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________________ १७ कि.. हांका नयवाया जिससे वत के सारे पशु एक स्थल पर विशेषताबों का वर्णन किया है। कवि के अनुसार पशुएकत्रित हो गये । महाराज ने जब इस पशु समूह को देखा पक्षियों में रजो गुण और तमोगुण ही पाये जाते हैं। तो उनके मनोहारी सौन्दर्य से एकदम प्रभावित एवं सत्वगुणों का इनमें सर्वथा अभाव रहता है वह तो केवल आल्हादित हो उठे और मन ही मन सोचने लगे कि यदि मानव जगत में ही उपलब्ध होता है, उपर्युक्त गुणों में से आखेट द्वारा इस पशु सम्पदा को नष्ट कर दिया तो प्रत्येक गुण उत्तम, मध्यम और अधम के भेद से तीन-तीन हमारे सारे वन निर्जीव और शून्य हो जावेगें तथा उनकी भागों में विभाजित किया गया है। कवि के कथनानुसार प्राकृतिक आभा एवं सौन्दर्य नण्ट हो जावेगा तथा इनका सिंह, हाथी, घोड़ा, गाय, बैल, सारस, हंस, कोयल, कबूतर, विज्ञान सदा सदा के लिए लुप्त हो जावेमा और हम उससे आदि प्राणियों में उत्तम राजस गुण पाया जाता है । चीता, सदा के लिए बंचित हो जावेगें, प्रतः महाराज बिना बकरा, मग बाज आदि में मध्यम राजस तथा भालू, आखेट के ही राजमहल लौट आये तथा अपना दरबार भंसा, गैडा आदि मे अधम राजस गुण पाया जाता है। आयोजित किया और सभी पंडितों, विद्वानों एवं इसी तरह ऊंट, भेडिया, कुत्ता, मुर्गा आदि में उत्तम तामस शानियों से आग्रह किया कि प्रकृति जगत एवं प्राणी गीध, उल्ल, तीतर आदि में मध्यम तामस तथा गधा, विज्ञान की सुरक्षा के लिए वनवासी प्राणियों पर एक सुअर, बन्दर, स्यार, बिल्ली, चूहे, कौए आदि में अधम प्रामाणिक तथा विज्ञान सम्मत ग्रन्थ लिखा जावे जिससे तामस गूण पाया जाता है। प्राणीविज्ञान सदा सदा के लिए सुरक्षित रह सके और आयु के विषय मे कवि का कहना है कि हाथी १०० बन्य पशुओं के साथ साथ मानव जगत का भी कल्याण हो।। वर्ष, गैडा २२, ऊंट ६०, घोडा २५, सिंह, भैस, बैल, महाराज शौण्डदेव की अन्तर्व्यथा तथा प्राणी विज्ञान गाय आदि २० वर्ष, चीता १६ वर्ष, गधा १२ बंदर, एवं प्रकृति जगत की जिज्ञासा से उनके मंत्री ताराचन्द कुत्ता, सुअर, आदि १०, बकरा , हंस ७, मोर ३; जी विचलित हुए बिना न रह सके उन्होंने महाराज की चूहा और खरगोश डेढ वर्ष, तक की आयु प्राप्त करते हैं। अभिलाषा पूर्त्यर्थ विज्ञान की खोज की ओर महाराज से कवि ने शेरों के छ: भेद गिनाये हैं : १ सिंह, २ मृगेन्द्र, निवेदन किया कि अपनी नगरी मे जैन कवि पं. हंसदेवजी ३ पञ्चास्य, ४ हर्यक्ष, ५ केसरी, ६ हरि । इनके रूप, रंग, इस विज्ञान के महापंडित एवं कला पारायणी हैं। वे आप- आकार, प्रकार तथा कार्य आदि की भिन्नताएं भी बड़े की अभिलाषा पूर्ण कर सकते हैं; महाराज शौण्डदेव ने विस्तार से वणित की गई हैं। जब सिंह ३ या ७ वर्षे का तत्काल ही पं. हंसदेव जी को ससम्मान राजसभा में होता है। तो उसकी कामुकता बढ़ने लगती है। विशेषआमंत्रित कर अभिलाषा प्रकट की। प. हसदेव जी तया वर्षा ऋतु में वह बहुत कामुक हो जाता है। यह महाराज श्री का आग्रह न टाल सके और महाराज की पहले तो मादा को चाटकर, फिर पूंछ हिलाकर, फिर प्रसन्नता एवं अपने ज्ञान को अभिवृद्धि एव प्राणी विज्ञान कुद फांदकर, फिर जोर से गर्जना करके उसे अपनी ओर को चिरस्थायित्व देने के लिए उन्होने "मृगपक्षी शास्त्र' आकर्षित करने का भरपूर प्रयास करते हैं । इनका संभोग नामक प्रामाणिक एवं श्रेष्ठ वैज्ञानिक ग्रंथ की रचना की, काल अर्धरात्रि होता है। गर्भावस्था मे मादा सिंह के जो प्राणी विज्ञान के इतिहास में स्वर्णाक्षरों मे अंकनीय साथ ही घूमती फिरती तथा शिकार खोजती रहती है। है। साढ़े सात सौ वर्ष पूर्व लिखा ऐसा अनूठा ग्रंथरत्न गर्भकाल मे मादा की भूख कम पड़ जाती है तथा शिथिअन्यत्र दुर्लभ है। लता और कमजोरो सताने लगती है, धीरे धीरे प्रसव के इस प्रथ मे प्रमुख पशु पक्षियो के ३६ वर्ग है जिनमे नजदीक आते-आते शिकार से विमुख होने लगती है, वह रनके रूप, रंग, प्रकार स्वभाव, किशोरावस्था, संभोगकाल, ६ से १२ माह के बीच ५ बच्चो तक को जन्म देती है। गर्भकाल, प्रसूतकाल, भोजन, आयु आदि-आदि नाना इनका प्रसवकाल प्राय: बसन्त का अन्त या ग्रीष्म का
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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