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________________ १४, वर्ष ३९, कि०४ अनेकान्त व्यथा का हृदयस्पर्शी चित्रण हुअा है। रास का प्रारम्भ छन्द संख्या ८६ है। कन्नौजी भाषा प्रभावित इस खण्ड मंगसिर मास सेकिया है तथा गीत की टेक पक्नि है- काव्य को कवि ने दोहा, चौपाई, सोरठा प्रादि छन्दों में 'कू तो मोहि साहिब सांवला, निबद्ध किया है। इस कति पर समीक्षात्मक लेख डाक्टर राणी राजल इमि पर वीन वै।' नेमिचन्द शास्त्री ने 'हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन' पुस्तक नेमि राजुल गीत-१८यो शताब्दी के भट्रा० शूभ- के भाग १ मे लिखा है। चन्द्र (द्वितीय) जो कि अभयचन्द्र के शिष्य थे ने भी नमि- नेमि-चरित्र-जयमल कवि विरचित इस कृति राजुल के जीवन घटनाओं पर आधारित भक्तिपरक गीतो का रचनाकाल सवत् १८०४ है और इसकी प्रतियां श्री की सृष्टि की थी। एक गीत की दो पक्तियां प्रस्तुत है- महावीर जी के शास्त्र भडार, जयपुर में संग्रहीत है । कौन सखि सुधि लावे श्याम की। नेमिनाथ के दश भव-इसकी रचना सेवण कवि मधुरी धुनि मुखचन्द विराजति राजमती गुण गावे ॥ ने की थी।। इस सधु कृति की संवत् १९१८ में लिपि नेमिनाथ रास- इसके रचयिता विजयदेव सूरि बद्ध प्रति दिगम्बर जैन मन्दिर विजयराम पांडया, जयपुर है। रास की एक पूर्ण प्रति जिसकी पत्र संख्या ४ तथा के शास्त्र भदार (वेश्ठन ३५४) तथा एक प्रति श्री महालिपिकाल सवत् १८२६ है । पाटोदी के मन्दिर, जयपुर वीर जी के शास्त्र भण्डार के गुटका न० १६० में (वेष्ठन न० १०२६) मे एव दो प्रतिया श्री महावीर जी उपलब्ध है। के शास्त्र भण्डार (गुटका न० ३५ और २.६) में नेम जी का चरित्र-आणंद कवि विरचित 'नेमि सग्रहीत है। जी का चरित्र' का रचनाकाल सवत् १८०४ है । इसकी नेमिनाथ का बारहमासा-रचनाकार श्यामदास सवत् १८५१ मे लिखो गई प्रति पाटोदी के मन्दिर, जयगोधा है और काव्य-रचना सवत् १७८६ में की थी। पुर (वेष्ठन २२५७) तथा एक श्री महावीर जी के शास्त्र बारह मासे को पूर्ण प्रति बधीचन्द जी के मन्दिर जापुर भण्डार (गुटका न० १४ मे है।) के शास्त्र भण्डार गुट का न १६१ मे है। नम जी राजुल पाहलो-कवि गोपीकृष्ण कृत उपर्युक्त रचनाओ के अतिरिक्त अठारहवी शताबी सवत् १८६३ की रचना है। इसकी अपूर्ण प्रति पाटोदी मे कवि भवानीदास ने 'नेमिनाथ बारह मासा', नेमि के मदिर, जयपुर मे है जिसकी प्रारम्भिक पक्तियां हैहिण्डोलना; राजमतो हिण्डोलना, और नेमिनाथ राजमती, श्री जिन चरण कमल नमो नमो अणगार । गीत' लिखे तथा कवि विनय विजय ने 'नेमिनाय भ्रमर नेमिनाथ रठाल तणे ब्याहलो कहुं सुखद्राय । गीत स्तवन' और 'नेमिनाथ बारह मासा' की थी। इनका नेमि ब्याहलो-इसको सवत् १८४८ मे कवि हीरा उल्लेख डा. प्रेमसागर जैन ने हिन्दी जैन भक्ति काव्य ने लिखा था। काव्य की एक पूर्ण प्रति जिसकी कुल पृष्ठ कवि' शीर्षक पुस्तक में किया है। नेमि विषयक साहित्य सख्या ११ है वधीचन्द जी के मन्दिर, जयपुर के शास्त्र की रचना उन्नीसवी शताब्दी मे भी रुकी नही पर प्रमाण भण्डार, वेष्ठन ११५० मे है। मे अवश्य कमी आ गई । इस शती की रचनाओ का परि- नेमिनाथ पुराण-भागचन्द लिखित यह एक मात्र चय निम्नलिखित है। गद्य कृति है । इसकी पत्र संख्या १६६ तथा रचनाकाल नेमि चन्द्रिका १६वी शताब्दी की महत्त्वपूर्ण सवत् १०७ है । लेखिका ते जिस प्रति का अध्ययन कृतियो में मनरगलाल विरचित 'नेमि चन्द्रिका' है। इसको किया वह गोधो के मन्दिर, जयपुर के भण्डार मे (वेष्ठन रचना सवत् १८८० में हुई थी। लेखिका को दिगम्बर १५३) सग्रहीत है । कृति के प्रारम्भ मे ही लेखक ने स्पष्ट जैन मदिर बड़ा तेरापथियो का जयपुर (वेष्ठन ६१६) से किया है "जो पुराण पूर्व गुण भद्रादि आचार्य निकरि जो प्रति मिली उसका लिपिकाल सवत् १८८३ व लिपि- कह्या ताही में अल्पज्ञानी कहूगा।" अतः कथ्य की दृष्टि कार खुशालचन्द पल्लीवाल है। पत्र सख्या १६ तथा कुल से तो नही परन्तु खड़ी बोली हिन्दी की गद्य भाषा के
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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