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________________ ४,पर्व ३६,०४ भनेकान्त परिणत होता चला गया। तथापि पूरे मध्यकाल में, बिशे- (सवालाख) पर्वत मालाओं का द्योनक है, अतएव वह षकर आसपास के जिलों के निवासी जैन अपने पवित्र अहिच्छत्रा, जहां से अजमेर के चौहान (चाडमान) वंश तीर्थ के रूप में इसकी यात्रा एव कथंचित् सरक्षण भी का पूर्वज सामन्त आया था, गंगा-यमुना के ऊपरी भाग में करते रहे। उन्होंने अहिच्छत्रा का नाम और स्मृति सुर- कही होना चाहिए । अर्थात् वह स्थान कुरुजांगल क्षेत्र में क्षित बनाए रखो। अस्तु, इस विषय में कोई सन्देह नही स्थित उत्तर पांचाल राज्य की प्राचीन राजधानी अहिहै कि पार्श्वनाथीय जनश्रुति का पावन जैन तीर्थ अहि. च्छत्रा ही हो सकती है। पछत्रा यही उ०प्रदेश के बरेली जिले का राम नगर यों पुराण प्रसिद्ध प्राचीन नगरों के अनुकरण पर देश किला है। के अन्य भागों में कई तन्नाम नगर कालान्तर में प्रसिद्ध इधर कुछ वर्षों से एक विवाद चल पड़ा है कि हो गए हैं । अयोध्या, मथुरा, काशी ही ऐसे अफेले उदाअहिच्छत्रा यह नहीं, वरन् राजस्थान में जोधपुर के निकट हरण नहीं है। हस्तिनापुर के अपरनाम गजपुर और स्थित नागौर अथवा अजमेर के निकट बिजोलिया पार्व नागपुर रहे हैं, और नागपुर नाम के जितने अन्य नगर नाथीय प्राचीन अहिच्छत्रा है। इसका आधार यह बताया बसे वे अनुकरण पर ही बसे । विजय नगर साम्राज्य की जाता है कि उक्त बिजोलिया के सन् ११६९-७० ई० के सुप्रसिद्ध राजधानी का नाम भी हिरेआवलां से प्राप्त शिलालेख में शाकंभरी (सपादलक्ष) के चाहमान (चौहान) १३६५ ई० के एक शि० ले. में 'श्रीमदराय राजधानी नरेशों का जो इतिहास दिया है, उसके अनुसार वश का हस्तिनापुर विजयानगर' लिखा है। (ए० क० १११, प्रथम पुरुष वाडमान था, जिसका पुत्र वासुदेव और पोत्र सौर ता०, न०१०३) और दमवी शती ई. के एक सामन्त था, तथा वह सामन्त अहिच्छत्रपुर मे जन्मा वत्स शिलालेख से दक्षिणापथ के कर्नाटक प्रदेश में भी एक गोत्री ब्राह्मण था। उसका पुत्र पुर्णतल्ल शाकम्भरी के । अहिच्छत्रा रहे होने का पता चला है । बहत्तर भारत के चौहान राज्य का सस्थापक था। उसी की सन्तति मे , बर्मा, स्याम, कम्बुज आदि भारतीयकृत राज्यों में भी आगे चलकर विग्रहराज पृथ्वीराज, अणोराव, सोमेश्वर, अयोध्या, मथुरा आदि नामों के नगर रहे पाए गये हैं। पृथ्वीराज तृतीय (दिल्लीपति) आदि राजा हुए । पण्डित पुराणप्रसिद्ध मूल स्थानों के अनुकरण पर परवर्ती कालों में गौरीशंकर हरीचन्द ओझा ने उक्त अहिच्छत्रा की पहचान स्थापित उक्त तन्नाम नवीन नगरो आदि को विद्यमानता जोधपुर के निकट स्थित नागौर (सस्कृतरूप नागपुर) से से मूल स्थानों की स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता। की, जिसे उन्होने किसी समय जांगल् या जांगलदेश की राजधानी रहा बताया। किन्तु पं० भगवानलाल इद्रजी अस्तु, तीर्थकर पार्श्वनाथ की केवलज्ञान भूमि, उत्तर. तथा डा० डी० आर० भण्डारकर के मतानुसार शाकंभरी प्रदेश बरेली जिले की रामनगर वाली अहिच्छत्रा ही है। का अपर नाम सपादलक्ष (सवालाख) है और यह उत्तर नागौर, बिजोलिया, अथवा अन्य कोई तथाकथित अहिप्रदेश के मेरठ कमिश्नरी के उत्तर में स्थित सिवालिक च्छा नही। सन्दर्भो के लिए देखिए लेखक कृत१. रुहेल खण्ड-कुमायं और जैन धर्म, लखनऊ, १९७० दिल्ली १९७५-७६, पृ० ५९-६० ७१ २. रुहेल खण्ड-कुमायूं जैन डायरेक्टरी, काशीपुर १९७०, ६. बरेली जिले का नवीन गजेटियर, अध्याय २ (इतिहास) पृ० १२३ अ० १६ पृ० ३६३-३६६ ३. उत्तरप्रदेश और जैनधर्म, लखनऊ, १६७६, पृ. ४७-४८ ७. जिन प्रभसूरिकृत विविध तीर्थ कल्प', अनु० अगरचंद भंवर लाल नाहटा, बालोतरा १९७८: पृ० ३०-३२ ४. भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, द्वि० सं०, दिल्ली ८. प्रो. कृष्णदत्त बाजपेयीकृत 'अहिच्छत्रा', लखनऊ १९५६ १६६६, पृ० ४५-४६, १३६ ६. जनाबिबलियोग्राफी (दिल्ली १९८२), न० २८, १७१, ५. प्रमुख ऐतिहासिक जन पुरुष और महिलाएँ, २५७
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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