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________________ ओम महंम् MADHumanen k - - - । LA ॥ - परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यासन्धुर्रावधानम् । मकलनविलसितानां विरोधमथन नमाम्यनेकान्तम ।। । वष३८ किरण २ वोर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज. नई दिल्ली-२ वीर- निर्माण गवत २५११, वि० म०२०४२ अप्रैल-जन १९८५ जिनवाणी-स्तुति परम जननी धरम कथनी, भावपारको तरनी ॥परम०॥ अनग्घिोष सापतको, अछरजुत गनघरों वरनी ॥रम०॥ गि द नयन जोगन ने, भविन को तत्व अनुमरना। पिथग्नी गडदरमर की, नित्थातममोह को हग्नी परम।। मुकनि मंदिर के बढ़ने को सुगमसो मरल नीस नी । अंधेरे कप में परतां, जगन उद्धार को करनी ॥परमा०॥ तपा के ताग मेटन कों, करन अमिरत वचन झरनो । कथंचितवाद याचरनो, प्रवर एकान्त परिहरिनी ॥परम०॥ तेरा अनुभव करत मोकों, बहुत प्रानंद उर भग्नी । जिर्यो मंमार दुखिया हूं, गही अब ग्रान तुम मरनी परम। अरज 'बुध' जन को सुन जननी, होमेरी जनमानी। नमं कर जोर मन-वच ते, लगाके मोस को धरनी परम०॥
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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