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पतन का कारण : परिग्रह प्रश्न ही कहाँ रह गया? जो आप घर-घर, दुकान-दुकान नासी । मूड़ मुड़ाय भए संन्यासी' के चक्कर में संन्यासी धमकर इस गरुक थेली में पैसा इकट्ठा कर रहे हैं। हर हैं।' हमने सोचा कि आज न जाने कितने संन्यासी बोले-हम पैसा छूते नहीं-भक्तों को ही दे देते है वे इस श्रेणी के होंगे ? ही धर्मशाला का निर्माण कार्य कराते हैं-इस काम से हमने पढ़ा है-राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) को लोगों को लाभ होगा। हमने कहा-आपने सन्यास भग- वैराग्य तब हुआ जब उन्होने अर्थी (मुर्दे के जनाजे) को वद् भजन को लिया है या धर्मशाला निर्माण कराने को? देखकर 'अर्थ' (पदार्थ) स्वभाव का चिन्तवन किया। पर, बोले-हम कृतघ्न तो नही, जो प्राण-दान देने वालो का आज का वातावरण बदला हुआ है। अब तो लोग अर्थी प्रत्युपकार न करें। लोग अन्नदान देकर हमारे प्राणो की (धनिक) को देखकर अर्थ (धन) का चितवन करते हैं रक्षा करते है और शास्त्रों मे अन्न को प्राण कहा गया है। और इसी भाव मे वे धनिको को प्रथम दर्जा देते है । जैसा यदि लोग हमें अन्न न दे तो हम मर जाएगे और तब- कि नही होना चाहिए। हमारे जैनाचार्यों ने परिग्रह और जिसके लिए हमने संन्यास ग्रहण किया है वह भगवद् परिग्रही दोनो से दूर रहने का सदेश दिया है। हमारे यहां भजन ऐसे ही रखा रह जायगा। हमने कहा- यदि प्राण जब परिग्रह त्याग का प्रसग आया, तब आचार्यों ने स्पष्ट रक्षा ही मुख्य है तो वह तो पाप गृहस्थी में ही भली- कहा कि तिल-तुपमात्र परिग्रह भी ससार का बीज हैभांति कर रहे होगे; सन्यासी क्यो बने ? वे बोले-हमारा अत. बही कल्याण कर सकेगा जो सब कुछ (अन्तरंग. जीवन चरित्र आपको मालूम नहीं है, इसी लिए आप बहिरंग) परिग्रह छोड़कर परम दिगम्बर बन जायगा और ऐसी बाते कर रहे है। हम तो 'नारि मुई घर संपति वही कर्म-बन्धन को काटने में समर्थ हो सकेगा। .
पता.
(पृ० १५ का शेषाश) मध्यम प्रवेयक सख्या कही,
दोहा-सठ पटल जुगन कहे, सकल सुखनि की खानि । पटल तीन तहं सो है सही।
पुण्य जोग तै पाइए, उत्तम करनी जानि ॥१४३ विमान एक सो सात विराज,
ऊपर सोलह स्वर्ग ते, मोक्ष स्थान पर्यन्त । देवि निसग विजित राज ॥१३८
ऊचौ राजु एक सब, इह विधि गनि जै सत ॥१४४ ऊपर अवेयक सो है जहां,
चौपाई-अब सुनिए देविन आयु जु सही, पटल तीन पुनि कही तह जानि ।
पल्ल पांच सोधर्म जु कही। विमान एकानवै तह जु वखान ।
सात पल्ल ईशान बताई, दो कर देह कही तहं जान ॥१३९
दो दो बढ़स बार है जाई ॥१४५ सागर तीस आयु अधिकाई,
सात सात पुनि ऊपर कहीज,
सोलहे पचपन पल्ल जु लही जै। अवर भेद को कहै बढ़ाई।
यह सक्षेप समुच्चय कही, नव निमतर नौ जु विमान,
अन्य भेद ग्रन्थनि में सही ॥१४६ एक पटल तह कहऊ प्रमाण ॥१४०
दोहा-कर्म विपाक सब विधि कही, सुनी जु श्रेणिक भूप । मर तहं डेढ़ शरीर सुख देइ,
मिथ्या धर्म जु छोड़िकं, धरो धर्म दृढ़ रूप ॥१४७ सागर इकतीस आयु तहं लेइ ।
वीतराग जिनदेव जू, सकल कीर्ति मुनि धीर । पपराग मय छबि तह लीन,
पडित शिरोमणिदास को, करह कर्म सब दूरि॥१४८ पंचपंचोत्तरे कहऊ प्रवीन ॥१४१ इति श्री धर्मसार प्रथे भट्टारक श्री सकल कीति उपपटल एक तह छबि अधिकाई,
देशात पंडित शिरोमणिदास विरचिते कर्मविपाक कथन पंच विमान कहे समुझाई।
नाम चतुर्ष संधि समाप्तः। सागर आयु तहां तेतीस,
६८, विश्वास रोग, विश्वास नर, कर हक देह कही जगदीश ॥१४२
शाहदरा दिल्ली-११.००