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(४) केशव पाण्डे – केसव पाण्डे की अद्यावधि प्राप्त रचना 'कलिजुग कथा' है। यह रचरा काष्ठा संघ के मुनि ज्ञानभूषण के उपदेश से लिखी गई है। रचना में ४४ छन्द हैं। कलिजुग में चरित्र पतन की स्थिति के बारे में कवि का कहना है
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कलि मैं लरि बुड़न है नारी, कलि मैं पूत लरै महतारी । कलि में सो हर बात है खूंटी, कलि में जिया पुरुष तं रूठी, कल मैं भांग तामाखू आई, कलि मैं गऊ कृपण दिषाइ । कलि मैं वृत्त विधान सब पोपे, क मैं पिता पुत्रकू रोये (2) बरदा पक्षी कवि सुन्दरदास से भिन्न जेव कवि 'सुन्दर' का 'दया रासो' एक छोटी रचना होते हुए भी इसलिए महत्वपूर्ण कि उसमे बाह्याचार की निंदा की गई है
चल में करि असनान, मसलि तन मैल उतारे । छापे तिलक बनाय, और गल माला धारं । तीरथ बढ़ती फिरं, गिर्न न रेन सवार । करन सूं परयौ नहि क्यों पाये भव पार |३|| कहा घरै सिर जटा, कहा नित कहा घर वह मौन, कहा निन पंच अगिन सार्धं कहा, घूम रहित कृपा हेत जाने न क्यों, शिव लहै
मूंड मुंडावे । भस्म लावे |
मनेकान्त
मब चार । गवार |४||
(६) मनोहर - पण्डित मनोहर के सर्वये तेरह पंथी मन्दिर पुरानी टोक के १०२ गुटके में प्राप्त हुए हैं । विभिन्न सर्वयों में जैनाचार की शिक्षा के अतिरिक्त कवि ने लोक व्यवहार के चित्र भी प्रस्तुत किए हैं।
भूष बूरी संसार भूष सब ही गुन पो भूष बुरी संसार, भूष सबको मुष जोवं । भूष बुरी संसार भूप आदर नहि पावै । भूष बुरी संमार, भूष कुल मान घटावं ।
ष गवोवै लाज पति, भूष न रा कार मैं। भन रहति 'मनोहर' इम कहै भूष बुरी संसार मैं।
मेक 'मनोहर' के नाम से ११ छद की 'सीष सुगुरु की' एवं १५ छंद की 'ग्मान पच्चीसी' दीवान जी मन्दिर, भरतपुर में उपलब्ध है। 'ज्ञान पच्चीसी' दीवान जी मन्दिर भरतपुर में उपलब्ध है। 'ज्ञान पच्चीसी' मे कवि ने सांसारिक कष्टों की जानकारी देते हुए ज्ञानोन्मुख होने
की प्रेरणा दी है
संकट बहु उदर मैं रे औंधे मुष लटकाय । नरक बस से दुध सहै रे, तब प्राणी पिछताय पिछताय प्राणी बीनने, औतार ह्यो जगदीश जी । संसार सूं कारण नहीं तुम तभी सेव करोस जी। जगदीस जी तब सार कीनी पामियों औतार रे । संसार मांही भमर मूल्यों, भाड़िया व्योपार रे । व्यापार करि जाग्यो नहि ये कारण प्राणी दुध सहै ।
कहै 'मनोहर' उदर मैं औंधे मुष लटक्यो रहे । ब्रह्म वे गोदास - दिगम्बर गच्छपति जसकीति के शिष्य ब्रहाचारी 'बेषु' बाकनीवाल गोत्रिय खंडेलवाल जैन थे। इन्होने 'आनन्दपुर' में पांच परवी की कथा' लिखी जिसमें पांच पर्व व्रत का माहात्म्य, तथा विधि-विधान बतलाया गया है। इसमें ८६ छंद है । कवि की दूसरी रचना 'पोपाबाई की कथा है जो संवत् १७७८ में लिखी गई। इसमें ५२ छदों में किसी राजा द्वारा न्याय अन्याय की स्थिति पर सम्यक विचार न किए जाने पर व्यंग्य किया गया है । भाषा का नमूना इस प्रकार है
सोभ बधी सब सहर की, सुष हुवे सब लोग । दांन मान महमा बंधी, हवो धर्म को जोग ॥४७॥ परजा सुख पायो धणू-बडयो धर्म हितकार दान पुन्य कीजे भला-जन्म सफल सुषकार ||४|| जिन दाम :- गोधा गोत्रीय वनबास जैन विनदास की रचना 'सुगुरु शतक' की प्रशस्ति के अनुसार कवि जयपुर के रहने वाले थे। अपने पिता और पितामह से धार्मिक मतभेद होने के कारण जयपुर से मत्स्य में आए। जिनदास के नाम से एक ५१० छद का बडा ग्रंथ 'जम्बू स्वामीराम' कामों के जैन मन्दिर में उपलब्ध है। परमेष्ठी द शारदा को प्रणाम करते हुए यह रचना दोहा चौपाई छन्दों में सरल भाषा में लिखी गई है । कवि के दोनों ग्रन्थों की भाषा परिनिषित ब्रजभाषा होने के कारण यह कवि 'ब्रह्म निदास' से मेल नहीं जाते -- मात तात सुत भ्रात को न तो जगत की राह । धर्म न तो एह सिव हैं, जित भावे तित जाव । जाते मन वच काय ते नमाने लोक धर्म न ताके जनन कु, कबहूं न दीर्ज ढोक (शेष पृ० ३१ पर)
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