाद फफूडा लग,
साम्य काल इक दीसै तहां । होइ दुगंध बहुत दिन पगे।
ठाकुर दास भाव नहीं जोग, ए चउहह मल वजित होय,
एक समान भुगते सुख भोग ॥१५४ निर्मल दान कहावै सोय ॥१४५
ईति भीति चिंता नहीं शोक, अपादान और फल वर्णन
जरा, रुजा, भव दोष न लोक । बाहार दाम दीजै शुभ पोष,
क्रोध लोभ माया मव नहीं, होय ऋद्धि पुनि छोटे वोष ।
पाप पुण्य नहीं जाने वहीं ॥११५ भव भव सुख मिले अति धन,
दशविधि कल्पवृक्ष सुख देय, निर्मल देर सुभग युति बने ॥१४६
जुगल रूप धरि बहु सुख लेय।