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________________ समवशरण सभा के १२ कोठे - रतनलाल कटारिया, केकड़ी (अजमेर) निर्ग्रन्थ कल्पवनिता प्रतिकाभभौम, तेषु मुन्यप्सरः स्वार्या द्यौति भौमा सुरास्त्रियः । नाग स्त्रियो भवन भौम भ कल्पदेवाः । नागव्यन्त र चन्द्राद्या: स्वर्भूनपशवः क्रमात् ॥७९॥ कोष्ठ स्थिता नपशवोऽपि नमंति यस्य, सौधर्मेन्द्र की प्राज्ञा से कुबेर समवशरण की रचना तस्मै नमस्त्रिमुवन प्रभवे जिनाय ॥४॥ (नदी०भक्ति) करता है । इसमे ११ भूमियां होती है। आठवी सद्गण पहले कोठे में-निर्ग्रन्थ मुनि। दूसरे कोठे में-कल्प- भूमि है इसी के मध्य मे तीन पीठ पर श्री मडप है। बीच वासी देवियां। तीसरे कोठे में-आर्यिकादि सब स्त्रियां। में गधकूटी पर भगवान विराजमान रहते है उनको चौथे कोठे में-ज्योतिष्क देवियां। पांचवें कोठे में-व्यंतर प्रदक्षिणा रूप से १२ सभा-कोठे होते है जो निर्मल स्फटिक देवियां । छठे में-नाग (भवनवासी) देवियां । सातवें मणि की १६ दीवालों से युक्त होते हैं। में-भवनवासी देव । आठवें में-व्यंतर देव । नवमे मे-- देव मनुष्य तियंच (पचेन्द्रिय) के इन कोठों की ऋमिक ज्योतिष देव । दशवें में-कल्पवासी देव । ग्यारहवें मे- व्यवस्था बडी बुद्धिमानी शालीनता के साथ आदर्शरूप में सर्व मनुष्य (चक्रवर्ती, विद्याधर, क्षुल्लक ऐलकादि)। की गई है। बारहवें में-तियंच (पशु-पक्षी)॥ सर्वप्रथम भगवान् के सामने निर्ग्रन्थ मुनियों का ऐसा ही सब प्राचीन ग्रन्थों में लिखा है, देखो कोष्ठक रखा है जिसमे केवली गणधर मनःपर्यय ज्ञानी १. महापुराण (जिनसेनाचार्य कृत) पर्व २३, अवधि ज्ञानी ऋद्धिधारी ऋषि मुनि यति अनगार बैठते स्लोक १९३-१६४ । हैं जो सर्व प्राणियों मे श्रेष्ठ है । अत: इनका प्रथम कोष्ठक २. हरिवंशपुराण (जिनसेन कृत) सर्ग २ श्लोक ७६ रखा है। "Ladies First" सभा में महिलाएं प्रागे रहती से ८८, सर्ग ५७ श्लोक १५७-१६१ । है, इस भारतीय नियमानुसार दूसरे से छठे कोठे में देवियों ३. अतिशय भक्ति-निर्वाण भक्ति। और स्त्रियो को रखा है। इनमे भक्ति भी विशेष होती है ऋषिकल्पज वनितार्या, ज्योतिवनभवन युवति भावनजाः। इसलिए भी इन्हे आगे रखा है। ज्योतिवन कल्पदेवा, नरतियंचो वसंति तेष्वनुपूर्वम् । स्त्रियो को दूसरे कोठे मे न रखकर तीसरे में रखने ४. जयसेन प्रतिष्ठा पाठ ___ का कारण उनसे मुनीश्वरों के सानिध्य का अभाव करना बुद्धीशामर नायिकार्यमहती ज्योतिष्क सद् व्यंतर, है ताकि शालीनता बनी रहे और कोई लोकापवाद उत्पन्न नागस्त्री भवनेश किं पुरुष सज्जयोतिष्के कल्पामराः। न हो । देविया मनुष्यगति की न होने से उन्हें दूसरे कोठे मा वा पशवश्च यस्य हि सभा आदित्य संख्या वृष, में रख दिया है। शालीनतादि की दृष्टि से ही देव और पीयूषं स्वमतानुरूप मखिलं स्वादंति तस्मै नमः ॥५४॥ देवियों तथा मनुष्य और स्त्रियों के कोठे पास-पास नहीं ५. सिलोय पण्णत्ती (यतिवषभाचार्य कृत) अधि- रखे हैं। छठा एवं सातबा कोठा एक ही जाति के देवीकार ४ गाथा ५५६ से ८६३ । देव का होने पर भी छठे कोठे के आगे डबल दीवाल होने ६. समवशरण स्तोत्र-संस्कृत (विष्णुसेन कृत) से कोई दोष नहीं रहता। ७. धर्मसंग्रह श्रावकाचार (पं० मेधावी कृत) अधि- प्रश्न-आयिका गृहत्यागी साध्वी हैं उसे मुनियों के कार २ साथ पहले कोठे में न रखकर सामान्य स्त्रियों के साथ
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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