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________________ ग्रन्थ-समीक्षा १. महोत्सव-दर्शन : वाला (वाराणसी) एवं डा. देवेन्द्र कुमार जैन (नीमच); लेखन :धी नीरज जैन, सतना। पृ० ३८०, मूल्य एक मौ रूपए प्रकाशक-सिद्धान्ताचार्य । प्रकाशक : श्रवण बेलगोल दि० जैन मुजरई इन्स्टीट्यूशंस पं० फून चन्द्र शास्त्री अभिनन्दन अन्य प्रकाशन समिति, मैनेजिंग कमेटी। वाराणसी (उतर प्रदेश) साइ २०४२६४८ पृष्ठ : ४२१ मूल्य : १५० हाये। सिद्धान्ताचार्य १० फल चन्द्र जी भारतीय मनीषियों वन में प्रकाशन-व्यवमाय ने बड़ी तरक्की की है: में बहुश्रुत विद्वान् है । आT सरलता की प्रतिमूर्ति है । गत माज-मज्। ननोहारिता आकर्षक हो और छपाई बाइंडिंग अर्धशती से सतत साहित्य साधना में निरत रहे हैं। आप बढ़िया हो, आदि; जैसे सभी आयामों में उक्त प्रकाशन बहुमुखी प्रतिभा के धनी, जैन कम सिद्धात के प्रकाण्ड भी उत्तम बन पडा है । मिद्ध-हम्न और मनीषा-पटु लेखक व्याख्याता, अध्यात्मविद्या के प्रमुख वैना, आगम साहित्य के की कलम ने तो इसे चार चाद ही लगा दिए हैं। पाठक निष्काम सेवक एवं विचक्षण और अगाध प्रतिभा सम्पन्न हैं। जब जब इसे पढ़ेगा तब तब भ० बाहुबली सम्बन्धी आद्यंत आपके समुचित सत्कारार्थ प्रणीत प्रस्तुन अभिनन्दन सभी झाकियां उमको भाव-विभोर किये बिना न रहेंगी- ग्रन्थ में पडित जी के अभिवादन और सस्मरणों के 3 वह झूम उठेगा और जितनी बार पढेगा उतनी बार ही रिक्त उनका जीवन परिचय, ब्यक्तित्व और कृतित्व एवं उसे महा मस्तकाभिषेक जैसे अनेक पुण्य-प्रसगों को प्रत्यक्ष उनको साहित्य सर्जना का सविस्तार उल्लेख है। ५५ देखने जैमा अनुभव होगा। ग्रंथ मे २७+२६१ मनोहारी मौलिक एवं सुसम्पादित प्रमो के अतिरिक्त आपके धर्म चित्र है। चित्रो को देखकर हमारी ममी में श्रद्धा और दर्शन, इतिहास और पुरातत्व, अनुसंधान और शोध, जागी कि वे पुष्पात्मा और क्षेत्र-भूमिया आदि धन्य है। समाज और संस्कृति तथा पत्रकारिता और अन्य विविध विषयो पर लेख आपके साक्षात कीति स्तम्भ है । और आप जिन्हें भ० बाहुबली-कथा प्रमग से ग्रंय में सजने का सौभाग्य मिला । दो चित्रों को हमने बड़े गौर से देखा की जीवन कापी-साहित्यसाधना को आलोकित करते हैं। यह ग्रन्थ सभी प्रबुद्ध पाठकों एवं अध्येताओं के लिए (१) इन्द्र सभा की एक छवि (चित्र ५७) और (२) सर्वथा उपयोगी, मननीय एवं उपादेय है। विरागी नेमिनाथ को प्राहार कराते हुए आचार्य विमलसागर जी और मुनि श्री आर्य नन्दी जी (चित्र ६३) दोनों ३. ब्राह्मण तथा श्रमण संस्कृति का दार्शनिक विवेचन-डा. जगदीश दत्त दीक्षित, अध्यक्ष, सस्कृत ही प्रसगो ने हमें विचार के लिए प्रेरित किया है विभाग, मोतीलाल नेहरू कालेज, नई दिल्ली; पृष्ठ २२३; विचार कर फिर कभी लिखेंगे । कुल मिलाकर प्रकाशन मूल्य ६० रुपए; प्रकाशक-भारतीय विद्या प्रकाशन, १ यू. बड़ा उपयोगी और सग्रहणीय है । लेखन और प्रकाशन में बी० जवाहरनगर, बंग्लो रोड, दिल्ली-७. योग देने वाले सभी महानुभाव धन्यवादाह हैं। -सम्पादक भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानो ने वैदिक वाङ्मय में व्याप्त दो प्रमुख धाराओं और संस्कृतियों (ब्रालण २. सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचंद्र शास्त्री अभिनन्दन संस्कृति और श्रमण संस्कृति का संकेत तो किया है किन्तु ग्रन्थ : सम्पादक मन्डल-डा० ज्योतिप्रसाद जैन (लखनऊ), इन दोनों धाराओ के उद्गम और विकास के विषय मे किसी पं०कैलाश चन्द्र शास्त्री (वाराणसी), पं० जगन्मोहन भी विद्वान ने विस्तार से लिखने का प्रयास नहीं किया। लाल शास्त्री (कटनी), पं० नाथूलाल शास्त्री (इन्दौर), वैदिक साहित्य के उद्भट विद्वान् डा. जगदीश दत्त दीक्षित पं० माणिकच-द्र चवरे (कारंजा); प्रो० खुशालचन्द्र गोरा (शेष पृ० ४८ पर)
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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