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________________ नेमि शीर्षक हिन्दी साहित्य श्वर गीत' में कुल १५ पद्य हैं तथा भाषा अभ्रश प्रधान नेमि रंग रत्नाकर छन्द-प्रस्तुत कृति के रचहै और इसकी हस्तलिखित प्रति बधीचन्द जी के मन्दिर यिता कवि लावण्य समय हैं इनके बचपन का नाम लघुके शास्त्र भण्डार गुटका नं० २५ में तथा एक प्रति श्री राज था और ये १६वी शताब्दी के प्रसिद्ध कवियों में से महावीर जी के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। एक हैं। 'नेमिरंग रत्नाकर छन्द' जिसे 'नेमि जिन प्रबंध' नेमिनाथ रास-इसके रचयिता आचार्य जिनसेन भी कहा गया है, की रचना संवत् १५४६ में की थी। भद्रारक यश:कीति के शिष्य थे । 'राम' की रचना इन्होंने भाषा पर अपभ्रश का काफी प्रभाव है । इसकी १७ पत्रों संवत् १५५८ में जवाहर नगर में की थी । नेमिनाथ के वाली प्रति आमेर शास्त्र भण्डार (जो अब श्री महाबीर जन्म, कुमार अवस्था, विवाह हेतु प्रयाण, तोरण द्वार से जी में स्थानान्तरित हो गया है) में संग्रहीत है। लावण्य लौट आने, वैराग्य, कैवल्य प्राप्ति तक की घटनाओं को समय कृत 'राजुल विरह गीत' अथवा राजुल नेमि कवि ने ६३ छन्दों में वर्णित किया है। भाषा राजस्थानी. अबोला' की प्रति भी उक्त शास्त्र भंडार में है। गुजराती मिश्रित है तथा विवेच्य रास की एक पूर्ण प्रति नेमिनाथ स्तवन-इसके रचनाकार कवि धनपाल जिसका लिपिकाल सं० १६१३ है दिगम्बर जैन मन्दिर हैं । जो प्रसिद्ध कवि देल्ह के पुत्र तथा ठक्कुरसी के अनुज बड़ा तेरापंथियो का, जयपुर वेष्टन ६२४ में उपलब्ध है। थे। इनका समय संवत् १५२५ से १५६० तक माना नेमोरर को उरगानो--श्रावक चतरुमल अथवा जाता है । नेमिनाथ स्तवन अथवा नेमि जिन वन्दना ५ चवमल विरचित यह एक मात्र 'उरगानो संज्ञक रचना छन्दों की लघु कृति है जिसमें नेमिनाथ के तोरणद्वार से है। कवि ने स्पष्ट किया है कि गुणों को विस्तार से कहने लौटने, राजुल का त्याग, गिरनार पर्वत पर तप एवं नेमि वाले काव्य को उरगानो कहते हैं । कृति की रचना संवत् निर्वाण का सुन्दर वर्णन हुआ है। १५७१ मे की थी। कवि ने तीर्थ नेमि द्वारा विवाह मंडप नेमीश्वर रास-इसके रचयिता ब्र.जिनदास हैं। से विरक्त हो लोट आने और वैराग्य धारण की मार्मिक जिनदास नाम के कई कवियों का उल्लेख मिलता है, कथा को ४५ पदो में प्रभावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया परन्तु विवेच्य जिनदास भट्टारक सकलकीति के शिष्य एवं है। 'कविवर चराज एवं उनके समकालीन' कवि शीर्षक अनुज थे। ये सस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे और पहले पुस्तक में डा० कामलीवाल ने 'नेमीश्वर को उरगानो' का नेमिनाथ पुराण (या हरिवंश पुराण) की रचना संस्कृत मूल पाठ प्रकाशित किया है साथ ही उन्होने चतरुमल कृत भाषा में की थी परन्तु बाद मे बहु जन हिताय, सवत 'नेमचरित्र' अथवा 'नेमि राजल गीत' का भी उल्लेख १५२० में स्वयं ही 'नेमिश्वर रास' की रचना हिन्दी में किया है। की। इस कृति को हरिवश रास भी कहते हैं । कवि ने नेमि राजमती बेलि-इसके रचयिता ठक्कुरसी नेमिनाथ के गर्भ च्यवन से लेकर निर्वाण तक की कथा हैं। ये राजस्थान के ढूंठाहण क्षेत्र के १६वी शताब्दी के कही है और प्रासगिक रूप में कृष्ण और पांडवों की कथा उत्तराई के कवि थे। 'नेमि राजमती बेलि' को 'नेमीश्वर भी अनुस्यूत है । डा० प्रेमचन्द रावंका ने 'महाकवि ब्रह्म. की बेली' भी कहा गया है । कृति की हस्तलिखित प्रतियां जिनदास : व्यक्तित्व एव कृतित्व' नामक पुस्तक में जयपुर के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है परन्तु 'नेमीश्वर रास' के कुछ अंश प्रस्तुत किये हैं। २० छन्दों वाली इस बेलि को डा० कासलीवाल ने 'कवि- नेमिनाथ रास-मुनि पुण्ण रतन ने राजस्थानी वर बूचराज एव उनके समकालीन कवि' पुस्तक में प्रका- मिश्रित हिण्दी भाषा में प्रस्तुत नेमिनाथ रास की रचना शित करवा दिया है । अन्त निम्न प्रकार है संवत् १५९६ में की थी। इस कुति की एक पूर्ण प्रति जर जनमु मरणु करि दूरे. हुउ सिद्ध गुणहुँ परि पूरे भट्टारकीय दिगम्बर जैन मन्दिर. अजमेर के शास्त्र भंडार करि घेल्ह सुतन ठाकुरसी किये नेमि राजमती सरसी वेष्ठन ७३६ में बद्ध है। कुल पद्य संख्या ६६ है तथा नर नारि जाको नित गावे जो चित सो फल पावै ॥२०॥ प्रारम्भ निम्न प्रकार से है
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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